अज़ान की आवाज़ ने दिखाई इस्लाम की राह, एलन से असगर बने स्कॉटिश शख्श की कहानी

कोई इसे अल्लाह का करम कहे या इंसान की मर्जी लेकिन हमारी ज़िन्दगी में कई बार कुछ ऐसे वाक़्ये हो जाते हैं जिस से पल भर में ही हमारी ज़िन्दगी क्या से क्या हो जाती है।

स्कॉटलैंड की पहाड़ियों में ज़िन्दगी बिताने वाले एलन रूनी को क्या पता था तुर्की के एक बीच (समंदर किनारे) छुट्टियां बिताने के दौरान एक पल में ही उसकी ज़िन्दगी में ऐसा मोड़ आ जायेगा कि उसकी आने वाली ज़िन्दगी ही बदल जायेगी। तुर्की के बीच पर छुट्टीओं का मज़ा ले रहे इस स्कॉटलैंड निवासी ने जब पास की मस्जिद से अजान की आवाज़ सुनी तो उसके दिल को एक अजब सा सुकून मिला जिसने उसके मन में खुद को जानने के लिए एक सफर पर जाने की इच्छा पैदा की। लेकिन शायद ही एलन को पता था कि जिस सफर पर जाने की बात वो सोच रहा है वो सफर तो उसके लिए अजान की आवाज़ सुनने के साथ ही शुरू हो चुका है।

अज़ान की उस आवाज़ को दिल में बसा चुके एलन ने अपने देश वापिस जाकर एक बुकस्टोर से कुरान खरीदी और उसे पढ़ना शुरू किया।

कुरान को पढ़ने के अपने अनुभव के बारे में एलन कहते हैं कि- ” कुरान ने मेरी मन की आँखें खोल दीं, इसमें जो कुछ भी मैंने पढ़ा वो पहले न कभी मैंने समझा था और न ही जाना था। कुरआन ने मुझे अंदर तक हिलाकर रख दिया और मेरी ज़िन्दगी में अच्छे बदलाव लेकर आने के लिए मुझे प्रेरित किया।”

“यह सोचकर मुझे कोई फर्क नहीं पड़ा कि मेरे दोस्त क्या कहेंगे बल्कि मैंने यह सोचा कि मुझे क्या अच्छा लगता है? क्या है जो मुझे सुकून दे रहा है”

एलन ने कहा-” फिर वो दिन आया जब मुझे एहसास हुआ कि मुझे अपनी ज़िन्दगी से जो चाहिए वो मैं इस्लाम के रास्ते चलकर ही हासिल कर सकता हूँ। मेरे लिए इस्लाम ही सही रास्ता है। मैं नमाज़ अदा करता था, दिन में पांच बार। लेकिन मैं कभी भी किसी और मुस्लिम से नहीं मिला न ही मेरे दोस्तों में से कोई भी मुस्लिम था। लेकिन यह सोचकर मुझे कोई फर्क नहीं पड़ा कि मेरे दोस्त क्या कहेंगे बल्कि मैंने यह सोचा कि मुझे क्या अच्छा लगता है? क्या है जो मुझे सुकून दे रहा है?

“सब कुछअपना लग रहा था; रास्ता भी ,मंज़िल भी, और इस सफर की हमसफ़र कुरान भी”

फिर18 महीने इस्लाम को समझने के बाद मैं अपने शहर में बनी छोटी सी मस्जिद पहुंचा और वहां का दरवाज़ा खटखटाया। वहां के लोग मुझे वहां देख अचरज में थे लेकिन पहले पल से ही मुझे कभी यह एहसास नहीं हुआ कि उन लोगों में मैं कोई अजनबी या बाहरी हूँ। सब कुछअपना लग रहा था; रास्ता भी ,मंज़िल भी, और इस सफर की हमसफ़र कुरान भी