हबीब-उर-रहमान
नई दिल्ली: विश्व पुस्तक मेले की शुरूआत शनिवार को दिल्ली के प्रगति मैदान में हो गया। इस बार मेले में तकरीबन ढ़ाई हजार के अधिक देशी और विदेशी बुक स्टाल लगाए गए है। इस बार भी अलग-अलग भाषाओं के स्टाल मौजूद है और कई नामचीन लेखकों की अदबी संग्रह आए हैं। लेकिन कुल मिला कर देखा जाए तो पिछले दो सालों के मुकाबले उर्दू जैसी भाषा की किताबें पुस्तक मेले में कम ही देखने को मिल रही हैं।
हर साल पड़ोसी देश पाकिस्तान के बुक स्टाल आते थे। पर इसबार केवल एक वितरक पाकिस्तान की तरफ से आया है। इसके अवाला कई प्रादेशिक उर्दू प्रकाशन भी इसबार पुस्तक मेले से नदारद हैं। मसलन हर साल उर्दू अकेदमी की किताबें अलग-अलग राज्यों के तरफ से आते थे मगर इस बार बिहार जैसे कुछ राज्यों के स्टाल नहीं लगे हैं।
पुस्तक मेले में उर्दू की किताबों के स्टाल कम लगने के वजहों को जानने की जब हमने कोशिश की, तो हमने पाया कि इसका मुख्य वजह लोगों में उर्दू को लेकर कम होती दिलचस्पी है। जब यही बात जब हमनें अल-मुस्तफा पब्लिकेशन के हेड अजहर अब्बास से जानने की कोशिश की तो उन्होंने बताया कि उर्दू की किताबों के जितने खरीदार मेले में आने की उम्मीद लगाया जाता है उतने खरीदार दिल्ली के विश्व पुस्तक मेले में नहीं आ पाते हैं; यही वजह है कि पाकिस्तान जैसे देशों के प्रकाशक पिछले दिनों आते रहे थें वो इस बार नहीं आए हैं। इसकी दूसरी वजह उन्होंने यह बताया कि जितना किराया इस मेले में बुक स्टाल लगाने के लिए देना होता है उतना कमाई उर्दू प्रकाशकों को नहीं हो पाता है, यही कारण है कि उर्दू प्रकाशक यहां नहीं आ पा रहे है।
पिछले साल पुस्तक मेले में पाकिस्तान के चार प्रतिनिधि आए थे पर इस साल घटकर सिर्फ एक रह गई है। केवल लाहौर के मनशूरत पब्लिशर्स का स्टाल विदेश पैविलियन में लगा है, जहां पर उर्दू ग्राहक की खासी संख्या देखी जा सकती है। भारत में मनशूरत पब्लिशर्स के वितरक मोहम्मद शदाब का कहना है कि वास्तव में हम पाकिस्तान से न होकर नई दिल्ली से हैं और यहीं से मनशूरत के वितरक का काम कर रहे हैं।
दूसरी तरफ कुछ प्रकाशकों का कहना है कि नोटबंदी का भी कुछ प्रभाव इसबार पुस्तक मेले पर पड़ा है। पाकिस्तान के वितरकों के नहीं आने का मुख्य कारणों में एक पिछले दिनों भारतऔर पाकिस्तान के बीच आए रिश्तों की तल्खी भी है। इमामिया यूथ आर्गेनाइजेशन के सदस्य फैजान हैदर ने बताया कि शनिवार को मेले का पहला दिन था, इसलिए ग्राहक काफी कम आएं। लेकिन आज रविवार से इसमें काफी तेजी आई है। उन्होंने बताया कि अधिकतर लोग पेटीएम से पेमेंट करने के लिए कह रहे, जिसका हमारे पास इसका कनेक्शन नहीं है। उन्होंने कहा कि हमने पेटीएम वालों को इसके लिए बिलाया पर उनकी तरफ से हमारा अकाउंट नहीं चालू किया जा रहा है।
वहीं इस संस्था के निदेशक सनाउल हसन जैदी ने कहा कि डिजिटल पेमेंट में काफी पेरशानी आ रही है। हमारा पैसा सीधे हमारे अकाउंट में न जा जाकर पेटीएम जैसे थर्ड पार्टी के अकाउंट में रह रहा है। भला इससे हमें किस प्रकार फायदा है। उन्होंने कहा कि नोटबंदी की वजह से डिजिटल पेमेंट प्रोवाइडर काफी व्यस्थ हो गए हैं। हम फोन करके परेशान है, लेकिन वो नहीं आ रहे हैं। उर्दू किताबों की बिक्री में आई गिरावट को लेकर जैदी ने कहा कि आजादी के बाद से ही उर्दू को लेकर लोगों का रूझान काफी कम होता जा रहा है। चूंकि यह सीधे तौर पर रोजगारमुख भाषा अब नहीं रहा इस लिए इसके प्रति लोगों के रूझान में गिरावट आया है। जैदी ने बताया कि पुस्तक मेले में आए हुए उर्दू प्रकाशकों में अधिकतर वैसे प्रकाशक हैं जो किसी चैरिटेबल आर्गेनाइजेशन की तरफ से चलाए जा रहे हैं। यही वजह है कि पैसों की कमी की वजह से कुछ नए काम उर्दू जुबान में नहीं हो पा रहे हैं।
उर्दू में लिखी जाने वाली किताबों में पाकिस्तानी लेखक काफी पढ़े जाते हैं। पिछले साल के मुकाबले ऐसे पाठकों को पुस्तक मेले में खासी मायूसी का सामना करना पड़ रहा है। लेकिन दूसरी तरफ मेले में पाकिस्तान के कई मौलानाओं के स्टाल है। यहां उनकी किताबें और सीडी समाग्री उपलब्ध है। ऐसा ही एक स्टाल हॉल नंबर बारह में मौजूद है मिनहाज-उल-कुर’आन इंटरनेशनल। यह पाकिस्तान के मौलाना ताहीर-उल-कादीरी की किताबें और उनसे जुड़ी भाषणों की सीडी की बिक्री कर रहा है। इस संस्था के भारतीय वितरक शोएब मलिक कहते हैं कि मौलाना कादरी के चाहने वाले भारत में बहुत अधिक है। यही कारण है कि इस स्टाल पर अच्छी खासी भीड़ देखी जा सकती है। उन्होंने कहा कि उर्दू जुबान में अदबी किताबें बिके या न बिके लेकिन दीनी किताबों को लेकर मुसलमानों के भीतर दिलचस्पी काफी बढ़ता ही जा रहा है; यही कारण है कि मिनहाज-उल-कुर’आन इंटरनेशनल जैसी संस्थाएं है बहुत कम किमतों पर दीनी सामाग्री उपलब्ध करा रही है।