उर्दू सिर्फ मुस्लमानों की नहीं हर फ़िरक़े की ज़बान: काटजू

नई दिल्ली 24 अक्तूबर (यू एन आई) सुप्रीम कोर्ट के साबिक़ जज और प्रैस कौंसल आफ़ इंडिया के चेयरमैन जस्टिस मारकंडे काटजू ने कहा कि उर्दू ग़ैरमुल्की ज़बान नहीं है बल्कि ये हिंदुस्तान में पैदा हुई है और इस का दायरा सिर्फ मुस्लमानों तक महिदूद नहीं है बल्कि ये मुल़्क की ऐसी ज़बान है जिसे हर फ़िर्क़ा के लोग बोलते हैं।

आज यहां फ़रोग़ उर्दू भवन में क़ौमी कौंसल बराए फ़रोग़ उर्दू ज़बान (एन सी पीयू ईल) के ज़ेर-ए-एहतिमाम मुनाक़िदा मुस्लिम इमेजिज़ इन मीडीया के मौज़ू पर मुनाक़िदा एक पैनल मुबाहिसा में जस्टिस काटजू ने कहा कि 1947 के बाद एक साज़िशी सोच के साथ इस प्रोपेगंडा को बढ़ावा दिया गया कि उर्दू सिर्फ मुस्लमानों की ज़बान है और हिन्दी हिंदूओं की ज़बान है जब कि सच्चाई ये है कि उर्दू किसी ख़ास मज़हब के साथ महिदूद नहीं बल्कि उसे हर फ़िरक़े के लोग बोलते और पढ़ते हैं।उन्हों ने कहा कि 1957 से क़बल हिंदूस्तान में कोई मज़हबी कशीदगी नहीं थी बल्कि फूट डालो और राज करो के मनफ़ी उसूल के तहत अंग्रेज़ों ने तारीख़ को तोड़ मरोड़ कर पेश किया और साबिक़ा मुस्लिम हुकमरानों की तास्सुबाना तारीख़ पेश करके हिंदूओं और मुस्लमानों के दरमयान मुनाफ़िरत पैदा की और फिर दोनों को लड़ा कर उन्हों ने बरसों तक हिंदूस्तान पर अपनी हुकूमत बरक़रार रखी और इसी के नतीजे में मलिक का भी बटवारा हो गया और उर्दू ज़बान को भी इसी मनफ़ी प्रोपेगंडे के ज़रीये नुक़्सान पहुंचाया गया।

लेकिन उर्दू के साथ जो नाइंसाफ़ी हुई है इस को ख़तन करना मेरा मिशन ही। जस्टिस काटजू ने कहा कि हिंदुस्तान पर बर्तानवी तसल्लुत के दौरान तारीख़ पर भी अंग्रेज़ीयत हावी रही और मुस्लिम हुकमरानों के अच्छे कारनामों को दबा कर उन के हिंदूओं के साथ उन के मुबय्यना तफ़रीक़ आमेज़ रवैय्ये को उजागर किया गया।

अंग्रेज़ तारीख़ नवीसों ने ये कभी नहीं लिखा कि मैसूर के टीपू सुलतान 156 मंदिरों को ग्रांट दिया करते थी, औरंगज़ेब मंदिर भी बनवाया करते थे और दीगर मुक़ामी हुक्मराँ और नवाबीन हिन्दू मुस्लिम इत्तिहाद केलिए अहम किरदार अदा करते थे।

उन्हों ने कहा कि मुस्लिम हुकमरानों और नवाबों के सिलसिले में मज़ीद रिसर्च किए जाने की शदीद ज़रूरत है ताकि मज़हबी हम आहंगी से मुताल्लिक़ उन के मुसबत रोल को उजागर किया जा सकी। ताकि मनफ़ी प्रोपेगंडे ने जो मुनाफ़िरत फैलाई है उसे दूर किया जा सकी।

उन्होंने कहा कि हर फ़िर्क़ा में 99फ़ीसद लोग अच्छे होते हैं, सिर्फ एक फ़ीसद लोग मनफ़ी सोच रखने वाले होते हैं, जिन से मज़हबी ख़ैरसिगाली और मुल़्क की तरक़्क़ी को ज़बरदस्त नुक़्सान पहुंचता है।

मिस्टर काटजू ने इस बात का एतराफ़ किया कि मुस्लिम मसाइल पर मीडीया, खासतौर पर इलैक्ट्रॉनिक मीडीया का ग़ैर ज़िम्मा दाराना रोल होता है।

