इफ्फत और पाकदामनी जिंदगी के हर शोबे में मतलूब

(मौलाना असरार उल हक कासमी ) इस्लाम एक ऐसा मजहब है जो अपने मानने वालों की जिंदगी के हर मोड़ पर न सिर्फ रहनुमाई करता है बल्कि वह उन्हें उन तमाम तरीकों से बखूबी रौशनास कराता है जो उन्हें पेश आने वाली मुश्किलात से छुटकारा और निजात दिलाने में अहम किरदार अदा कर सकते हैं। इस्लाम मुहासिने अखलाक का मजमूआ है और अच्छी आदतों और औसाफ पर दुनिया भर के तमाम मजहबों से ज्यादा इसने ध्यान दिया और मुसलमानों को उन्हें अख्तियार करने पर उभारा है।

यही वजह है कि कुरआने करीम में जहां नबी करीम (सल्लल्लाहु अलिहि वसल्लम ) की और सिफतो को बयान किया गया वहीं बहुत ही अहमियत और अजमत के साथ आप रहमतुल आलमीन और खल्के अजीम से संवरने को बयान किया है और खुद हमारे नबी (सल्लल्लाहु अलिहि वसल्लम ) ने अपनी जबाने मुबारक से फरमाया कि मेरी बअसत उम्दा अखलाक की तकमील के लिए हुई है।

उन्हीं उम्दा अखलाक और अच्छी खसलतों में से एक बेहतरीन खसलत इफ्फत और पाक दामनी है जिसका ताल्लुक इंसान की जिस्मानी व नफ्सियाती इज्जत व आबरू से भी है और मआशी आबरूमंदी से भी। इस्लाम अपने मानने वालों को हर दो एतबार से बाइज्जत और इफ्फत के साथ देखना चाहता है। जहां इस्लाम इस बात की इजाजत नहीं देता कि कोई मुसलमान मर्द व औरत किसी भी वजह से अपनी जिस्मानी या नफ्सियाती जरूरत की तकमील के लिए गैर शरई और शरीअत की नजर में हराम जराये और वसीले अख्तियार करें वहीं उसको यह बात भी बहुत बुरी लगती है कि कोई मुसलमान अपनी मामूली मआशी जरूरतों के लिए दूसरों के सामने हाथ फैलाता फिरे और वह लोग उसे दे या न दें।

कुरआने करीम में भी इस हवाले से आयतें वारिद हैं और हमारे नबी करीम (सल्लल्लाहु अलिहि वसल्लम ) ने भी इस ताल्लुक से उम्मत की रहबरी व रहनुमाई फरमाई है। जिस्मानी जरूरतों की तकमील के लिए हरामकारी से बचने की ताकीद करते हुए फरमाया गया -‘‘ पस वह लोग जो निकाह करने की इस्तताअत नहीं रखते, पाक दामनी अख्तियार करे ताकि अल्लाह तआला उन्हें अपने फजल से वुसअत अता फरमाएं।’’(अल नूर-33)

इसका साफ मतलब यह है कि जो मुसलमान नौजवान लड़का या लड़की जायज तरीके से निकाह करने और अपनी जिस्मानी जरूरत की तकमील पर किसी वजह से कुदरत नहीं रखते तो वह हराम तरीके अख्तियार करने के बजाए पाक दामनी अख्तियार किए रहे, फहशकारी से बचें और निकाह के असबाब की फराहमी पर ध्यान दें ताकि अल्लाह तआला अपने फजल से नवाजे और वह हलाल तरीके से अपनी जिस्मानी ख्वाहिश की तकमील कर सकें।

इसी मसले को मजीद वजाहत करते हुए दूसरी जगह फरमाया गया -‘‘ आप मोमिन (मर्दों) से कह दें कि वह अपनी निगाहें नीची रखें और अपनी शर्मगाहों की हिफाजत करें यह उनकी पाक बाजी के ज्यादा मुनासिब है और अल्लाह तआला उनके सारे आमाल से बाखबर हैं और आप मोमिना (औरतों) से भी कह दें कि वह अपनी निगाहें नीची रखें और अपनी शर्मगाहों की हिफाजत करें।’’(अलनूर-30.31)

