हैदराबाद। 5 नवंबर ( सियासत न्यूज़) इस्लाम में हुक़ूक़ उल-ईबाद को बड़ी एहमीयत दी गई है। मुस्लमान वही है जिस की ज़ात से दूसरों को तकलीफ़ ना पहुंचने पए। ईदैन के मवाक़े तो ऐसे होते हैं कि जिन से नाराज़गीयाँ हूँ उन से भी मेल जोल बहाल करलिया जाता है। इस्लाम में सफ़ाई सुथराई पर काफ़ी ज़ोर दिया गया है। तहारत मुस्लमानों का शआर है ।
हम ख़ुद तो साफ़ सुथरा रहते हैं मगर अपने माहौल को गंदा करते हुए भी नहीं हिचकिचाते हैं। ना जाने ये फ़ित्रत हम में कहां से सराएत करगई है। ईद अलज़हा में मुस्लमान बड़ी तादाद में जानवरों की क़ुर्बानी देते हैं मगर अपने माहौल को साफ़ सुथरा रखने पर तवज्जा नहीं देते । एक मुस्लमान को जहां ख़ुद मुतह्हर रहते हुए अपने घर को साफ़ सुथरा रखना चाहीए वहीं इस पर अपने अतराफ़-ओ-अकनाफ़ को भी साफ़ सुथरा रखने की ज़िम्मेदारी आइद होती है।
अक्सर ये देखा गया है कि ईदालज़हा के मौक़ा पर जानवरों को क़ुर्बान करने के बाद इस के ग़ैर मसतामला आज़ा और फुज़ला को अपने घरों से दूर खुली जगहों पर फेंक देते हैं और बलदिया की जानिब से उन की निकासी का माक़ूल नज़म ना होने की वजह से दो तीन दिनों में सारे इलाक़ा में ताफ़्फ़ुन फैल जाता है। अक्सर फुज़ला और ग़ैर मसतामला आज़ा फेंकने के मसला पर पड़ोसीयों से भी झगड़े होते हैं।
जहां हम क़ुर्बानी देते हुए रब की रज़ा हासिल करते हैं वहीं हम अपने फे़अल के ज़रीया अपने पड़ोसीयों को तकलीफ़ पहुंचाने का मूजिब बनते हैं। इस लिए एक अच्छे मुस्लमान होने के नाता हमें इस बात का ख़्याल रखना होगा कि अपने पड़ोसीयों को कोई तकलीफ़ ना होने पाए। ख़ासकर फ्लैट्स में रहने वालों को अगरचे कुछ मशक़्क़त बर्दाश्त करनी पड़ेगी मगर थोड़ी सी एहतियात करलीं तो हमारी ईद दूसरों केलिए ज़हमत नहीं बनेगी ।
अक्सर ये देखा गया है कि रीसीडनशील कॉम्प्लेक्सस में हमारे पड़ोस में ग़ैर मुस्लिम अस्हाब भी रहते हैं जो ज़्यादा तर सब्ज़ी ख़ौर होते हैं हम इन का ख़्याल किए बगै़र अपनी ईद मनाने में मगन रहते हैं । उन्हें मज़बह जानवरों के गोश्त और ख़ून की बू गिरां गुज़रती है, इस लिए हमें चाहीए कि पानी का माक़ूल इस्तिमाल करते हुए ख़ून वग़ैरा को बहादें और फिर माने ताफ़्फ़ुन माइअआत का फ़ौरी छिड़काओ करदें। इस से ना सिर्फ गोश्त और ख़ून की बू का अज़ाला होजाएगा , बल्कि जरासीम को भी पनपने का मौक़ा नहीं मिलेगा।
आजकल वबाएं तेज़ी से फैल रही हैं। जहां कहीं गंदगी हो मुख़्तलिफ़ वबाओं के जरासीम अफ़्ज़ाइश पाने लगते हैं। कहीं ऐसा ना हो कि हमारी थोड़ी सी बे एहतियाती के नतीजा में मुस्लिम मुहल्ला जात वबाओं की लपेट में आजाऐं। मुहल्ला के बाअसर अस्हाब को चाहीए कि वो बलदी अमला को मुतवज्जा करते हुए फ़ौरी फुज़ला की निकासी को यक़ीनी बनाएं।