पिछले सालों में उर्दू को काफ़ी नुक़सान हुआ है और आज वो दौर है जबकि उर्दू बोली तो जाती है लेकिन बोलने वाले भी उर्दू-लिपि नहीं पढ़ पाते और शायद यही कारण है कि वो पुरानी उर्दू की दुकाने जहां किसी दौर में रौनक का माहौल होता था मायूस सन्नाटों से गुज़र रही हैं.
आज हम आपसे उसी दौर की एक किताब के बारे में बताना चाहेंगे जब वो शानदार दौर था. सन 1880 में पहली बार रिलीज़ की गयी “आब-ए-हयात” जब लोगों के हाथ में पहुंची तो लोगों ने इस किताब को सीने से लगाया. ये किताब पिछली शताब्दी की सबसे ज़्यादा बिकने वाली उर्दू की किताब है.
ये अपने तरह की पहली किताब थी जिसमें क़दीम-ओ-जदीद हर क़िस्म के शौरा शुमार किया गए थे. मोहम्मद हुसैन ‘आज़ाद’ जिन्हें एहसन आज़ाद के नाम से भी जाना जाता है इस किताब के लेखक थे. आज़ाद को किसी भी ज़माने का बेहतरीन नासिर कहा जाता है.
सिर्फ़ शाइरों की ज़िन्दगी और उनकी शाइरी के इलावा इस किताब में उर्दू ज़बान पर तारीख़ी नज़र भी रखी थी.
1883 में इस किताब की दूसरी किश्त रिलीज़ की गयी जिसे पंजाब यूनिवर्सिटी समेत कई बड़ी यूनिवर्सिटी में भी पढने के लिए रखा गया. आज भी ये किताब उर्दू शाइरों और शौकीनों के लिए बहुत अज़ीज़ मानी जाती है और उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी इस किताब को आज भी शाया करती है. इतना ही नहीं इस किताब से ही प्रेरणा लेते हुए मशहूर शा’इर “फ़िराक” गोरखपुरी ने “उर्दू भाषा और साहित्य” किताब लिखी, इस किताब में भी आज़ाद की किताब से बातें ली गयी थीं. फ़िराक़ ने लेकिन अपने दौर के शाइरों और नासिरों को भी अपनी किताब में शुमार किया था.