जाहिर है कि हर मुस्लिम नौजवान लड़का और लड़की अगर इस कुरआनी हिदायत पर अमल करे तो सारी बुराइयों के दरवाजे खुद बखुद बंद हो जाएंगे।

मुसलमानों को अपनी गरीबी और मआशी तंगहाली को बरदाश्त करने, दूसरों के सामने हाथ न फैलाने की सिफत को काबिले तारीफ बताते हुए फरमाया-‘‘इन्हीं नादान लोगों के सवाल करने से बचने की वजह से मालदार समझते हैं तुम उन्हें उनकी खास निशानी से पहचान लोगे वह लोगो से लिपट कर सवाल नहीं करते और जो कुछ तुम अल्लाह के रास्ते में खर्च करोगे उसकी अल्लाह तआला को खबर होगी।’’ (अल बकरा-273) इस आयत में जहां उन लोगो की तारीफ की गई है जो अपनी गरीबी और तंगदस्ती के बावजूद दूसरों से सवाल नहीं करते और इस तरह जिंदगी गुजारते हैं कि लोग उन्हें मालदार समझते और उनकी तंगदस्ती का आम लोगों को अंदाजा नहीं लग पाता वही इशारों में अल्लाह ने मालदारों को इस बात की तलकीन की है कि वह ऐसे लोगों को तलाश करके उनकी जरूरतों की तकमील करें।

अल्लाह तआला की निगाहें ऐसे तमाम आमाल और अंजाम देने वालों से बाखबर है और उनका बेहतर से बेहतर बदला देगा।
नबी करीम (सल्लल्लाहु अलिहि वसल्लम ) ने भी अपने कौल व फेअल के जरिए उम्मत को इस हवाले से ताकीदी हिदायत दी है और इफ्फत व पाक दामनी अख्तियार करने वालों की हौसला अफजाई फरमाई है। हजरत अबू सईद खुदरी (रजि0) से मरवी है कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलिहि वसल्लम ) ने इरशाद फरमाया -‘‘ जो शख्स बातकल्लुफ बेनियाजी अख्तियार करता है, अल्लाह उसे लोगो से बेनियाज कर देगा, जो शख्स पाक बाजी अख्तियार करने की कोशिश करेगा अल्लाह उसे पाक बाज बना देगा और जो शख्स अपने आप को खुद मुकतफी जाहिर करेगा उसके लिए अल्लाह तआला काफी होगा।’’(सनन निसाई)

हजरत अबू सईद खुदरी (रजि0) की दूसरी रिवायत में है कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलिहि वसल्लम ) ने इरशाद फरमाया -‘‘जो शख्स बतकल्लुफ बेनियाजी अख्तियार करेगा, अल्लाह उसे हकीकत में बेनियाज बना देगा जो शख्स (मुसीबत में) बतकल्लुफ सब्र करेगा तो अल्लाह हकीकत में उसे साबिर बना देगा और किसी भी इंसान को सब्र से बेहतर अतिया अल्लाह की तरफ से नहीं दिया गया।’’(मुत्तफिक अलैह)

इस्लाम की आमद ही उन अखलाकी उसूल को फरोग देने के लिए हुई है जो इंसान को बुलंदियों तक पहुंचाए। इसी वजह से हमारे नबी करीम (सल्लल्लाहु अलिहि वसल्लम ) ने फरमाया-‘‘ मेरी बअसत मकारिमे अखलाक की तकमील के लिए हुई है।’’(मालिक) इन्हीं अखलाक में से, जिन बुनियादों को इस्लाम ने मजबूत किया और उन्हें इंसान की फितरत का हिस्सा बनाया एक इफ्फत और पाक दामनी है।

