नुमाइंदा ख़ुसूसी- क़ब्रिस्तान का एहतिराम और इस की हिफ़ाज़त ज़रूरी है । क़ब्रिस्तान की तौहीन , बेहुर्मती , क़ब्रों पर क़दम रखना चलना , बैठना सब नाजायज़ और मकरूह आमाल हैं । इस कालिहाज़ हर मुस्लमान को करना चाहीए । हुज़ूर की मुबारक हदीस है क़ब्रों पर मत बैठो और उन की तरफ़ मना कर के नमाज़ ना पढ़ो ( तिरमिज़ी / 1034 ) और आज जब कि हिंदूस्तान में फ़िकापरस्त और शरपसंद अनासिर मुस्लमानों की दीगर ओक़ाफ़ी जायदाद के साथ क़ब्रिस्तान को भी हड़पने की कोशिश कररहे हैं जिस की वजह से तहफ़्फ़ुज़ क़ब्रिस्तान का मसला इंतिहाई अहमियत का हामिल होचुका है ।
क़ब्रिस्तान की हिफ़ाज़त हर मोमिन का मिली फ़रीज़ा बन चुका है । इस पस-ए-मंज़र में अगर ख़ुद अपनों ही के हाथों क़ब्रिस्तान की पामाली , क़ब्रों की बे हुर्मती और नाम-ओ-निशान मिटाने की कोशिश हो तो ये मसला इस के लिये बहुत ही काबिल श्रम बात होगी । दरगाह हज़रात युसुफ़ैन में जिस में मशहूर ख़ुदा रसीदा , अल्लाह के वली आराम फ़र्मा रहे हैं । जिस दरगाह के वजूद पर शहर हैदराबाद को नाज़-ओ-फ़ख़र है इस के मुत्तसिल एक क़ब्रिस्तान है । इस के अहाता में एक चोखनडी है जिस में एक मज़ार था । अहल मज़ार के अक़रबा-ए-ओ- रिश्तेदार ज़्यादा तर औरंगाबाद में रहते हैं ।
लेकिन उन के हैदराबाद के दौरे अक्सर होते रहते हैं जब भी वो हैदराबाद आते हैं तो सब से पहले दरगाह युसुफ़ैन पर ज़रूर हाज़िरी देते हैं बादअज़ां दरगाह से मुत्तसिल क़ब्रिस्तान में अपने जद्द-ए-अमजद के मज़ार पर आते हैं और फ़ातिहा ख़वानी वगैरह करते हैं । साल में कई दफ़ा उन का यहां आना होता है और ये सिलसिला अरसा-ए-दराज़ से जारी है । उन के मुताबिक़ हमारे जद अमजद का मज़ार तक़रीबा 100 साला क़दीम है । हम जब कभी साल में एक दो मर्तबा हैदराबाद आते हैं तो सब से पहले दरगाह हज़रत युसुफ़ैन पर हाज़िरी देते हैं फिर अपने दादा के मज़ार पर आकर फ़ातिहापढ़ कर जाते हैं ।
मामूल के मुताबिक़ हम इस बार भी क़ब्रिस्तान आए मगर हम ये देख कर हैरत में रह गए कि हमारे दादा के मज़ार का नाम-ओ-निशान ही मिट चुका है । ज़मीन बिलकुल बराबर करदी गई है । नीज़ हम ने देखा कि चोखनडी पर बॉक्सिंग की एक किट लटक रही है । मज़ीद बताते हुए उन्हों ने कहा कि जगह का मुआइना करने के बाद लगता है कि रोज़ाना कुछ नौजवान यहां आकर बॉक्सिंग मश्क़ करते हैं । जब कि एक पूराख़ानदान इस क़ब्रिस्तान का निगरान कार ही है । जिन की ज़ेर निगरानी ये क़ब्रिस्तान है । जब हम ने इन से राबिता की कोशिश की तो ऊला वो बात करने को ही तय्यार नहीं हुए बहुत कोशिश के बाद जब इन तक रसाई हुई तो उन्हों ने बिलकुल गैर ज़िम्मा दाराना गैर तश्फ़ी बख़श जवाब दिया ।
उन की बातों से अंदाज़ा हुआ कि क़ब्रों की हिफ़ाज़त से उन्हें कोई सरोकार नहीं । इस वाक़िया की इत्तिला हुई तो ख़ुद देखने के लिये मौक़ा पर पहुंचे चुनांचे इत्तिला के मुताबिक़ सूरत-ए-हाल पाकर ख़बर की तसदीक़ हुई । हम ने निगरान कार से मुलाक़ात की । हमारे सवाल के जवाब में उन्हों ने कहा कि ये लोग चूँ कि साल भर के तवील वक़फ़ा के बाद आते हैं और हमें बॉक्सिंग किट लटकाने के लिये कोई मुनासिब जगह नहीं मिल रही थी इस लिये हम ने यहीं कट लटकादी । क़ारईन ! जब हम ने चोखनडी की तस्वीर लेने के लिये कैमरा सँभाला तो वो मिस्र होगए कि तस्वीरकशी ना की जाय और बार बार मना करते रहे ।
हमारे इस सवाल पर वो एक दम मबहूत रह गए कि क्या अगर कोई साल में एक मर्तबा अपने मुताल्लिक़ीन के मज़ार पर आएगा तो आप इस क़ब्र को ज़मीन बोस कर के बराबर करदेंगे । और इस जगह को अखाड़े में तब्दील करदेंगे ? इस का उन के पास कोई जवाब नहीं था । क़ारईन ! इस क़ब्रिस्तान में सैंकड़ों क़ब्रें सिर्फ इस वजह से यहां हैं ताकि हज़रात युसुफ़ैन जैसे औलिया-ए-अल्लाह का ज्वार और क़ुरब हासिल रहे । जब ख़ुदा की रहमत की बारिश उन पर हो तो हम तक भी इस की छंटें पहुंचीं ।
यहां मदफ़ून होने को मुस्लमान बाइस सआदत समझते हैं । क़ारईन ! आप को मालूम होना चाहीए कि हज़रात युसुफ़ैन दरगाह के तहत 30834 मुरब्बा गज़ ज़मीन है जिस की वक़्फ़ रेकॉर्ड की तफ़सील इस तरह है : हैदराबाद 353/ , वार्ड नंबर 5 । गज़्ट नंबर 30-A , सीरियल नंबर 1688 । गज़्ट तारीख 16-8-1984 , पता : दरगाह हज़रात यू सफ़ीन नामपली मआ मस्जिद , आशूर ख़ाना और आबदार खाना जिस के तहत जुमला30834 मुरब्बा गज़ अराज़ी है । (S) (58) सफ़ा नंबर 11 ।।