बेशक दीन अल्लाह ताआला के नज़दीक सिर्फ़ इस्लाम ही है और नहीं झगड़ा किया जिन को दी गई थी किताब मगर बाद इस के कि आगया था उनके पास सही इलम (और ये झगड़ा) बाहमी हसद की वजह से था और जो इनकार करता है अल्लाह की आयतों का तो बेशक अल्लाह ताआला बहुत जल्द हिसाब लेने वाला है। (सूरा आल इमरान।१९)
अल्लामा इबन कसीर ने इस्लाम के मफ़हूम को बड़े आसान और वाज़िह अलफ़ाज़ में यूं बयान फ़रमाया है कि हर ज़माने के नबी पर अल्लाह ताआला ने जो नाज़िल फ़रमाया, उसकी इताअत-ओ-इत्तिबा को इस्लाम कहते हैं, यहां तक कि सय्यदना मुहम्मद रसूल स०अ०व० की तशरीफ़ आवरी से जब नबुव्वत का सिलसिला ख़त्म हुआ तो इस्लाम नाम हो गया इत्तिबा मुहम्मदी का। इस ज़ात अक़्दस को छोड़कर कोई शख़्स अगर कोई दूसरा रास्ता इख़तियार करेगा तो वो गुमराही का रास्ता होगा।
इस आयत से तारीख़ के तालिब इल्म के लिए क़ुरआने पाक ने एक बड़ी उलझी हुई गिरह खोल दी। इस ने बता दिया कि मुख़्तलिफ़ अनबया मुख़्तलिफ़ ज़मानों में अलग अलग दीन लेकर नहीं आए, बल्कि सब ने अपने अपने वक़्त में एक ही दीन की दावत दी और एक ही दीन की तब्लीग़ की।
क्यूंकि वो सब हक़ के पैग़ाम्बर थे। हक़ की तरफ़ बुलाने वाले थे, हक़ के साथ मबऊस किए गए थे और हक़ एक ही है। इस लिए सब एक ही दिन के मबलग़ बन कर आए थे। अब खतीमुल अंबिया स०अ०व० भी इसी दीन के दाई बन कर आए हैं, कोई नया दीन लेकर नहीं आए, इस लिए अब हुज़ूर स०अ०व० का दीनी ही दीन इस्लाम है। हुज़ूर स०अ०व० की गु़लामी छोड़कर जो शख़्स भी कोई दूसरा दीन इख़तियार करेगा, वो अल्लाह ताआला के नज़दीक मक़बूल नहीं होगा।