अब आसान ज़ुबान में समझाया जाएगा खुत्बा

बहुत जल्द जुमे की नमाज के बाद इमाम खुत्बे को उर्दू या आम बोलचाल की ज़ुबान में लोगों को समझाना शुरू कर देंगे। फिलहाल खुत्बा अरबी ज़ुबान में होता है और बहुत से लोगों को इसका मतलब समझ में नहीं आता लेकिन दिल्ली के एक तंज़ीम ने पहल की है क‌ि मौल‌वि‌यों को ट्रेनिंग दी जाए जिससे वे आसान ज़ुबान में खुत्बे का मतलब भी समझा सकें। जल्दी ही तरबियत का ये काम दिल्ली में भी शुरू होने जा रहा है।

उत्तरप्रदेश के मौलवि‌यों ने भी इसका इस्तेकबाल किया है। खुत्बे में इमाम खुत्बा सुनाते हैं, जिसमें अल्लाह के नबी की तरफ से बयान की गईं हदीसों का ज़िक्र किया जाता है।

दिल्ली के एनजीओ जकात फाउंडेशन ऑफ इंडिया ने मस्जिदों में खुत्बे का उर्दू तर्जुमा सुनाए जाने की मुहिम चलाई है।

एनजीओ के वाइस प्रेसीडेंट एसएम शकील ने अमर उजाला से हुई बातचीत में कहा कि जुमे की नमाज से पहले होने वाला खुत्बा तो अरबी में ही पढ़ा जाएगा, क्योंकि शरई तौर पर इसका ही हुक्म दिया गया है। लेकिन अब इसका उर्दू में तरजुमा भी सुनाया जाएगा।

उनका कहना है कि जुनूबी हिंदुस्तान के कुछ रियासतो में तरजुमा का निज़ाम अभी भी है लेकिन अब इसे मुंबई और दिल्ली समेत सुमाली हिंदुस्तान के रियासतों में भी शुरू किया जाएगा। उनका कहना है सभी जामा मस्जिदों में ऐसी इंतेज़ाम कराए जाने की मुहिम चलाई गई है कि इमाम खुत्बे से पहले उसका तरजुमा जरूरी तौर पर बयान करें।

एनजीओ जकात फाउंडेशन ऑफ इंडिया के डायरेक्टर डा. सैय्यद जफर महमूद का कहना है, “एक साल में देखा जाए तो 52 या 53 जुमा आते हैं। औसत की बात की जाए तो ऐसे में एक मुसलमान अपनी जिंदगी में 4000 बार जुमा का खुत्बा सुनता है।

गैर अरब मुल्को में रहने वाले ज्यादातर मुस्लिम खुत्बे में दिए मैसेज का मतलब नहीं समझ पाते, क्योंकि खुत्बा अरबी जुबान में होता है। उन्होंने इदारो में सीनीयर इस्लामिक स्कॉलर्स को शामिल किया है जो कि ऐसे इमामों को ट्रेनिंग देंगे, ताकि नमाजियों को खुत्बे के इबरत का पता चल पाए।”

अब दिल्ली में भी होगी ट्रेनिंग

अभी हाल ही तंज़ीम ने मुंबई में ट्रेनिंग कैंप लगाकर इमामों को इसकी तालीम दी थी। अब दिल्ली में ये शुरू होने जा रहा है। अप्रैल को लगने वाले इस ट्रेनिंग कैंप में 30 इमाम हिस्सा ले सकते हैं। एनजीओ का कहना है क‌ि ट्रेनिंग लेने के खाहिशमंद इमाम imams@zakatindia.com पर दरखास्त कर सकते हैं।

पंचशीलनगर के गढ़ शहर काजी मौलाना हाजी सैयद कसीमुद्दीन कहते हैं “खुत्बा तो अरबी जुबान में ही सुनाया जाने की शरई बंदिश है, लेकिन इमाम का फर्ज बनता है कि वह खुत्बे से पहले उर्दू जुबान में उसका तरजुमा नमाजियों को समझा दे। एनजीओ की मुहिम काफी अच्छी पहल है।”

जामा मस्जिद चौपला के पेश इमाम हाफिज मुहम्मद अली का कहना है कि खुत्बे में कोई भी बदलाव किया जाना शरई तौर पर जायज नहीं है, क्योंकि इस दौरान कुरआन ए पाक की तिलावत, नमाज और तस्बीह पढ़ाना भी साफ तौर पर मना है। उनका कहना है, “खुत्बे से पहले इमाम अपनी तकरीर के दौरान उस पर उर्दू जुबान में रोशनी डालते हैं, लेकिन जिन मस्जिदों में ऐसा नहीं होता है, वहां के नमाजियों के लिए एनजीओ की पहल अच्छी है।”

अल्लाह के नबी ( स०अ०व०) ने अपनी कौम से वक्त वक्त पर जो खिताब किया था, उसे जुमे की नमाज से पहले जुमे को जामा मस्जिदों में पेश इमाम खुत्बे के तौर पर सुनाते हैं। दूसरे अल्फाज़ो में अल्लाह के नबी ( स०अ०व०) के तरफ बयान की गईं हदीसों का ज़िक्र खुत्बे में किया जाता है। खुत्बे का बयान अरबी ज़ुबान में होता है, जिससे ज़्यादातर नमाजी उसकी मायने नहीं समझ पाते हैं।

——–बशुक्रिया: अमर उजाला