इजतिमाईयत से दूरी-ओ-इन्फ़िरादियत का जज़्बा मुस्लमानों में बेहिसी की वजह

हैदराबाद।२५ अप्रैल । मुस्लमानों में इजतिमाईयत के रुजहान के ख़ातमा के सबब मुस्लिमक़ौम बेहिसी का शिकार है । जिस के मुस्तक़बिल क़रीब में संगीन नताइज बरामद हो सकते हैं । हमें इन क़बाइली अक़्वाम से सबक़ हासिल करने की नौबत है जो जंगलों में मुक़ीम हैं । इन में आज भी क़ौमीयत-ओ-इजतिमाईयत का निज़ाम है वो ख़ानदानी निज़ाम से ज़्यादाइजतिमाई क़बाइली निज़ाम को तर्जीह देते हैं ।

लेकिन अफ़सोस मुस्लमान इजतिमाईयत से दूर होते हुए ख़ानदानी निज़ाम तक महिदूद हुए और अब ख़ानदानी निज़ाम से भी दूर होकरइन्फ़िरादियत का शिकार बन रहे हैं । जिस से क़ौम में बेहिसी तेज़ी से फ़रोग़ पारही है और एक दूसरे के दर्द को समझने से क़ासिर हैं । मसला-ए-कश्मीर पर हिंदूस्तान में फैली बेहिसी की अहम वजह कश्मीर के मुताल्लिक़ ग़लत इत्तिलाआत की तशहीर है। मसला-ए-कश्मीर को जल्द हल किया जाना ज़रूरी है । प्रोफ़ैसर एसए आर गिलानी ने दौरा हैदराबाद के दौरान नुमाइंदा सियासत से मुलाक़ात में इन ख़्यालात का इज़हार किया ।

उन्हों ने बताया कि कश्मीर से मुताल्लिक़ हुकूमत का मौक़िफ़ ग़ैर हक़ीक़त पसंदाना है और मसला की हक़ीक़त को मसख़ करते हुए हिंदूस्तानी अवाम को मसला-ए-कश्मीर से दूर किया जा रहा है । जनाब एसए आर गिलानी ने बताया कि कश्मीर पाकिस्तानी दहश्तगर्दी की इत्तिलाआत के ज़रीया हकूमत-ए-हिन्द हिंदूस्तानी अफ़्वाज की दहश्तगर्दी की पर्दापोशी की कोशिश करती है । उन्हों ने बताया कि कश्मीर में हज़ारों लोग लापता हैं जिनके अफ़राद ख़ानदान आज भी उनके मुंतज़िर हैं । जनाब गिलानी ने बताया कि कश्मीर में जो सूरत-ए-हाल है इस में एक नई इस्तिलाह शायद हिंदूस्तानी अवाम केलिए हैरत की बाइस होगी चूँकि आलमी सतह पर ये इस्तिलाह कहीं और इस्तिमाल नहीं की गई ।

कश्मीर में हज़ारों की तादाद में नियम बेवा ख़वातीन हैं जिन के शौहर बरसों से लापता हैं । उन्हों ने कहा कि अब कश्मीर की जो सूरत-ए-हाल है इस में कश्मीरी नौजवान ख़ुद को बेबस महसूस कर रहे हैं ।प्रोफ़ैसर गिलानी ने बताया कि कश्मीर की अक्सरीयत आज़ादी की मुतमन्नी है जबकि बहुत क़लील तादाद पाकिस्तान या हिंदूस्तान के साथ रहने के हक़ में है । उन्हों ने मसला-ए-कश्मीर के हल केलिए फ़ौरी इस्तिसवाब आम्मा को नागुज़ीर क़रार देते हुए कहाकि तीन नसलों के बाद अब जो नसल कश्मीर में मौजूद है उसे किसी चीज़ का ख़ौफ़ बाक़ी नहीं रहा चूँकि जो नौजवान नसल प्रवान चढ़ी है इस के लिए गोलीयों की गिड़गिड़ाहट या बमों की घन गरज नई चीज़ नहीं रही और वो उन से ख़ाइफ़ नहीं हैं इस चीज़ को समझने की ज़रूरत है ।

उन्हों ने रैफ़रंडम को वाहिद रास्ता क़रार देते हुए कहा कि अगर हुकूमत जल्द ही इस मसला पर कोई फ़ैसला नहीं करती है तो नताइज संगीन बरामद होसकते हैं चूँकि नौजवान नसल कश्मीर की सूरत-ए-हाल से आजिज़ आचुकी ही। प्रोफ़ैसर गिलानी ने ज़राएइबलाग़ के इदारों को तन्क़ीद का निशाना बनाते हुए कहा कि 2010-ए-में जो ज़ुलम की दास्तान तहरीर की गई 100से ज़ाइद नौजवान अफ़्वाज की गोलीयों का शिकार हुए इस के बावजूद ज़राए इबलाग़ इदारों ने पब्लिक रीलीज़न्स‌ एजैंसीज़ का किरदार अदा करके हुकूमत की कारकर्दगी की तशहीर अंजाम दी । उन्हों ने कहा कि इंसानियत के मसाइल पर अवामका दोहरा मयार बनाने में ज़राए इबलाग़ का अहम किरदार रहा ।

