कहते हैं मोहम्मद रफी की जादूई आवाज हिंदुस्तान के करोड़ों दिलों में बसती है। एक वक्त ऐसा भी रहा जब रफी की आवाज से लोगों के दिन की शुरुआत होती थी, और रफी के सुरों के साथ ही रात ढलती थी। 38 साल पहले आज ही के दिन रफी साहब ने खुद को खामोश कर लेने का फैसला किया था लेकिन आज भी उनके तराने जेहन में गूंजते हैं 20 कहानियों में आज बात सुरों के शहंशाह मोहम्मद रफी की।
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वो अपने नगमों से जिंदगी पर छा गए.अपनी तानों से जहां वालों के दिलों को भरमा गए। जब तक दुनिया की इस महफिल में रहे.सात सुरों के साज पर 26 हजार गीत गा गए। कहा जाता है कि मोहम्मद रफी ने अपने गाए 26 हजार गीतों के जरिए कुल 517 तरह के मूड बयां किए।
नफरत की दुनिया में रफी की आवाज प्यार के साज से सजी थी। उनकी तान में अगर हुस्न अंगड़ाई लेती है.तो दर्द के मारों का गम भी रफी की आवाज की शबनम में धुल जाती है। 31 जुलाई 1980 को रफी साहब ने इस दुनिया को अलविदा कर गए, लेकिन आज भी जब छिड़ते हैं वो सुर, अपने गीतों में फिर से जिंदा हो उठते हैं मोहम्मद रफी।
गायकी के हर पैमाने पर रफी साहब की आवाज एकदम खरी उतरती थी। खुदा ने रफी साहब पर सुरों की नेमत दिल खोल कर बरसाई थी। रफी साहब की आवाज के साथ फिल्मी नगमों की रवानगी बदलती चली गई, परदे पर अदायगी का अंदाज बदलता चला गया। पहले जो गीत क्लासिकल म्यूजिक से बोझिल लगते। वो रफी साहब के सुरों के सांचे में ढल कर लोगों के दिलों में उतरते चले गए।
मोहम्मद रफी की आवाज दुनिया को भले ही जादुई लगे लेकिन खुद रफी साहब के लिए ये इबादत की इल्तजा थी। इतने बड़े सिंगर बनने के बावजूद भी शोहरत का गुमान रफी साहब को कभी नहीं रहा। कहते हैं कि अपने हर नए गीत की रिकॉर्डिंग से पहले वो किसी नौसिखिए की तरह रियाज किया करते थे.लेकिन जब रिकॉर्डिंग स्टूडियों में होते तो एक ही टेक में पूरे गीत को रिकॉर्ड कर जाते थे।
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रफी साहब के सुरों सजा ये सदाबहार गीत सूरज फिल्म का है.। साल 1966 में आई फिल्म सूरज में इस गीत को बॉलीवुड में जुबली कुमार के नाम से मशहूर राजेंद्र कुमार और वैजयंती माला पर फिल्माया गया है। हिंदी सिनेमा के अगर टॉप टेन रोमांटिक गीतों में इस गीत को भी शुमार किया जाता है। शायद ही कोई शादी-ब्याह का जश्न हो जहां इस गीत को नहीं बजाया जाता हो।
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रफी की आवाज ने अपने दौर के हर स्टार को सुपरस्टार बना दिया। फिल्मों में जब रोमानी गीतों का चलन बढ़ने लगा.तो संगीतकारों को रफी साहब की आवाज से ज्यादा मुफीद और किसी की आवाज नहीं लगती थी। कहा जाता है कि राजेन्द्र कुमार तो जुबली कुमार रफी के गाए सुपरहिट गाने की बदौलत ही बने थे। दरअसल राजेंद्र कुमार की फिल्मों में गाए रफी के गीत इतने हिट हुए, कि वो जुबली कुमार बन गए।
मोहम्मद रफी की आवाज को बॉलीवुड की सबसे गंभीर आवाजों में शुमार किया जाता है बावजूद उसके तूफानी गीतों को भी रफी साहब की आवाज की रवानगी देखते बनती थी। और ऐसे गानों के लिए उनके फेवरेट हीरो थे- शम्मी कपूर।
कहते हैं कि शम्मी कपूर के लिए गाने की बात सुनकर ही खुश हो जाते मोहम्मद रफी शम्मी कपूर पर रफी साहब की आवाज इतनी फबती थी कि आगे चलकर शम्मी कपूर अपनी हर फिल्म में रफी साहब से गवाने की जिद करते। रफी साहब को लेकर शम्मी कपूर की दीवानगी का अलय ये था कि वो फिल्म की शूटिंग को छोड़ कर रिकार्डिंग स्टूडियो पहुंच जाते थे।
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कहते हैं कि ब्रह्मचारी फिल्म के इस गीत के मुखड़ा और पूरा अंतरा रफी साहब एक ही सांस में गा गए थे। दरअसल शम्मी कपूर ने रफी साहब के सामने ऐसा करने की शर्त रख दी थी। और रफी साहब ने शम्मी कपूर की उस शर्त को ना सिर्फ कबूल किया बल्कि एक सांस में गीत गाकर पूरा भी किया।
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जितने बेमिसाल गाने, उतने अनूठे थे रफी साहब के शौक। उनका सबसे पसंदीदा शगल था पतंग उड़ाना, रिकार्डिंग के बीच थोड़ी सी भी मोहलत मिलती, तो छत पर जाकर पतंग उड़ाने लगते। पतंगबाजी का शौक रफी साहब को लाहौर के दिनों से ही लगा था. लाहौर में उनके बड़े भाई का सैलून था। पढ़ाई के बाद खाली वक्त में मो. रफी लोगों की हजामत बनाते, लेकिन उनका शौक तो संगीत था। गले से निकलती इतनी मधुर आवाज कि सुनने वाले उस गीत में खो जाए.। इसकी प्रेरणा रफी साहब को एक भिखारी से मिली थी.।
लाहौर में मो. रफी छोटे मोटे जलसों में गाया करते थे। ऐसा ही एक जलसे में मशहूर गायक के एल सहगल को गाना था। सहगल को सुनने उस जलसे में रफी भी गए थे। लेकिन सहगल साहब जब मंच पर आए, तो अचानक माइक खराब हो गया।
https://youtu.be/MTwtrF243kY
माइक के बिना सहगल साहब ने गाने से मना कर दिया फिर जब तक माइक ठीक नहीं हुआ रफी साहब को गीत गाने का मौका मिला। रफी साहब का एक गाना खत्म हुआ, तो भीड़ दूसरे गाने के लिए शोर मचाने लगी। ये देखकर सहगल साहब भी हैरान थे. कुछ देर बाद जब माइक ठीक हुआ, सहगल साहब मंच पर आए और रफी को शाबासी दी।