आदाबे जियाफत

(मौलाना सैयद अहमद दमीज नदवी) अल्लाह तआला का इरशाद है-‘‘ क्या इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) के मोअज्जिज मेहमानों की हिकायत आप तक पहुंची जबकि वह मेहमान उनके पास आए फिर उनको सलाम किया। इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) ने भी (जबाव में) सलाम किया (और कहने लगे) अनजान लोग मालूम होते हैं।

फिर अपने घर की तरफ चले और एक मोटा ताजा बछड़ा (तला हुआ) लाए और उसको उनके पास लाकर रखा (चूंकि वह फरिश्ते थे खा नहीं सकते थे) इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) ने कहा कि आप लोग खाते क्यों नहीं (जब फिर भी न खाया) तो दिल में खौफजदा हुए (कि यह लोग कहीं मुखालिफीन में से तो नहीं) फरिश्तों ने कहा कि तुम डरो मत (हम आदमी नहीं फरिश्ते हैं) और यह कहकर उनको एक बेटे की बशारत दी जो बड़ा आलिम (यानी नबी) होगा।

(यह बात हो ही रही थी कि) इतने में उन की बीवी (जो कहीं खड़े होकर सुन रही थीं) बोलती पुकारती आई कि मैं बुढि़या बांझ (बच्चा कैसे होगा) फरिश्ते कहने लगे (ताज्जुब मत करो) तुम्हारे परवरदिगार ने ऐसा ही फरमाया है और कुछ शक नहीं कि वह बड़ा हिकमत वाला बड़ा जानने वाला है। (सूरा जारियात-24.30)

हजरत इब्राहीम और हजरत लूत (अलैहिस्सलाम) दोनों जलीलुल कद्र पैगम्बर है। दोनों अलग-अलग इलाकों के लिए पैगम्बर बनाए गए। दोनों का जमाना एक था। कदीम जमाने में एक ही वक्त मुख्तलिफ इलाकों में अलग-अलग पैगम्बर मबऊस किए जाते थे। हजरत लूत (अलैहिस्सलाम) की कौम शिर्क के साथ हम जिन्स परसती की लानत में भी मुब्तला थी।

उन्होंने अपनी कौम को हर तरह समझाया और दीने हक की दावत देते हुए उन्हें इस बुराई से रोकते रहे लेकिन कौमे लूत ने अपने पैगम्बर की एक न मानी। हठधर्मी और सरकशी पर अड़े रहे। आखिरकार अल्लाह तआला ने कौमे लूत पर अपना अजाब नाजिल करने का फैसला फरमाया।

इसलिए कौमे लूत पर अजाब लाने के लिए जो फरिश्ते अल्लाह ने भेजे थे वह सबसे पहले हजरत इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) के पास पहुंचे। खूबरू इंसानों की शक्ल में जब यह फरिश्ते हतरत इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) के पास पहुंचे तो उन्होंने आने वाले मेहमानों के साथ जिन्स इंसान ही से समझ कर जो इकराम किया ऊपर की आयतों में इसका तजकिरा किया गया है। हजरत इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) बड़े मेहमान नवाज थे।

वह हमेशा अपने दस्तरख्वान पर किसी न किसी मेहमान को शरीक कर लिया करते थे। ऊपर की आयतों में हजरत इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) के हवाले से मेहमान नवाजी के आदाब जिक्र किए गए हैं।

इस्लाम में मेहमान नवाजी की बड़ी अहमियत है। यह दरअस्ल सच्चे मोमिन होने की निशानी और कमाले ईमान की दलील है। इसलिए इरशादे नबवी (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्ल्म) है-‘‘ जो अल्लाह और यौमे आखिरत पर ईमान रखता है उसे चाहिए कि वह अपने मेहमान का इकराम करे (बुखारी शरीफ) नबी करीम (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्ल्म) शुरू से ही बड़े मेहमान नवाज थे।

इसका अंदाजा इस बात से होता है कि जब आप (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्ल्म) पर गारे हेरा में पहली वहि नाजिल हुई और आप (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्ल्म) इंतिहाई घबराहट के आलम में अपने घर तशरीफ लाए और अपनी बीवी हजरत खदीजा (रजि0) से अपनी परेशानी का जिक्र किया तो हजरत खरीजा (रजि0) ने आप (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्ल्म) को तसल्ली देते हुए आप (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्ल्म) की जिन खूबियों का जिक्र किया उनमें से एक यही थी कि आप बड़े मेहमान नवाज है।

