गुजरात के कई गांवो के बाहर बाकायदा एक बोर्ड लगा दिखता है जिस पर लिखा होता है ‘‘हिन्दू राष्ट्र का …आदर्श गांव’’। उन गांवो के बाहर यह बोर्ड इसलिए लगे हैं कि इन गांवो में मुसलमानों की आबादी बहुत कम थी। 2002 के मुस्लिमकश फसाद के दौरान उनमें से कई लोग मार गिराए गए थे और बचे हुए लोग गांव छोड़कर भाग गए थे जो फिर वापस नहीं आए।
इस तरह यह गांव मुसलमानों से पूरी तरह खाली हो गए तो उन्हें आरएसएस कुन्बे ने हिन्दू राष्ट्र का आदर्श गांव करार दे दिया। जमीयत उलेमा हिन्द के एक ग्रुप के सदर अरशद मदनी अब ऐसे ही आदर्श हिन्दू गांव मुजफ्फरनगर जिले में भी बनाने की कोशिश में लगे हैं।
क्योंकि उनका कहना है कि मुजफ्फरनगर गांव के जो मुसलमान भागकर कैम्पों में आ गए थे उनका अब अपने गांव वापस जाना मुनासिब नहीं है क्योंकि उनके गांवो में उनके तहफ्फुज का बंदोबस्त हो पाना न सिर्फ मुश्किल है बल्कि नामुमकिन है।
अरशद मदनी का यह खेल बहुत ही खतरनाक है। वह यह चाह रहे हैं कि जाटो के साथ हुए टकराव के बाद मुजफ्फरनगर के जिन गांवो से मुसलमान निकल आए हैं वह अपने गांव वापस न जाएं बल्कि बसी और खामपुर गांवो के बाहर खाली पड़ी जमीन पर उनके मकान बना दिए जाएं।
खामपुर और बसी गांव में उन्होंने कुछ मकान बनवाना शुरू भी करा दिए। उनका दावा है कि जिस जमीन पर मकान बनवाए जा रहे हैं उस जमीन का मालिकाना हक मुसलमानो का ही है। जमीन किसी की हो अगर इस तरह मुजफ्फरनगर जिले के दंगे से मुतास्सिर गांवो को पूरी तरह खाली कर दिया गया तो इससे समाज में नफरत का बेपनाह इजाफा होगा और जिले के गांवो को हिन्दुस्तान-पाकिस्तान की तकसीम जैसी सूरतेहाल में पहुंचाने का जुर्म होगा।
अरशद मदनी ने इस सिलसिले में 22 अक्तूबर को वजीर-ए-आला अखिलेश यादव और समाजवादी पार्टी के कौमी सदर मुलायम सिंह यादव से मुलाकात करके शिकायत की थी कि कैम्प/ पनाहगज़ीन में रहने वाले लोगों के लिए बसी और खामपुर गांवो में वह जमीयत की तरफ से मकान बनवा रहे हैं, जहां गांव वालों के ऐतराज के बाद जिला इंतेजामिया ने काम रूकवा दिया था।
जिन लोगों के लिए यह मकान बनवाए जा रहे हैं वह मुजफ्फरनगर के कुतबा-कुतबी, लिसाड, फुगना और कवाल वगैरह के रहने वाले हैं।
जब से अरशद मदनी और उनके भतीजे महमूद मदनी ने आपस में मारपीट करके जमीयत उलेमा हिंद को दो हिस्सो में तकसीम किया और दोनों चचा-भतीजे दोनों हिस्से के सरबराह बने तब से इन दोनों चचा-भतीजों में मुसलमानों के नाम पर हर तरह के गलत काम करने में मुकाबला आराई हो रही है।
मुजफ्फरनगर में दंगे के फौरन बाद अरशद मदनी और उनके गिरोह ने दंगो से मुतास्सिर मुसलमानों की परेशानी का फायदा उठा कर उन पर कब्जा कर लिया। अपने ही मदरसो में रिलीफ कैम्प कायम करवा दिए और उनकी मदद के नाम पर मुल्क और गैर मुल्को से चंदा लेना शुरू कर दिया।
