हैदराबाद 24 जनवरी : ज़बान का कोई मज़हब ज़ात-पात सरहद या इलाक़ा नहीं होता हर ज़बान की अपनी ख़ुसूसियात तारीख और रवायात होती हैं और तमाम ज़बानें इंसानियत को फ़रोग़ देने का काम करती हैं लेकिन अफ़सोस कि हिंदुस्तान में आज़ादी के बाद अंग्रेज़ जाते हुए उसे ज़हर आलूद बल्कि मोहलिक वाइरस छोड़ गए हैं जो हमारी क़ौमी ज़बान हिन्दी की बेटी उर्दू को नुक़्सान पहुंचाने में कोई कसर बाक़ी नहीं रखते ।
आज तक उर्दू दुश्मन ( वाइरस ) फिर्कापरस्त ताकतें ये समझाने से क़ासिर हैं कि आख़िर उन्हें उर्दू से इतनी दुश्मनी क्यों है? उर्दू का क़सूर यही है कि उस ने जंगे आज़ादी में हिंदु और मुसलमानों में इत्तिहाद पैदा किया । अपने पुरकशिश नारों से अंग्रेज़ों के दिलों में मुजाहिदीन आज़ादी की हैबत तारी की । वतन अज़ीज़ को अल्लामा इक़बाल के तराने की शक्ल में सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान से ताबीर किया ।
ग़ज़लों और नज़मों के ज़रीया मुख़्तलिफ़ ज़बानों के इस गुलिस्तां में ख़ुशबू बिखेरने का सबब बनी और इस ज़बान का क़सूर ये है कि उसे मुस्लमान भी बोलते हैं । बहरहाल हमारे रियासत खास तौर पर हैदराबाद में उर्दू के साथ ग़ैरमामूली तास्सुब बरता जा रहा है ।
ऐसा लगता है कि उर्दू दुश्मनी सरकारी महिकमों में स्रावित कर गई जिस के नतीजा में शहर की तारीख़ी इमारतों , क़दीम तालीमी इदारों यहां तक कि हाईकोर्ट में भी उर्दू दुश्मनी अपनी इंतिहा को पहूंच गई है ।
क़ारईन आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के बाबुल दाखिला में दाख़िल होते ही आप की नज़र बार एसोसिएशन या अंजुमन वुकला के दफ़्तर पर पड़ेगी । इस दफ़्तर का ज़िक्र हम इस लिए कर रहे हैं कि कभी इस दफ़्तर पर अंग्रेज़ी में बार एसोसिएशन के साथ साथ उर्दू में अंजुमन वुकला की ख़ूबसूरत तहरीर मौजूद थी ।
मौजूदा हालात में हर सतह पर फ़िर्कापरस्ती और ज़हर आलूद ज़हनों के इलावा हुक्काम की उर्दू दुश्मनी को देखते हुए हमें यक़ीन था कि जंगे आज़ादी को नया रुख़ देने वाली उर्दू ज़बान को बार एसोसिएशन के दफ़्तर से मिटा दिया होगा।
क्यों कि हाईकोर्ट की तारीख़ी इमारत के बाहर जो बोर्ड लगाया गया है इस पर अंग्रेज़ी और तेलुगु तो मौजूद है लेकिन जानबूझ कर उर्दू को नज़रअंदाज कर दिया गया ।
ये बात वाज़ेह हो चुकी है कि उर्दू दुश्मनों ने अंजुमन वुकला की तहरीर मिटा दी । कब मिटाई कैसे मिटाई ये बात मंज़रे आम पर ही नहीं आई । वहाँ एक तारीख़ी तस्वीर भी है, ये तारीख़ी तस्वीर इस बात का सबूत और शायद है कि दफ़्तर पर कभी उर्दू बोर्ड भी हुआ करता था ।
हम ने दफ़्तर में देखा कि अंजुमन वुकला के सदूर की एक तवील फ़हरिस्त है। 1956 में इस के पहले सदर डी नरसा राव मुंतख़ब हुए थे और 1958 में जनाब जलील अहमद को बार एसोसिएशन का सदर बनाया गया था ।
ए पी हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अब तक तक़रीबन 50 सदूर मुंतख़ब हो चुके हैं जनाब जलील अहमद के बाद कोई दूसरा मुस्लिम सदर ना बन सका।