ईश्वर के अजाब‌ से बचाने वाला सोदा

ए ईमान वालो! क्या मैं आगाह करूं तुम्हें एसे सोदा से जो बचा ले तुम्हें दर्दनाक (भयानक) अज़ाब से। वो तिजारत(सोदा) ये है कि तुम ईमान लावों अल्लाह और इस के रसूल पर और जिहाद करो अल्लाह की राह में अपने मालों और अपनी जानों से। यही तरीक़ा तुम्हारे लिए बेहतर है अगर तुम (हक़ीक़ीत को) जानते हों अल्लाह ताला बख़श देगा तुम्हारे लिए तुम्हारे गुनाहों को और दाख़िल करेगा तुम्हें बाग़ात में रवां हैं जिन के नीचे नहरें और पाकीज़ा मकानों में जो सदाबहार बाग़ों में हैं। यही बड़ी कामयाबी है।
(सूरा सफ़। १० ता १२)
दूसरे लोग भी तिजारत (सोदागीरी) करते हैं, इस में नफ़ा भी होता है और नुक़्सान भी, बसाऔक़ात(कभी कभी ) तो सरमाया(पूंजी) तक बर्बाद हो जाता है। अगर नफ़ा हो तो यही होगा कि दौलत की फ़रावानी और अस्बाब ऐश-ओ-आराम मुहैया हो जाऐंगे, लेकिन एक तिजारत वो है, जिस से अल्लाह ताला अपने बंदों को बाख़बर कर रहा है और इस में हिस्सा लेने की तरग़ीब दे रहा है और इस तिजारत की चंद ख़ुसूसीयात हैं। इस में नफ़ा ही नफ़ा है, नुक़्सान का ज़रा एहतिमाल नहीं है और वो तिजारत ये है कि सच्चे दिल से अल्लाह ताला और इस के रसूल पर ईमान लावों और अपने अम्वाल और अपनी जानें अपने रब के रास्ता में क़ुर्बान फर्दों। बताया कि माल को बचा बचाकर रखने में तुम्हारा नफ़ा नहीं, बल्कि उस की रज़ा के लिए घर बार लुटा देना ये तुम्हारे लिए सूदमंद है।