अहमदाबाद, 25 मई: मुंबई की तालेबा इशरत जहां और उसके तीन साथियों के फर्जी मुठभेड़ मामले में गुजरात के वज़ीर ए आला नरेंद्र मोदी और उस वक्त के वज़ीर ए दाखिला ममलकत अमित शाह दोनो शक के घेरे में हैं। सीबीआइ मुठभेड़ के इल्ज़ाम में गिरफ्तार आइपीएस जीएल सिंघल के खिलाफ 90 दिन बाद भी चार्जशीट दाखिल नहीं कर पाई है।
अंदेशा है कि सीबीआइ सिंघल को सरकारी गवाह बनाकर मोदी और शाह तक पहुंचना चाहती है। जांच एजेंसी दोनों लीडरों को समन जारी कर पूछताछ की तैयारी कर रही है।
कोर्ट की हिदायत पर तश्कील खुसूसी जांच दल [एसआइटी] ने इशरत जहां और उसके तीन साथी जावेद शेख, अमजद अली व जीशान जौहर को मुठभेड़ में मार गिराने की जांच की थी। जांच रिपोर्ट में बताया गया कि गुजरात पुलिस ने इशरत व उसके साथियों को फर्जी मुठभेड़ में मारा था।
इस मामले में भी साबिक आइपीएस डीजी वणजारा का अहम किरदार बताया गया है, जो करीब पांच साल से सोहराबुद्दीन फर्जी मुठभेड़ मामले में मुंबई जेल में बंद हैं। फरवरी 2013 को सीबीआइ ने इशरत मामले में आइपीएस जीएल सिंघल की धरपकड़ की थी।
इससे पहले पुलिस अफसर व एनकाउंटर स्पेशलिस्ट तरुण बारोट, जेजी परमार, भरत पटेल को भी गिरफ्तार किया गया था। गौरतलब है कि सीबीआइ के ज्वाइंट डायरेक्टर वीवी लक्ष्मी मार्च 2013 में गुजरात आए थे। साबरमती जेल में उन्होंने आइपीएस सिंघल से भी तवील बहस किए थे, जिसकि वजह से सिंघल व सीबीआइ के बीच कुछ आपसी समझौते की भी आशंका जताई जा रही है।
जीएल सिंघल ने जुमे के दिन सीबीआइ की खुसूसी अदालत के सामने जमानत की दरखास्त दाखिल की है, जिस पर पीर को फैसला होना है। सिंघल ने दलील दी है कि 90 दिन बाद भी सीबीआइ उनके खिलाफ चार्जशीट पेश नहीं कर पाई है।
चर्चा है कि सीबीआइ सिंघल को सरकारी गवाह बनाकर इशरत मुठभेड़ मामले से सयासी तार जोड़ने की कोशिश कर रही है। सिंघल व उनके साथियों के जमानत पर बाहर आने के बाद फिर उनकी गिरफ्तारी की आंशका कम होगी।
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