प्रोफ़ैसर गिलानी ने बताया कि मणि पर में एक फ़ौजी की हवस का शिकार बनने और क़तल होने वाली ख़ातूनकेलिए सारे हिंदूस्तान में मुज़ाहिरे होते हैं लेकिन कश्मीर में दो ख़वातीन फ़ौजीयों की हवस का शिकार बनती हैं । उनका भी क़तल होता है लेकिन इन कश्मीरीयों केलिए हिंदूस्तान के किसी गोशे में इंसानी हुक़ूक़ के अलमबरदार आवाज़ नहीं उठाती। ना सिर्फ इंसानी हुक़ूक़ की तंज़ीमें इस मसला पर ख़ामोशी हैं बल्कि मुस्लिम सियासतदां भी आवाज़ उठाने से गुरेज़ां हैं ।

उन्हों ने बताया कि मिल्लत-ए-इस्लामीया बेहिसी और इजतिमाईयत से फ़रार इख़तियार करने के रुजहान केलिए मिल्लत की सयासी वमज़हबी क़ियादत बड़ी हद तक ज़िम्मेदार है चूँकि मिल्लत-ए-इस्लामीया को साज़िशों से आगाह करने का वतीरा ये छोड़ चुके हैं । उन्हों ने बताया कि कश्मीर में इस्तिसवाब आम्मा के मुताल्लिक़ कश्मीरी अवाम इबतिदा से ये कह रही है कि 1947के कश्मीर में रैफ़रंडम करवाते हुए कोई फ़ैसला कर दिया जाय ताकि कई मसाइल को हल किया जा सके। आज़ादी कश्मीर की सूरत में कश्मीर की तरक़्क़ी औरबक़ा के मुताल्लिक़ सवाल का जवाब देते हुए प्रोफ़ैसर गिलानी ने बताया कि जब हिंदूस्तान की आज़ादी की बात होरही थी तब अंग्रेज़ों ने गांधी जी से इस्तिफ़सार किया था कि वो हिंदूस्तान को कैसे चलाएगे ।

जिस पर उन्हों ने जवाब दिया था कि अंग्रेज़ हिंदूस्तान कीआज़ादी और हमें हमारे हाल पर छोड़ दें हम किसी भी तरह मलिक को चलालीं गे ।उन्हों ने बताया कि कश्मीर के पास जो क़ुदरती वसाइल हैं वो कश्मीर की बक़ा और तरक़्क़ी केलिए काफ़ी हैं । इलावा अज़ीं दोनों ममालिक हिंदूस्तान-ओ-पाकिस्तान कश्मीर के आबी वसाइलके इस्तिमाल के ज़रीया कश्मीरी अवाम को जो महरूम कररहे हैं अगर कश्मीरी वही हासिल करने में कामयाब होजाता है तो कश्मीर की तरक़्क़ी-ओ-बक़ा यक़ीनी है ।

उन्हों ने आज़ाद कश्मीर को कश्मीरी अवाम का हक़ क़रार देते हुए कहा कि साज़िश के तहत मसला-ए-कश्मीर मज़हब से जोड़ते हुए इंसानी हुक़ूक़ तंज़ीमों-ओ-शख़्सियतों को मसला-ए-कश्मीर सेबेज़ार करने की कोशिश की गई । प्रोफ़ैसर गिलानी ने पार्लीमैंट हमला में फांसी की सज़ा का सामना कर रहे हैं अफ़ज़ल गुरु के मुताल्लिक़ फ़ैसला को ग़ैर दरुस्त क़रार देते हुए कहा कि मुल़्क की अदालत-ए-उज़्मा ने ख़ुद अपने फ़ैसले में तहरीर किया है कि सबूत और शवाहिदना होते हुए भी अवाम में मौजूद जज़्बात के पेशे नज़र ये सज़ा दी जा रही है । उन्हों ने बताया कि जब क़ानून में जज़बात की कोई गुंजाइश ही नहीं है तो इस फ़ैसले को कैसे दरुस्त क़रार दिया जा सकता है ? ।

उन्हों ने कहा कि आम तौर पर ये इत्तिलाआत फैलाई जा रही है कि कश्मीरी पण्डित मुश्किलात का शिकार हैं लेकिन हक़ीक़त कुछ और है । कश्मीरी पंडितों की नक़्ल-ए-मकानी केलिए कश्मीरी मुस्लमान ज़िम्मेदार नहीं है बल्कि दौरान जगमोहन के दौर में सरकारी बसों और ट्रिक्स के ज़रीया कश्मीरी पंडितों को नक़्ल-ए-मकानी के लिए मजबूर किया गया है ।

हिंदूस्तानी हुकूमत ख़ुद इस बात का एतराफ़ कररही है कि कश्मीर के साथ मुसलसल नाइंसाफ़ी हुई है । प्रोफ़ैसर एसए आर गिलानी ने 2010-ए-सितंबर में वज़ीर-ए-दाख़िला मिस्टर पी चिदम़्बरम की जानिब से दिए गए ब्यान का हवाला देते हुए कहा कि उन्हों ने अपने ब्यान में इस बात का एतराफ़ किया है कि मसला-ए-कश्मीर कुछ और नहीं बल्कि वादों से इन्हिराफ़ से पैदा मसला है । उन्हों ने कश्मीरी अवाम से किए गए वादों को पूरा करने की ज़रूरत पर ज़ोर देते हुए बताया कि हिंदूस्तानी अवाम को भी इंसानियत के इस मसला पर तवज्जा दे कर हक़-ओ-सदाक़त का साथ देने तैय्यार होना चाहिए ।