आख़िरत को तर्जीह दो

हज़रत अब्बू मूसा रज़ी अल्लाहु तआला अनहु कहते हैं कि रसूल करीम‌ स०अ०व० ने फ़रमाया जो शख़्स अपनी दुनिया को दोस्त रखता है (इस क़दर दोस्त रखना कि ख़ुदा की मुहब्बत पर ग़ालिब आजाए) तो वो अपनी आख़िरत को नुक़्सान पहुंचाता है (यानी आख़िरत में अपने दर्जा को घटाता है क्यूंकि जब इस पर दुनिया की मुहब्बत ग़ालिब आजाती है तो इस का ज़ाहिर-ओ-बातिन हमावक़त दुनियावी उमोर में मशग़ूल रहता है और उसकी वजह से वो उमोरे आख़िरत और ताअते इलाही के लिए फ़राग़त-ओ-मौक़ा से महरूम रहता है) और जो शख़्स अपनी आख़िरत को दुरुस्त रखता है वो अपनी दुनिया को नुक़्सान पहुंचाता है (क्यूंकि वो हमावक़त उमोरे आख़िरत में मशग़ूल रहने की वजह से दुनियावी उमोर की तरफ़ मुतवज्जा नहीं रहता) पस (जब तुम ने ये जान लिया कि दुनिया और आख़िरत की दोस्ती एक दूसरे के साथ जमा नहीं होसकती तो) तुम्हें चाहीए कि जो चीज़ फ़ना होजाने वाली है यानी दुनिया, इस पर उस चीज़ को तर्जीह दो जो बाक़ी रहने वाली है यानी आख़िरत। (अहमद, बीहक़ी)