ईद-उल-अज़हा ,ईसार-ओ-क़ुर्बानी का पयाम- मुफ़्ती ख़लील अहमद

हैदराबाद। 7 नवंबर (प्रैस नोट) मुफ़क्किर इस्लाम मुफ़्ती ख़लील अहमद ने मक्का मुअज़्ज़मा से अहल इस्लाम को ईद-उल-अज़हा की मुबारकबाद का पयाम रवाना करते हुए कहा कि ईद-उल-अज़हा मुस्लमानों केलिए पयाम ईसार-ओ-क़ुर्बानी लाती है। इस ईद के मौक़ा पर हज़रत सय्यदना इबराहीम-ओ-सय्यदना इसमईल अलीहमा अस्सलाम की याद ताज़ा होती है।

इन मुक़द्दस हस्तीयों ने शैतानी-ओ-ताग़ूती कुव्वतों का मुक़ाबला किया और इंसानियत को राह नजात पर गामज़न किया। ख़ाना काअबा की तामीर के बाद अमन-ओ-सलामती की दुआ की। हक़ की ख़ातिर अपनी जान और अपनी औलाद की क़ुर्बानी दी। इन हस्तीयों की ज़िंदगी में मुस्लमानों केलिए इस बात की हिदायत है कि वो भी अल्लाह ताला की ख़ुशनुदी केलिए अपने आप को शरीयत के अहकाम का पाबंद बना लें।

उन्हों ने मुस्लमानों से अपील की कि वो इस्लाम और हुज़ूर अलैहि अलसलोৃ-ओ-अस्सलाम के इस पैग़ाम को आम करें, बरक़रारी अमन-ओ-अमान के सिलसिले में की जाने वाली कोशिशों और हुकूमती इंतिज़ामात में भरपूर तआवुन करें। इत्तिहाद-ओ-इत्तिफ़ाक़ केलिए जद्द-ओ-जहद करें। ये मुबारक दिन लहू-ओ-लाब और ग़फ़लत में गुज़ारना का नहीं बल्कि अल्लाह ताला की तरफ़ राग़िब होने और अपने गुनाहों पर तवज्जा-ओ-इस्तिग़फ़ार करने के दिन हैं। हम ये हरगिज़ ना समझें कि ईद की आमद गर्दिश लील-ओ-निहार का क़ुदरती निज़ाम है, बल्कि ये समझें कि अल्लाह ताला हमें गफलतों से बेदार होने और अपनी कोताहियों का जायज़ा लेने केलिए मौक़ा इनायत फ़रमाता है।

हम को इस बात पर ग़ौर करना चाहीए कि गुज़श्ता ईद से इस ईद तक हम ने किया किया और और हमें क्या करना चाहीए था, हम ने किया पाया और क्या खोया। इस के अस्बाब-ओ-अलल क्या हैं। यक़ीनन वही क़ौम कामयाब-ओ-बामुराद होती है जो सही फ़िक्र और सालिह अमल को अपनाती है।