भतीजा महमूद मदनी इस काम में पीछे रह गए तो उन्होंने बीजेपी और नरेन्द्र मोदी का दामन थाम लिया और राजस्थान जाकर बयान दे दिया कि नरेन्द्र मोदी के नाम से कांग्रेस और खुद को सेक्युलर कहने वाली दूसरी पार्टियां मुसलमानों को डरा कर उनके वोट हासिल करना चाहती है।
इधर अरशद मदनी ने गांव छोड़कर भागे मुसलमानों के कैम्पों का इंतेजाम पूरी तरह संभाल लिया। इन कैम्पों के लिए पूरे मुल्क के मुसलमानों और बड़ी तादाद में हिन्दुओं ने भी खाने पीने का सामान, कपड़े, दवाएं, गल्ला और नकदी भेजी। सामान आने का सिलसिला अभी जारी है। इन कैम्पों का इंतेजाम देखने वालो के लिए अब यह कैम्प मोटे मुनाफे का जरिया बन चुके हैं।
इसलिए यह लोग खुद कैम्पों में रह रहे लोगों को खौफजदा करके उनको अपने गांवो में वापस जाने से रोक रहे हैं। अरशद मदनी ने तो बसी और खामपुर गांवो में नए मकान बनवाने शुरू कर दिए। इन दोनों गांवो के लोगों ने यह कहकर ऐतराज जताया कि इस तरह उनके गांव के किनारे खाली पड़ी जमीन पर अगर दूसरे गांव के मुसलमानों को लाकर बसा दिया गया तो इससे उनके लिए नए मसायल पैदा होंगे।
गांव वालो की शिकायत पर जिला इंतेजामिया के अफसरान ने तामीर का काम बंद करा दिया तो अरशद मदनी भाग कर मुलायम सिंह यादव और वजीर-ए-आला अखिलेश यादव के पास पहुंच गए।
अखिलेश यादव को चाहिए कि वह किसी भी कीमत पर अरशद मदनी का मुतालिबा तस्लीम न करें और हर सूरत में जिन लोगों को अपना गांव छोड़कर भागना पडा है उन्हें वापस उनके अपने ही घरों में पहुंचाया जाए इसके लिए गांवो मे सभी फिर्के के लोगों को मिलाकर अमन कमेटियां बनानी पड़ेंगी उससे भी काम ना चले तो सिर्फ चार गांव का असल मसला है उन चारो गांवो में पुलिस चैकी कायम की जाए।
अगर अरशद मदनी की बात मानकर लोगों को दूसरी जगह बसा दिया गया तो इससे अव्वल तो फिर्कावाराना मुनाफिरत में इजाफा होगा और रियासत के तमाम ऐसे गांव में कुछ शरारती लोग मुसलमानों का रहना मुश्किल कर देंगे, जिन गांवो में मुसलमानों के मकानात की तादाद बहुत कम है।
अलिखेश यादव ने मुजफ्फरनगर के दंगे और गांव से भागे मुसलमानों का मसला हल करने के लिए सीनियर वजीर शिवपाल यादव की कियादत में तकरीबन एक दर्जन वजीरों की जो कमेटी बनाई थी उस कमेटी में शामिल वजीरों का भी ख्याल है कि मुजफ्फरनगर में 41 और शामली में जो 17 रिलीफ कैम्प कायम हुए वह सभी कैम्प मदरसों में चल रहे हैं।
इन सभी कैम्पों में इतने बड़े पैमाने पर मदद आ रही है कि मदरसों के लालची मुतंजमीन (मैनेजर) खुद ही नहीं चाहते कि यह कैम्प बंद हो। कैम्पों में रह रहे लोग अगर वापस अपने गांव जाने की बात करते हैं तो कैम्प चलाने वाले लोग ही उन्हें यह कहकर धमका देते हैं कि अगर वह वापस अपने गांव गए तो इस बार उन्हें मार ही दिया जाएगा।
उनको यह धमकियां भी दी जा रही है कि अगर वह अपने गांव वापस चले गए तो जिन लोगों के खिलाफ उन्होंने रिपोर्टे दर्ज कराई हैं, उन गांवो के मुल्जिमान वापस जाने वाले मुसलमानों को डरा धमका कर मुकदमा वापस करवा देंगे, या सादे कागज पर दस्तखत कराकर अपनी मर्जी के मुताबिक तहरीरे तैयार करा लेंगे।
