एशिया का मुमताज़ रिसर्च सेंटर दाइरतुल मआरिफ

नुमाइंदा ख़ुसूसी-क़रून वुसता में दौलत अब्बासिया-ओ-बनू उमीया की इलम पर्वरी-ओ-उल्मा नवाज़ी की बदौलत दुनिया का तमाम इलमी ज़ख़ीरा अरबी ज़बान में मुंतक़िल होचुका था । लिहाज़ा अहल यूरोप ने अरबी उलूम-ओ-फ़नून को बड़े शौक़ से सीखा बादा इन उलूम-ओ-फ़नून को ना सिर्फ अपनी ज़बानों में मुंतक़िल करने की कोशिश की बल्कि इलमी अनजुमनें क़ायम कर के तबाअत-ओ-इशाअत के ज़रीया इन फ़नून को महफ़ूज़ कर दिया । चुनांचे उलूम शरकिया की इशाअत की ख़ातिर सब से पहले 1778 में जज़ाइर हिंद मक़बूज़ा हालिसतान के शहर बयोता ( बाताक्या ) मैं एशियाटिक सोसाइटी क़ायम हुई फिर रफ़्ता रफ़्ता मुख़्तलिफ़ यूरोपियन ममालिक , फ़्रांस , इटली , जर्मनी वगैरह में एसी सोसाइटियां क़ायम होगईं ।

हिंदूस्तान में मशहूर मुस्तश्रिक़ सर विलियम जोन्स की कोशिश से 1784 में एशियाटिक सोसाइटी कलकत्ता की बुनियाद पड़ी जिस के ज़रीया क़दीम उलूम-ओ-फ़नून की तहकीकात , मख़तूतात और क़लमयात की तहक़ीक़-ओ-तलाश और नशर-ओ-इशाअत का काम ख़ुशउसलूबी से पाता रहा । यूरोप की इस तहकीकात इलमिया का असर रियासत हैदराबाद पर भी पड़ा यहां के उल्मा-ओ-फुज़ला के दिल में अरबी ज़बान के उलूम-ओ-फ़नून की गिरां तसानीफ़ जो दस्त बुरद ज़माना से तलफ़ होरही थीं उन के तहफ़्फ़ुज़-ओ-बक़ा का एहसास पैदा हुआ । इन कीमती ज़खाइर की हिफ़ाज़त नशर-ओ-इशाअत और बक़ा के लिये बाक़ायदा इदारे की ज़रूरत थी ।

उस की तशकील का ख़्याल सब से पहले नवाब इमादा उल-मुलक मौलाना सय्यद हुसैन साहब बिलग्रामी को हुआ । इस ख़्याल को पाया तकमील तक पहुंचाने में मौलाना अबदुलक़य्यूम साहब पेश पेश थे । उस की बक़ा और परवरिश का सामान मौलाना अनवार अल्लाह ख़ां साहब नवाब फ़ज़ीलत जंग मोइनुलमहाम उमूर मज़हबी ने मुहय्या क्या इन काबिल-ए-एहतिराम बुज़ुर्गों की कोशिश से 1307 में एक मुफीद इलमी इदारा वजूद में आया जिस का नाम दाइरतउल मारिफ़ है । इबतदा-में इस की इमदाद उल्मा-ओ-मशाइख़ करते रहे । माली दुश्वारियों के पेश नज़र नवाब सरोकार अलामर ए-बहादुर मैन अलमहाम अदालत-ओ-तालीमात की ख़िदमत में इस का तज़किरा किया गया और इस की सरपरस्ती की दरख़ास्त की गई ।

आप ने इस का ख़ैर मक़द्दम किया और सदारत क़बूल फ़र्मा कर एज़ाज़ बख्शा और एक अर्ज़ दाशत गुफरान मकान मीर महबूब अली ख़ां निज़ाम उल-मलिक आसिफ़ जाह सादस ( 5 रबीउसानी 1283 ह , 17 अगस्त 1866 रमज़ान 1329 हिज । 29 अगस्त 1911 ) की बारगाह में पेश की । हुज़ूर ने मंज़ूर फ़र्मा कर माहाना 500 रुपय की इमदाद से सरपरस्ती की । इस ज़माने में इदारे ने नादिर मख़तूतात की तलाश-ओ-मुंतख़ब कर के मुरत्तिब किया और तबा-ओ-शाय किया । आला हज़रत सुलतान उल-उलूम मीर उसमान अली ख़ां बहादुर ( 30 जमादीउसानी 1303 हिज । 6 अप्रैल 1886 -/ 24 फरवरी 1967 ) का अह्द हुमायूँ तारीख दक्कन में एक नए बाब का इज़ाफ़ा करता है ।

मिनजुमला कारनामों में सब से दरख़शां कारनामा जामिआ उस्मानिया और दारुल तरजमा वा तालीफ़ है । दाइरतुल मारिफ़ का सरकारी तआवुन की क़िल्लत के सबब दायरा अमल बिलकुल महिदूद होगया था । नवाब फ़ज़ीलत जंग बहादुर की कोशिश से हुज़ूर ने बराह मआरिफ़ नवाज़ी इदारे को यकमुश्त 5 लाख रुपय बेश बहा अतीया से सरफ़राज़ फ़रमाया नीज़ उस की तंज़ीम-ओ-तौसीअ का हुक्म दिया । चुनांचे इदारे को मुनज़्ज़म और बाक़ायदा शक्ल में लाने के लिये 14 जमादी उलअव्वल 1338 हक़ो एक दारुल तसहीह क़ायम किया गया । उल्मा-ओ-फ़ुज़्ला-ए-का इंतिख़ाब अमल में आया क़ाबिल इशाअत क़दीम किताबें , नायाब-ओ-कमयाब मख़तूतात , और मुतअद्दिद क़लमी नुस्ख़ों को दुनिया भर के कुतुब ख़ानों से तलाश कर के लाया गया ।

