नाटो अफ़्वाज की जानिब से अफ़्ग़ानिस्तान में क़ुरआन मजीद की बेहुर्मती के वाक़िया के बाद अफ़्ग़ान अवाम के ज़बरदस्त एहतिजाज और इत्तेहादी अफ़्वाज के ज़ेर-ए-कंट्रोल फ़िज़ाई पट्टी बिगराम अर पोर्ट पर मुज़ाहिरे ने अवाम के जज़बा ईमानी का सबूत दिया है।
मग़रिबी ताक़तों के ज़ेर-ए-असर अफ़्ग़ान हुकूमत में नाटो अफ़्वाज की ज़्यादतियां कोई नई बात नहीं है मगर इस मर्तबा फ़ौज ने क़ुरआन मजीद की बेहुर्मती करके अफ़्ग़ानियों को सख़्त ब्रहम कर दिया है। अमेरीका के बिशमोल कई ममालिक गुस्ताखाना हरकतों के लिए जाने जाते हैं।
इतेहादी अफ़्वाज में शामिल सिपाहीयों की गुस्ताखाना कार्यवाईयों के इस से पहले भी कई वाक़ियात रौनुमा हुए हैं अमेरीका की बदनाम-ए-ज़माना जेलों जैसे क्यूबा के जज़ीरा में गौणता नामो बे जेल इराक़ की अब्बू ग़रीब जेल में भी इहानत इस्लाम जैसे वाक़ियात का इर्तिकाब करने वाले सिपाहीयों का अंजाम भी दर्दनाक हुआ है। अफ़्ग़ानिस्तान में नाटो अफ़्वाज के हरकत पर अमेरीकी डीफेंस सिक्योरिटी नाटो के सरबराह अमेरीकी कमांडर जनरल जान ऐलन ने माज़रत ख़्वाही की है इस वाक़िया की संगीनी सिर्फ एक मुआफ़नामा पेश कर देने से ख़तम नहीं हो जाती।
जज़बात को ठेस पहूँचाना, ज़हनी तौर पर अज़ीयत देने के लिए अमेरीकी और इसकी इत्तेहादी अफ़्वाज की आदत है। गुस्ताखाना हरकतों के ज़रीया ये लोग अवाम को जज़बात में लाकर उन को इश्तेआल अंगेज़ी पर उतारते हैं। बिगराम एयरपोर्ट पर भी ऐसा ही हुआ, अवाम को पहले मुश्तइल किया गया।
जब अफ़्ग़ान अवाम ब्रहम होकर अखटा हुए तो उन पर फायरिंग करते हुए लहूलुहान किया गया। अफ़्ग़ानिस्तान में दूसरे दिन भी तशद्दुद बढ़ता जा रहा है। फायरिंग में 5 अफ़राद हलाक दर्जनों ज़ख़मी हुए। वजह यही है कि अवाम को ज़हनी वजसमानी तौर पर कमज़ोर-ओ-ख़ौफ़ज़दा बनाया जाए।
मगर अफ़्ग़ान अवाम ने अपने हरारत ईमानी का मुज़ाहरा करके बिगराम एयरपोर्ट और मुल्क भर में हंगामा किया। माज़ी में भी अफ़्ग़ानिस्तान में इस किस्म के मुज़ाहिरे रौनुमा हो चुके हैं गुज़श्ता साल अप्रैल में एक अमेरीकी पादरी के फ़्लोरीडा में क़ुरआन मजीद के नुस्खे़ नज़र-ए-आतिश करने के ख़िलाफ़ परतशद्दुद मुज़ाहिरों के दौरान 18 अफ़राद हलाक हुए थे।
मुल्क भर में लोगों के एहतिजाज को देखते हुए इस मर्तबा भी अफ़्ग़ान पुलिस और इत्तेहादी अफ़्वाज ने ताक़त का इस्तेमाल किया जानी नुक़्सानात हुए। इहानत इस्लाम और गुस्ताखाना हरकतों के ज़रीया मग़रिबी इत्तेहादी ताक़तें मज़हबी जज़बात को ठेस पहुँचाई हैं।
अमेरीका को अपनी जंग की तबाही के बाद के हालात से निमटने के लिए पुरअमन इक़दामात करने अफ़्ग़ान अवाम का दिल जीत कर हालात को मामूल पर लाने की कोशिश करने के बजाय नफ़रत फैलाने की हरकतों में दिलचस्पी है तो जंग ज़दा मुल्क में अबतरी बरक़रार रहेगी।