गांव वापसी पर उनकी हिफाजत को खतरा तो हैं ही वह लोग अपना पैसा भी फौरन वापस मांगने लगेंगे जिनसे इन लोगों ने कर्ज ले रखा है। साथ ही उन्हें यह भी धमकाया जा रहा है कि कैम्पों में उनकी जिस बड़े पैमाने पर मदद की जा रही है वह मदद भी गांवो में बंद हो जाएगी और दुबारा अगर कभी भागना पड़ा तो उनकी मदद के लिए कोई खड़ा नहीं होगा।
इस तरह मदरसे के लोग अपने मुफाद में गांव वालो को उनके घर वापस नहीं जाने दे रहे हैं। उनकी बदमाशी का आलम यह है कि शामली के मलकपुर गांव में महकमा जंगलात की जमीन पर जो कैम्प लगा है उस कैम्प में रहने वालों को इन लोगों ने यह भी कह दिया कि अगर वह लोग डटे रहे तो मजबूरन सरकार उन्हें जंगलात की जमीन एलाट कर देगी, इससे उन्हें मुफ्त में जमीन मिल जाएगी।
जमीयत उलेमा हिन्द के एक ग्रुप के लीडर अरशद मदनी काफी बुजुर्ग हो चुके हैं लेकिन जाती मुफाद और खुदनुमाई के लालच में वह इतने अंधे हो गए कि मुजफ्फरनगर के चार गांव से भागे लोगों को दूसरी जगह बसाने के खतरनाक काम में लग गए। उन्हें तो हुकूमत से यह मुतालिबा करना चाहिए था कि जिन गांवो के मुसलमान भाग कर कैम्पों में आए हैं उन्हें हर कीमत पर उनके गांव वापस भेजा जाए, भले ही उनके तहफ्फुज(सेक्युरिटी ) के लिए गांव में पुलिस चैकियां क्यों न खोलनी पड़ें।
लेकिन ऐसा मुतालिबा करके अरशद मदनी मुसलमानों के नाम पर चल रही अपनी दुकान नहीं बंद करना चाहते। इसीलिए वह मुसलमानों को उनके गांवो से बाहर आबाद करने की कोशिश में हैं। यह रूजहान न सिर्फ फसादजदा गांवो वालो के लिए बल्कि दीगर इलाको के कम आबादी वाले गांवो के मुसलमानों के लिए भी खतरनाक है।
जाटो और मुसलमानों के बीच हुए टकराव के बाद मुसलमानों की बहुत बड़ी आबादी अपने गांव छोड़कर कैम्पों में पनाह लिए हुए हैं। उनमें मेरठ और सरधना के चैसठ कुन्बों के 347 लोग कैम्पो में रह रहे हैं। जबकि मुजफ्फरनगर के सदर इलाके के गांवो के कुछ लोग (405) वापस घर चले गए हैं कुछ अभी भी कैम्पों में हैं।
बुढ़ाना के नौ हजार पांच सौ अट्ठाइस लोग अभी भी कैम्पों में रह रहे हैं। जानसठ के छः खानदान के 27 लोग अभी कैम्पों मे हैं और खतौली के 25 लोग कैम्पों में रह रहे हैं। बागपत के बड़ौत में 478 खानदानो के 2329 लोग रिलीफ कैम्पों में है। शामली के सदर हलके के 360 खानादानो के 1112 लोग कैम्पों में है तो कैराना में 7356 लोग पनाहगजीन कैम्पों में रह रहे हैं।
दंगो में घर छोड़कर भागे लोगों के लिए मुजफ्फरनगर में 41 और शामली में 17 कैम्प बनाए गए है। इन कैम्पों में रहने वाले मुसलमान घर लौटना चाहते हैं मगर कैम्प के मुंतजमीन उन्हें डरा-धमकाकर कैम्पों में ही रहने पर मजबूर किए हुए हैं और इन मजबूर, बेबस, बेघर मुसलमानों के नाम पर खुद माल बटोर रहे हैं।
लिहाजा सरकार को चाहिए कि वह इन मुसलमानों को उनके गांवो में पहुंचाने और उन्हें वहां महफूज रखने का मुनासिब बंदोबस्त करें। (हिसाम सिद्दीकी)
———–बशुक्रिया: जदीद मरकज़