भाजपा, लोजपा और रालोसपा के इत्तीहाद की खबरों से भाजपाईयों के होश उडे हैं। खास कर वैसे लोगों की जो मुक़ामी को हवा देकर पार्टी की टिकट पर नजर लगाये थे। इत्तीहाद के बाद सीट हाथ से निकलती दिख रही है। ऐसे में पांच साल तक इस उम्मीद के साथ पार्टी के लिए मेहनत करने वालों की नाराजगी समझी जा सकती है। पर इत्तीहाद के अपने मायने है। आला कियादत की अपनी मजबूरियां है। कारकुनान को इसे भी समझना होगा। पर, हालात बिल्कुल बिगडे-बिगडे़ से दिख रहे हैं।
अब तक नुक्कड़ों पर होने वाली बहसों को कारकुनान हवा देने लगे हैं। ताकि, यह बात मीडिया की सुर्खियां बने कि कियादत के फैसले से कारकुनान नाराज हैं। पर, एक और भी खेमा है जो किसी भी हालत में चाहता है कि मर्कज़ी सियासत के हिसाब से कारकुनान को मुंजिम करना चाहिए। लोकसभा इंतिख़ाब का अहम मुद्दा पीएम उम्मीदवार नरेंद्र मोदी को दिल्ली की इक्तिदार सौंपनी है। ऐसे में हमें ज़ाती मुफाद को कुर्बान कर पार्टी की हिदायतों पर काम करना होगा। साबिक़ जिला सदर और सीनियर भाजपाई डॉ प्रो विजय कुमार सिन्हा कहते हैं इस तरह की ज़ेहनीयत से पार्टी को नुकसान होगा। सियासत में इत्तीहाद की रियवात है। यह फैसला अक्सर आला कियादत ही लेता है। हम कारकुनान को उसके हिसाब से खुद को ढालना होगा।