यह वह खल्क है जिसे नबी करीम (सल्लल्लाहु अलिहि वसल्लम ) बहुत ज्यादा पसंद फरमाते थे और अपनी दुआओं में फरमाया करते ‘‘खुदाया ! मैं तुझ से हिदायत, तकवा, पाक दामनी और (इंसानों से) बेनियाजी तलब करता हूं।’’ (सही मुस्लिम)

मालूम हुआ कि ‘‘इफ्फत’’ एक शरीफाना और बुलंद सिफत व खल्क, पाक बाज नफूस का सरे उनवां और सालेह तर्बियत की अलामत है। लुगत में ‘‘इफ्फत’’ का मतलब है नाजायज और हर बुरी चीज से रूकना। लिहाजा एक मुसलमान के आजा व जवारिह को हरामकारी से मुकम्मल परेहज करना चाहिए ताकि अपनी जरूरतों की तकमील के लिए हलाल चीज या तरीका मुयस्सर आ जाए।

इसी तरह एक मुसलमान को चाहिए कि वह अपने आप को दूसरों के माल व दौलत से महफूज रखे, उस पर ज्यादती न करें, बगैर हक के किसी के माल पर कब्जा न करें यहां तक कि अगर उसे जरूरत हो तो भी दूसरों के सामने बगैर किसी अमल के एवज हाथ न फैलाए।

इसी तरह एक मुसलमान को चाहिए कि वह अपनी जबान को झूट से, गाली गलौच से, गीबत से और चुगलखोरी से महफूज रखें, उसकी जबान से निकलने वाली हर बात खैर और अच्छी होनी चाहिए और वह बेहूदा मामलों और कामों में अपना वक्त बर्बाद न करे।

पता चला कि सिफते इफ्फत एक मुसलमान को हर किस्म के ऐब और अखलाकी ऐब से महफूज रखती और उसे हर उम्दा अमल के अंजाम देने पर उभारती है। फिर यह उम्दा खसलत लोगों के वास्ते से पूरे समाज में फैल कर दीगर मकारिमे अखलाक के रिवाज का सबब बनेगी, पूरा समाज मुनज्जम और बेहतर हो जाएगा और वह ऐसा हो जाएगा जहां से अम्न व अमान और खैर व सलामती की खुशबूएं फूटेंगी।

इफ्फत एक ऐसी खसलत है जो मोमिन को बुरे कामों में पड़ने से रोकती और उम्दा अखलाक व आमाल के अंजाम देने पर उभारती हैं। इफ्फत एक ऐसी खसलत है जिसे सालेह तर्बियत के जरिए से हासिल किया जा सकता है। ईमान सिफते इफ्फत के हुसूल का अहम जरिया है। इफ्फत इंसान को हया पर उभारती है जो सारे नेक कामों की बुनियाद है।

आज मुसलमान वाल्दैन के लिए निहायत ही जरूरी है कि वह अपनी औलाद की तर्बियत में इस चीज पर खास ध्यान दे, अपनी औलाद को इफ्फत और पाकदामनी अख्तियार करने की तलकीन करे और इसके फायदे से उन्हें मुसलसल बाखबर करते रहे ताकि उनके दिल व दिमाग में यह चीज बैठ जाए और वह अपनी आइंदा की जिंदगी में कभी भी और किसी भी मरहले में इस आला तरीन सिफत से दस्तबरदार होने को गवारा न करे।

यह एक ऐसी सिफत है जो इंसान को दुनिया में सुर्खरूई और कामयाबी की आखिरी बुलंदी तक ले जाती है और अल्लाह के यहां इसका आला मकाम है ही। बाइफ्फत इंसान के साथ हर वक्त अल्लाह तआला की खास मदद और उसकी निगरानी शामिले हाल रहती हैं।

***********************************बशुक्रिया: जदीद मरकज़