उर्दू के नामवर शायर शैदा चीनी नहीं रहे

उर्दू के नामवर शायर और दांत सर्जन लिन यंग वेन (शैदा चीनी) का इतवार सुबह टीएमएच में इंतेकाल हो गया। संत मेरीज चर्च बिष्टूपुर में सर्विस के बाद दोपहर में उनके जनाज़े को बेल्डीह कब्रगाह में सुपुर्दे खाक कर दिया गया। लंबे वक़्त से सांस की परेशानी से जूझ रहे 84 साला शैदा चीनी अपने पीछे बीवी सियाओ एन लिन, पांच बेटियां और दो बेटों का भरा-पूरा परिवार छोड़ गये हैं।

शैदा चीनी के बेटा और दांत डॉक्टर एरिक लियू ने बताया कि तीन साल की उम्र में ही साल 1934 में वालिद साहब जमशेदपुर आए। उर्दू जुबान से दीवानगी की हद तक लगाव का आलम ये था कि उन्होंने मैट्रिक इम्तिहान केएमपीएम स्कूल से उर्दू से पास की। तब उस्ताद शायर बीजेड मायल के राब्ते में आकर शायरी करने लगे। वालिद साहब बचपन में हमें दोपहर में वायलिन बजाकर सुलाते थे। रात के अंधेरे में गुनगुनाते थे और टॉर्च जलाकर कागज पर लिखते थे।

शायर शम्स फरीदी ने बताया कि साल 1957 से शायरी कर रहे शैदा चीनी का , ‘लकीरों की सदा’ साल 2009 में आशाअत हुआ। जिंदगी में उतार-चढ़ाव देखने के बावजूद न वह कभी ज़िंदगी से और न ही इंसानियत से मायूस हुए। भारत पर चीन के रवैये और जमशेदपुर में फिरकापरस्ती दंगों से कुछ वक़्त तक सदमे में रहे शैदा चीनी की कलम कभी थमी नहीं।

शैदा चीनी की कुछ लाइन

शबनम बना दिया, कभी शोला बना दिया
मेरी नजर ने आप को क्या क्या बना दिया?
बीमार दिल ने तुमको मसीहा बना दिया
काबा को उसने गोया कलीसा बना दिया।
आज भी कानों में रस घोलती हैं।