यही वजह है कि मलिक के अंदर जहां कहीं भी बम धमाका होता ही। ज़राए इबलाग़ के लोग वाक़े के चंद घंटों के बाद ही ईल मेल और ऐस ऐम ऐस के हवाले से एक ख़ास फ़िर्क़ा की तंज़ीमों का वारदात में हाथ होने से मुताल्लिक़ ख़बरें नशर करना शुरू कर देते हैं, जिस के नतीजे में एक ख़ास फ़िर्क़ा के ख़िलाफ़ माहौल बनता है, जो बाद में फ़साद की शक्ल में सामने आता है।

इस लिए ज़राए इबलाग़ को बहुत मुहतात ख़बर निगारी करने की ज़रूरत है। पुलिस के रोल पर तशवीश ज़ाहिर करते हुए उन्हों ने कहा कि असल गुनहगार तो पकड़े नहीं जाते लेकिन ख़ाना परी के लिए चंद बेक़सूर नौजवानों को ज़रूर गिरफ़्तार करलिया जाता है।

उर्दू कौंसल के डायरैक्टर डाक्टर मुहम्मद हमीदुल्लाह भट्ट ने कहा कि हिंदुस्तान के सैकूलर आईन में उर्दू और संस्कृत के सिलसिले में जब तक कोई ठोस पालिसी नहीं बनाई जाएगी तब तक इन ज़बानों के साथ इंसाफ़ नहीं होगा।

उन्हों ने उर्दू से जुड़े आर्ट और क्रा़फ्ट को फ़रोग़ दे कर उन्हें रोज़गार से हम आहंग किए जाने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया। इस के साथ ही उन्हों ने कहा कि बारहवीं मंसूबे में नैशनल वोकेशनल फ्रेमवर्क में उर्दू को जोड़ना वक़्त की अहम ज़रूरत है।

रोज़नामा राष्ट्रीय सहारा उर्दू के ग्रुप ऐडीटर अज़ीज़ बरनी ने मुस्लमानों के मसाइल के ताल्लुक़ से क़ौमी मीडीया के मनफ़ी रोल पर मायूसी का इज़हार करते हुए कहा कि ज़राए इबलाग़, खासतौर पर इलैक्ट्रॉनिक मीडीया को अपने रोल में तबदीली लाने की शदीद ज़रूरत ही। इस के साथ ही उन्हों ने कहा कि मुस्लिम मसाइल को क़ौमी ज़राए इबलाग़ के ज़रीये नजरअंदाज़ करने को काबिल-ए-जुर्म अमल क़रार दिया जाना चाहिए

मारूफ़ सहाफ़ी ज़फ़र आग़ा ने मुबाहिसा में बोलते हुए कहा कि किसी भी ज़बान को जब तक असर-ए-हाज़िर के तक़ाज़ों से नहीं जोड़ा जाता तब तक वो तरक़्क़ी नहीं करसकती। इस लिए उर्दू की तरक़्क़ी के लिए उसे असरी तक़ाज़ों से हम आहंग करना और रोज़गार से जोड़ना नागुज़ीर ही। ताकि उसे ज़िंदा रख कर मज़ीद फ़रोग़ दिया जा सके।

उन्हों ने कहा कि उर्दू के फ़रोग़ के लिए डाक्टर हमीदुल्लाह भट्ट जो गिरां क़दर ख़िदमात अंजाम दे रहे हैं वो काबिल-ए-तहसीन है।

क़ब्लअज़ीं उर्दू कौंसल के वाइस चेयरमैन प्रोफ़ैसर वसीम बरेलवी ने अपने इफ़्तिताही ख़ुत्बे में मेहमान ख़ुसूसी जस्टिस काटजू का तआरुफ़ी ख़ाका पेश करते हुए एगज़ीकीटो अराकीन का ख़ौरमक़दम किया। अख़बार मशरिक़ के ऐडीटर वसीम उल-हक़, हमारा समाज के ऐडीटर ख़ालिद अनवर, रोज़नामा इन्क़िलाब के ऐडीटर शकील शमसी, रोज़नामा राष्ट्रीय सहारा के सय्यद असद रज़ा नक़वी, पंद्रह रोज़ा चौथी दुनिया की ऐडीटर वसीम राशिद और फ़िरोज़ बख़्त अहमद ने भी मुज़ाकरे में शिरकत की।