अफ़्ग़ान अवाम की मईशत की बेहतरी और यहां इंफ्रास्ट्रकचर की फ़राहमी के इलावा ख़ुशहाली लानी चाहीए जो ये दुनियाए अमन के लिए ज़रूरी है। अमेरीका अफ़्ग़ान के दरमयान इत्तेफ़ाक़ पैदा होना इसलिए ज़रूरी है कि अमेरीका को अज़ ख़ुद मआशी तबाही से दो-चार होना पड़ रहा है अफ़्ग़ानिस्तान की माली मुश्किलात तो अमेरीका के पैदा कर्दा हैं ख़ुद अमेरीकी अवाम को भी इसकी हुकूमतों की नाकाम पालिसीयों और जारहीयत पसंदाना अज़ाइम की सज़ा मिल रही है इस लिए ये लोग बेरोज़गारी का शिकार होचुके हैं।
अबतर हालात दरपेश होने के बावजूद अमेरीका और इसके इत्तेहादी ममालिक अफ़्ग़ानिस्तान में मुख़्तलिफ़ सोच के साथ मौजूद हैं तो उनको अपनी सोच तब्दील करनी होगी। अमेरीका को अपनी सोच बदलना होगा कि अफ़्ग़ानिस्तान में वो मज़हबी जज़बात को ठेस पहूँचा कर अमन को दिरहम ब्रहम करके अपने मक़ासिद में कामयाब नहीं होगा।
अमेरीका में बढ़ती बेरोज़गारी और ग़ैरमामूली मालीयाती ख़सारे की वजह से अमेरीकी वोटर्स में ये बेहस शुरू हुई है कि ओबामा नज़म-ओ-नसक़ उन को मआशी तौर पर तबाह करके रख देगा। अमेरीका अपनी मामूली इम्दाद के इव्ज़ अफ़्ग़ानिस्तान की हुकूमत से सब कुछ हासिल करना चाहता है।
हामिद करज़ई की हुकूमत ने भी अमेरीका की हर बात को जायज़ क़रार दिया है इससे अफ़्ग़ान अवाम की ज़िंदगी में बेहतरी की उम्मीदें जूं की तूं मुअल्लक़ हैं। अफ़्ग़ानिस्तान में तालिबान के साथ मुज़ाकरात करते हुए ख़ुद को महफ़ूज़ तरीक़ा से निकालने की कोशिश करने वाले अमेरीका को नाटो अफ़्वाज पर भी लगाम लगाने की ज़रूरत है।
नफ़रत और जज़बात को ठेस पहूँचा कर अमन की तवक़्क़ो नहीं की जा सकती। अफ़्ग़ानिस्तान में इंफ्रास्ट्रकचर, तालीम, सेहत के मंसूबे जो हुकूमत के तरक़्क़ीयाती प्रोग्राम में शामिल होते हैं तवज्जा देनी है। अफ़्ग़ानिस्तान के अवाम के लिए एक नाक़ाबिल तरदीद हक़ीक़त है कि वो 11 सितंबर 2001 के बाद हालत जंग में ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं उन पर अब मज़हबी दिल आज़ारी के हमले किए जा रहे हैं।
अफ़्ग़ानिस्तान के अवाम को अपनी सलामती और मुआशरती ज़िंदगी की फ़िक्र के साथ मज़हबी तख्सीस के तहफ़्फ़ुज़ के लिए भी फ़िक्र करनी है। नाटो अफ़्वाज हो या कोई और गुस्ताख इस्लाम, मुस्लमानों की दिल आज़ारी के ज़रीया उन्हें ठेस पहूँचाते हैं। लेकिन इन नाज़ुक तरीन मुआमलात में भी अफ़्ग़ान अवाम को पुरअमन तरीक़ा से दुश्मन ताक़तों और इस्लाम की इहानत-ओ-क़ुरआन मजीद की बेहुर्मती करने वालों के ख़िलाफ़ अपना एहतिजाज दर्ज कराने के साथ ये ख़्याल भी रखना ज़रूरी है कि वो किसी साज़िश का शिकार ना बनाए जाएं।
अमेरीका ने नाईन इलैवन 9/11 के बाद अपनी दाख़िली सलामती को तो मज़बूत बना लिया है मगर माबाक़ी अक़्वाम की दाख़िली सलामती के लिए कई किस्म के ख़तरात पैदा कर दिए हैं। अफ़्ग़ानिस्तान के दार-उल-हकूमत काबुल और जलालाबाद के इलावा दीगर शहरों में अमेरीका मुर्दाबाद के नारों के बाद अमेरीका को होश के नाख़ुन लेने होंगे।