अयोध्या: रामलला की आजादी चाहते हैं हाशिम अंसारी

अयोध्या बाबरी मस्जिद के अहम फरीक़ मोहम्मद हाशिम अंसारी बाबरी मस्जिद मुद्दे के सियासी रंग से इतने नाराज है कि उन्होंने बाबरी मस्जिद के मुक़दमे की पैरवी ना करने का फैसला किया है|

मुतनाज़ा जमीन के मालिकाना हक के मुकदमे में सबसे पुराने मदाइयन (pursuer) में एक हाशिम अंसारी ने ये भी कहा कि वो अब रामलला को आजाद देखना चाहते हैं| उनका कहना है, ‘चाहे हिंदू लीडर हों या मुस्लिम सब अपनी अपनी सियासी रोटियां सेकने में लगे हैं और मैं कचहरी के चक्कर लगा रहा हूं|’

उन्होंने कहा वह किसी भी कीमत पर अब बाबरी मस्जिद मुक़दमे की पैरवी नहीं करेंगे इसीलिये वह 6 दिसम्बर को यौमे स्याह जैसे किसी भी प्रोग्राम में शामिल नहीं होंगे|

यही नहीं हाशिम अंसारी ने आगे कहा कि, “रामलला त्रिपाल ( टेंट) में रहे, और अब मैं रामलला को किसी भी कीमत पर त्रिपाल में रहते हुए नहीं देखना चाहता| लोग महलो में रहें और रामलला टेंट में रहे, लोग लड्डू खांए और रामलला इलायची दाना| यह नहीं हो सकता| मैं अब किसी भी कीमत पर रामलाला को आजाद देखना चाहता हूं|”

अयोध्या के हाशिम अंसारी मुतनाज़ा जमीन के मालिक़ाना हक़ का मुकदमा लड़ते-लड़ते 97 साल के हो चुके हैं| अयोध्या बाबरी मस्जिद मुक़दमा 1949 से चल रहा है|

बाबरी मस्जिद एक्शन कमिटी के कंवेनर और यूपी के अपर अटार्नी जनरल जफरयाब जिलानी कहते हैं कि अगर हाशिम मुकदमे की पैरोकारी नहीं करेंगे, तब भी केस पर कोई असर नहीं पड़ेगा|

मुकदमे में छह मदाइयन (pursuer) और भी मौजूद हैं| इनमें सुन्नी वफ्फ बोर्ड भी मदाइयन है| यह रिप्रेजेन्टिव मुकदमा है, इसमें पार्टी के हटने से मुकदमे पर कोई असर नहीं पड़ता है| जिलानी को यह भी भरोसा है कि वह हाशिम को मना लेंगे|

वह कहते हैं कि हाशिम पहले भी इस तरह के बयान देते रहे हैं| 2010 में जब बाबरी मस्जिद पर फैसला आया था, तब भी उन्होंने काफी बात की थी| कई बार खत भी लिख चुके हैं| लेकिन हम उन्हें मना लेंगे|