नबी करीम (स०अ०व०) का इरशाद है कि हर हक वाले का हक अदा करो। इस मुबारक इरशाद से यह बात वाजेह हो जाती है कि हुकूक की अदायगी मुसलमानों की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है। आमतौर पर हुकूक को दो हिस्सों में तकसीम किया जाता है- हुकूकुल्लाह और हुकूकुल इबाद।
इन दोनों के मुताल्लिक चंद बातें अर्ज की जा रही हैं। अल्लाह हमें अमल की तौफीक अता फरमाए।
हुकूकुल अल्लाह:- अल्लाह ही हमारा पालनहार है। हम उसके गुलाम हैं। हमारी हर चीज उसकी अता की हुई है। लिहाजा अल्लाह पर ईमान लाना हमारा पहला हक है। मतलब यह कि दिल और ज़ुबान से अल्लाह को मानना, उसकी जात व सिफात का यकीन करना उसके एहकाम ( हुक्म) व आमाल पर अमल पैरा होना उसके साथ किसी भी मामले में किसी को शरीक न करना इसलिए कि शिर्क अजीम गुनाह है। अल्लाह शिर्क करने वाले को कभी माफ नहीं करेगा और अल्लाह की बंदगी पाबंदी के साथ करें।
अल्लाह के बाद सारी कायनात में हमारे नबी करीम (स०अ०अ०) सबसे अफजल व आला हैं। आप के एहसानात बेशुमार है लिहाजा हमारी जिम्मेदारी है कि अल्लाह के नबी (स०अ०अ०) की मोहब्बत व पैरवी को अपनी जिंदगी का मकसद बनाएं। आप (स०अ०अ०) के हर-हर हुक्म को बजा लाएं। हजरत मौलाना सैयद अनजर शाह कश्मीरी फरमाया करते थे कि जिसे कामिल पीराना मिले वह दुरूद शरीफ को अपना वजीफा बना ले, जितना ज्यादा हो सके दुरूद पढ़ता रहे, सुन्नतों को अपनी आदत बना ले कि सुन्नत दुनिया व आखिरत में कामयाबी के हुसूल का जरिया है।
वाल्दैन के हुकूक:- अल्लाह व रसूल के बाद मां-बाप का मुकाम/ मकाम व मरतबा है। कुरआन व हदीस में कई जगहों पर वाल्दैन की खिदमत का हुक्म दिया गया है। इस ताल्लुक से समाज में बड़ी कोताही नजर आ रही है। हमारा मुआशरा (समाज) वाल्दैन की खिदमत में आर महसूस करने लगा है जो हमारे लिए इंतिहाई तबाहकुन है। इस तरफ ध्यान देने की बहुत जरूरत है। वाल्दैन की भी जिम्मेदारी है कि बच्चों को इस्लामी हुकूक से आशना कराएं ताकि बड़ा होकर हर एक का हक हदा करने वाला बनें।
मियां बीवी के हुकूक:- मियां बीवी की कामयाब जिंदगी सच्ची मोहब्बत, एक दूसरे के आराम व राहत के हुसूल की मुश्तरका कोशिश पर मबनी है। इस्लाम ने औरत मर्द के ताल्लुकात को मजबूत करने के उसूल व जाब्ते तय फरमाए। एक दूसरे को हुकूक की अदाएगी का मुकल्लिफ बनाया। आम इस्लामी तालीमात से दूरी की वजह से एक दूसरे के हुकूक की अदाएगी के ताल्लुक से कोताही आम बात है जो हमारी जिंदगी को जहन्नुम बना रही है। इस्लाम ने शौहर के ऊपर यह जिम्मेदारी आयद की है कि हस्बे इस्तताअत बीवी की तमाम जरूरतें पूरी करे उसकी हर तरह से किफालत करे, उसे किसी तरह की तकलीफ न पहुंचाए और उसे हमेशा खुश रखे।
फरमाया मोहब्बत के साथ जो लुकमा इंसान अपनी बीवी के मुंह में डालता है उस पर भी सवाब है। गरज कि औरत को हर एतबार से इस्लाम ने सहूलत दी है और कोई बड़ी जिम्मेदारी उसके कमजोर कंद्दो पर नहीं डाली। इसी तरह शौहर को मुकल्लिफ बनाया कि औरत का मेहर अदा करे। बीवी को शौहर की इताअत व फरमाबरदारी का मुकल्लिफ बनाया। उसकी खुशनूदी के हुसूल को सवाब का काम करार दिया। फरमाया कि वह औरत जिसका शौहर उससे नाखुश हो उसकी कोई इबादत कुबूल नहीं होती।
इसलिए जरूरत है कि औरतें अपने शौहर की खुशनूदी हासिल करें।
पड़ोसी के हुकूक:- नबी करीम (स०अ०अ०) ने फरमाया वह श्ख्स मोमिन नहीं जिसका पड़ोसी उसके शर से महफूज न हो। कुरआन ने भी मजहब व मिल्लत से बालातर होकर पड़ोसी के हुकूक की अदाएगी पर जोर दिया है। आज हमारे समाज में पड़ोसियों की ईजारसानी आम बात है। हालांकि पड़ोसियों के लिए शोरबा बढ़ा देने का हुक्म दिया गया है। आज समाजी नाबराबरी की वजह से एक घर में लोग अच्छा खा पी रहे हैं और अच्छा पहन रहे हैं बल्कि बेजा खर्च में मसरूफ हैं। अ
गर हम फुजूल खर्ची से बचकर कुछ रकम पड़ोसियों की जरूरियात में खर्च करें तो यह जहां मोहब्बत में इजाफे का सबब होगा वही पड़ोसियों को तकलीफ से निजात दिलाने का अजीम कारनामा भी। हर शख्स अपने पड़ोसियों से मिल जुलकर रहे। उनकी खुशी-गम में शरीक रहे, एक दूसरे की मदद को अपना मजहबी फरीजा समझे।
शहरियों के हुकूक:- शहरियों की जिम्मेदारी है कि हाकिम की इताअत व फरमाबरदारी को अपने ऊपर लाजिम करार दे। इसी तरह अमन व अमान के कयाम की कोशिश करे, फितना-फसाद शहर की बर्बादी का जरिया है। इसके खात्में की कोशिश करना इस्लामी फरीजा है। कुरआन में कई बार इसकी ताकीद की गई है। बेजा कत्ल व कताल को नाकाबिले माफी जुर्म करार दिया है। अल्लाह तआला ने एक इंसान के कत्ल को सारी इंसानियत के कत्ल के बराबर करार दिया है लिहाजा हमारी जिम्मेदारी है कि अपने मुल्क में मुकम्मल अम्न/ अमन व अमान कायम करें।
इसी तरह हुक्मरानों की जिम्मेदारी है कि शहरियों की जान, माल, इज्जत व आबरू, मजहबी व तालीमी आजादी, इज्तिमाई जरूरियातें जिंदगी की किफालत, इंसाफ पाने की आजादी, जमीर व अकीदे की आजादी अता करें। इसी तरह किसी की भी मजहबी दिल आजारी से गुरेज करें। इस्लाम हर शहरी को बराबर हुकूक अता करता है। (मौलाना मुशर्रफ अली)
———-बशुक्रिया: जदीद मरकज़