पस (ए इंसानों ओर जीन्नातों) तुम अपने रब की किन किन नेअमतों को झूटलाओंगे। (सूरा रहमान।१३)
सूरत के शरूआत से लेकर यहां तक बडे बडे महान उप्हारों को ब्यान किया, इन में एसे उप्हार भी हैं, जिन पर हमारी रुहानी(आत्मीक) और उखरवी(परलोक की) ज़िंदगी की कामयाबी का इन्हिसार(निर्भरता) है। कूछ वो हैं, जिन से हमारी ये दुन्यवी ज़िंदगी तरह तरह की राहतों और आसाइशों से बहरामंद(सौभाग्यशाली) होती है। बाज़ वो हैं, जिन में हमारी मर्ज़ी और राय को दख़ल नहीं। नीज़ अदल-ओ-इंसाफ़(न्याय) के बारे में एसे अहकाम भी हैं, जिन से हमें अमन-ओ-सुकून(शांती ओर सुरख्शा) मयस्सर आ सकता है। इन नेमतों के ब्यान के बाद अब जीन्नातों और इंसानों को कहा जा रहा है कि तुम हमारी इन बेशुमार(असंख्य) नेमतों में से किस किस का इंकार करोंगे।
हज़रत जाबिर बिन अबद उल्लाह (रज़ी.) ब्यान करते हैं कि एक दफ़ा(मर्तबा) रसूल करीम (स.व.) ने हमारे सामने पूरी सूरा रहमान की तिलावत फ़रमाई(पढी)। फिर फ़रमाया क्या वजह है कि तुम बिल्कुल गुमसुम(चूपचाप) होकर बैठे रहे, तुम से तो जीन्नातों ने बेहतर(अछ्छा) जवाब दिया। जब भी में ये आयत पढ़ता तो वो जवाब में कहते ए हमारे रब! हम तेरी किसी नेमत का इंकार नहीं करते और सब तारीफ़ें तेरे लिए हैं। हम पर ज़रूरी है कि जब हम ये सूरा सुनें और जब भी ये आयत पढ़ी जाए तो इस के जवाब में हम भी यही कहें।