अल्लाह तआला आपको जाया नहीं करेगा। जब कभी मस्जिदे नबवी में कोई मेहमान आता आप (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्ल्म) अपने घर वालों के पास कहलवाते कि खाने के लिए कुछ है अगर जवाब हां में आता है तो आप (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्ल्म) खुद मेहमान नवाजी फरमाते अगर नफी में जवाब आता तो सहाबा में एलान फरमाते कि कोई न कोई आमादा हो जाए। इस तरह एक बार मेहमान आया तो आप (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्ल्म) ने पहले अपनी बीवियो से कहलवा भेजा।

नफी में जवाब आया तो आप (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्ल्म) ने सहाबा में एलान फरमाया। एक अंसारी सहाबी (रजि0) ने कहा मैं इस सआदत के लिए तैयार हूं। इसलिए वह मेहमान को लेकर घर पहुंचे। बीवी से मालूम किया तो बीवी ने कहा सिर्फ थोड़ा सा खाना है जो बच्चों के लिए काफी हो सकता है।

बच्चों को बहलाकर सुलाया गया और शौहर ने खाने के बहाने चराग को गुल कर दिया। इस तरह मेहमान ने खाया और सारे घर वाले भूके रहे। कुरआन मजीद में उनकी तारीफ की गई। मशहूर कौल है मेहमान मोहब्बत की दलील है। दूसरा कौल है मेहमान से ज्यादा कोई चीज महबूब नहीं इसलिए कि मेहमान का खर्च तो अल्लाह पूरा करेंगे। नबी करीम (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्ल्म) का इरशाद है जब तक मेहमान के सामने दस्तरख्वान पर खाना तैयार रहता है फरिश्ते रहमत की दुआ करते रहते हैं जब तक दस्तरख्वान उठा न लिया जाए।

हजरत अली (रजि0) फरमाते हैं कि मैं घर पर अपने मुसलमान भाइयों को खाने के लिए इकट्ठा करूं यह मेरे नजदीक गुलाम आजाद करने से ज्यादा महबूब है। मेहमान नवाजी करने वाले मेजबान को लिहाज करना चाहिए- कि मेहमान की आमद पर उसकी जियाफत में उजलत करे क्योंकि पता नहीं मेहमान दूर दराज से आया हो। हजरत हातिम आसिम का कौल है कि उजलत शैतान का काम है लेकिन पांच चीजों में उजलत करनी चाहिए- 1. मेहमान को खिलाने में, 2. मैयत की तजहीज व तकफीन में, 3. बाकिरा के निकाह में, 4. कर्ज लौटाने में, 5. गुनाह से तौबा करने में।

मेहमान की आमद पर यह न पूछे कि क्या आप खाना खाएंगे। हजरत इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) के पास जब मेहमान आए तो उन्होंने पूछा नहीं बल्कि फौरन खाना हाजिर कर दिया। खाना पेश करने के बाद बेहतर है कि खुद भी शामिल हो वरना मेहमान के साथ बैठा रहे ताकि उसे कोई जरूरत पेश आए तो पूरी की जा सके। इसी तरह मेजबान को चाहिए कि उस वक्त तक दस्तरख्वान न उठाए जब तक मेहमान पूरी तरह फारिग न हो जाए।

मेहमान से पहले खुद खाना मौकूफ न करे वरना मेहमान को तकल्लुफ होगा। अगर मेहमान किसी खाने से माजरत कर रहा हो तो उसे इसरार न करे। जब मेहमान खाने से फारिग हो जाए और वापसी का वक्त हो जाए तो मेहमान को रूखसत करने के लिए कुछ दूर साथ चलें।

मेहमान को भी चंद बातों का लिहाज रखना चाहिए- ऐन खाने के वक्त किसी के पास न पहुंचे। जब मेजबान खाना पेश करे तो ख्वाहिश और तकाजा हो तो खाना ले बिला वजह तकल्लुफ न करें। मेहमान को चाहिए कि वह मेजबान के सामने खास खाने की फरमाइश न करे। मेजबान जो कुछ पेश करे उस खाने को हकीर और मामूली ख्याल न करें। मेजबान के घर कयाम के दौरान किब्ला के रूख कजाए हाजत की जगह के अलावा कोई चीज दरयाफ्त न करें।

मेजबान के पास अगर कोई खिलाफे शरअ चीज देखे तो नर्मी और हिकमत के साथ उसकी इस्लाह करें। मेहमान को चाहिए कि वह मेजबान के लिए सेहत व आफियत और खैर की दुआ करे।