रोजगार के नाम पर कई प्लेसमेंट एजेंसियां झारखंड के देही आदिवासी अक्सरियत इलाकों के नाख्वानदा और कम पढ़ी लिखी लड़कियों को बड़े शहरों व बड़े शहरों की रास्ता दिखाती है। लालच व गरीबी की मार झेल रही ये लड़कियां इनके झांसे में आकर बिचौलियों व दीगर गैर समाजी अनासिर के चंगुल में फंस जाती हैं। कहा जा सकता है कि झारखंड में इंसानी स्मगलिंग का पांव बड़े सतह तक पसरा हुआ है। इसका सबसे ज्यादा असर झारखंड, बिहार और मगरीबी बंगाल जैसे रियासतों में पड़ रहा है। इंसानी स्मगलिंग का अहम मक़सद जिंसी इस्तेहाल व बंधुआ मजदूरी रहा है़
कुदरती मूअदनी आलात होने के बाद भी झारखंड की आवाम गरीबी का गम झेल रही है। पसमानदा व आदिवासी तबके, जिसे न तो तालीम मिल पा रही है और न ही रोजगार के मौके। ऐसे में एजेंटों के लालच, बनावटी दिखावा और वादों के फरेब में आकर बिचौलियों के चंगुल ये फंसती चली जाती हैं इस तरह के कामों में ज़्यादातर लोकल एजेंट मौलूस होते हैं।
कई बार ऐसी लड़कियां भी इस तरह के काम में शामिल होती हैं, जो पहले खुद इंसानी तस्करी का शिकार हो चुकी होती हैं और दलाल के तौर में काम करती हैं। ये बाहर से आने के बाद अपने रहन-सहन और पहनावे से दूसरों को अटरेक्ट करती हैं और उन्हें भी अमीरों जैसी जिंदगी जीने के लिए बाहर बड़े शहरों की तरफ जाने के लिए उकसाती हैं।
इन जिलों में इंसानी स्मगलिंग के ज्यादातर मामले : गुमला, चाईबासा, गढ़वा, खूंटी, रांची, सिमडेगा, साहेबगंज, लोहरदगा, गोड्डा और लातेहार जिले की लड़कियां झांसे में आकर एजेंटों के चंगुल में फंसती रही हैं।
बाहरी रियासतों के इन जगहों पर बेची जाती हैं लड़कियां : दिल्ली के साकेत नगर, नोयडा जैसे कई दीगर बड़े इलाक़े, पंजाब के मानसा, संगरूर, मलेर कोटला, नवांशहर और लुधियाना, मानसा जिले का गांव मघानिया ऐसे कामों का सेंटर पॉइंट् माना जाता रहा है। वहीं हरियाणा के साथ अब ट्रैफिकिंग का जाल मुंबई, बेंगलुरू, राजस्थान समेत केरल तक पहुंच गया है। खरीद-फरोख्त कर जिश्मनी इस्तेहाल, बिन ब्याही मां, इंसानी तस्करी, भीख मंगवाना, ईट भट्ठों के कामों में लगाना इन लड़कियों का इस्तेमाल किया जाता रहा है।