आला तालीमी मेयार में बेहतरी की ज़रूरत: सदर जम्हूरिया

चेन्नई, 29 दिसंबर: (सियासत न्यूज़) सदर जम्हूरिया परनब मुखर्जी ने हिन्दुस्तानी यूनीवर्सिटीयों की जानिब से आला तालीमी मयार को बेहतर बनाने की ज़रूरत पर ज़ोर देते हुए ख़ानगी यूनीवर्सिटीज़ पर ज़ोर दिया कि वो भी आला तालीमी शोबा में महिदूद वसाइल और लामहदूद मसाइल से निमटने के लिए कलीदी किरदार अदा करें। एस एम आर यूनीवर्सिटी के जलसा तक़सीम अस्नाद से ख़िताब करते हुए सदर परनब मुखर्जी ने कहा कि हिंदूस्तान में आला तालीम के मयारात को बेहतर बनाने की ज़रूरत है।

ज़माना-ए-क़दीम में हिन्दुस्तान में नालंदा और टकसीला जैसी जमिआत थीं जिन्होंने ख़ुद को बैन-उल-अक़वामी आला तालीमी मराकज़ की हैसियत से शोहरत हासिल की जहां इल्म-ओ-दानिश के आला तरीन मयारात थे जहां से सारी दुनिया के तशनगान इल्म हुसूल-ए-तालीम के लिए आया करते थे।

इसके बरख़िलाफ़ आज के दौर में कई हिन्दुस्तानी तलबा आला तालीम के लिए बैरूनी ममालिक का रुख़ करना पसंद करते हैं। उन्होंने इस तास्सुर का इज़हार किया कि हिंदूस्तानी जमिआत को मयारी तालीम फ़राहम करने की ज़रूरत है जो बैन-उल-अक़वामी मयारात से हम आहंग हो।

उन्होंने कहा कि हमें हमारी यूनीवर्सिटीयों की हक़ीक़त को बदलना चाहीए जो दुनिया की सरकरदा यूनीवर्सिटीयों की फ़हरिस्त में शामिल नहीं है। हिन्दुस्तानी जमिआत को ये हदफ़ मुक़र्रर करना चाहीए कि वो तालीम, तदरीस और तहक़ीक़ में आलमी मयारात के मुताबिक़ आला तरीन तालीमी इदारा जात की हैसियत से उभरेंगे।

उन्होंने कहा कि हमारे आला तालीमी शोबा में अगरचे वसाइल बहुत महिदूद हैं लेकिन लामहदूद मसाइल हैं चुनांचे ये निहायत ज़रूरी है कि ख़ानगी शोबा भी हिन्दुस्तान के आला तालीमी शोबा में कलीदी रोल अदा करे। इदारा बराए दिफ़ाई तहक़ीक़-ओ-तरक़्क़ी (डी आर डी ओ) के डायरेक्टर जनरल वी के सरसोत और सरकरदा फिजीशियन पवन राज गोविल को इस मौक़ा पर सदर जम्हूरिया मुखर्जी ने एज़ाज़ी डाक्टरेट की एज़ाज़ी डिग्रियां अता कीं।