और मुक़ाबला-ओ-तसहीह के बाद निहायत एहतिमाम से तबा-ओ-शाय किया गया । यहां की मतबूआत दुनिया भर के कुतुब ख़ानों में मौजूद हैं । इस इदारे से मुख़्तलिफ़उलूम-ओ-फ़नून जैसे तारीख , तराजम , रजामी , फ़लसफ़ा-ओ-तबीआत अक़ाइद-ओ-कलाम , हईयत-ओ-मुनाज़िर , सैर , तसव्वुफ़ , अदब-ओ-लगत , फ़िक़्ह-ओ-हदीस की 200 से ज़ाइद किताबें तबा और शाय होचुकी हैं । क़ारईन ! आप को मालूम होना चाहीए कि दाइरतुल मारिफ़ की सैंकड़ों मतबूआत में कई एक एसी किताबें हैं जो ख़ालिस हिंदू मज़हब से मुताल्लिक़ हैं । जैसे भगवत गीता जिस का अरबी तर्जुमा जामे अज़हर यूनीवर्सिटी के शोबा-ओ-तारीख उसूल दीन के प्रोफेसर उस्ताद मुहम्मद हबीब की ज़ेर निगरानी डाक्टर मक्खन लाल राय चौधरी , एम एएअल एल बी , डी लुट , सदर शोबा तारीख-ओ-सक़ाफ़्त इस्लामी कलकत्ता यूनीवर्सिटी ने किया है । ये जामिआ अज़हर मिस्र से फ़ारिग़ हैं ।

ये किताब 1933 में एम एस ठाकुर असपनक एंड कंपनी कलकत्ता से शाय हुई थी । दाइरतुल मआरिफ हैदराबाद ने 1951 में दुबारा उसे शाय किया । भगवत गीता का दाइरतुल मआरिफ से तबा होना हमारे लिये कोई नई और हैरत की चीज़ नहीं है क्यों कि हर ज़माना में मुस्लिम हुक्मराँ इलम और अहले इल्म की ख़िदमत और हौसलाअफ़्ज़ाई करते रहे हैं और इस में किसी मज़हब का इम्तियाज़ नहीं किया जाताथा । लेकिन ये इबरत है इन फ़िरकापरस्त अनासिर और शरपसंद जमातों के लिये जो आज इस्लाम और मुस्लिम दुश्मनी में कोई दक़ीक़ा फ़िरोगुज़ाश्त नहीं रखते । हर तरह से मुस्लमानों को नुक़्सान पहुंचाने की कोशिश करते हैं और फ़िर्कापरस्ती के उनवान से वोट की तक़सीम के नापाक अज़ाइम रखते हैं । भगवत गीता का अरबी ज़बान में इस इदारे से नशर होना करारा चांटा है इन अनासिर के मुंह पर जो मुस्लमानों को हिन्दू और हिंदू मज़हब का दुश्मन क़रार देते हैं । मुस्लमानों कुमलक के लिये ख़तरा क़रार देते हैं ।

जब कि हक़ीक़त ये है कि मुलक को जितना ख़तरा इन शरपसंदों से इतना किसी और बाशिंदे से नहीं । इन फ़ित्ना बरपा करने वाली इंसानियत दुश्मन तनज़ीमों को याद रखना चाहीए कि अभी माज़ी करीब में जब निज़ाम की बादशाहत थी तो बाशिंदगान दक्कन किस तरह शिर-ओ-शक्र रहते थे । भगवत गीता इस फ़हरिस्त की एक ही किताब नहीं बल्कि एसी सैंकड़ों किताबें हैं जो अरबी , उर्दू , और फ़ारसी में तर्जुमा करा कर मुस्लमानों ने रफ़ाह आम के लिए शाय की । आज ये इदारा हुकूमत की बे तवज्जही का शिकार होने की वजह से गौना गों परे सतानियों से दो-चार है । मगर क़ाबिल मुबारकबाद हैं जनाब मुस्तफ़ा शरीफ साहब डायरैक्टर जिन की सरपरस्ती में इदारा का अमला जद्द-ओ-जहद और इंतिहाई मुश्किलात का सामना करते हुए अपने इलमी कामों को जारी रखे हुए है ।

सब से बड़ा मसला माली बोहरान और वसाइल जदीदा का फ़ुक़दान है जिस का अंदाज़ा आप इस से लगा सकते हैं कि जब हम ने भगवत गीता के मुंतख़ब औराक़ को फोटोकॉपी चाही तो माज़रत के साथ जवाब मिला कि यहां ज़ीराक्स मशीन नहीं है बाहर से करालें । 125 साला क़दीम एशिया के मुमताज़ रिसर्च सैंटर में एक ज़ीराक्स मशीन भी नहीं ? नीज़ 38 अहले इल्म हज़रात पर मुश्तमिल स्टाफ़ को हुकूमत की जानिब से किसी फ़ंड के मुख़तस ना होने की वजह तरह तरह के हालात और मसाइल का सामना है । इदारे की 60 साला क़दीम इमारत दो एकड़ ज़मीन पर फैली हुई है लेकिन इस में ना समेनार हाल है ना रिसर्च स्कालरस के लिये कोई नशिस्त गाह , इस अज़ीम इदारे की जानिब से हुकूमत की नज़र अंदाज़ी और यतिमाना सुलूक पर सवालिया निशान उठता है । हुकूमत को चाहीए कि इस के फैज़ान को जारी रखने के लिये मुम्किना तमाम इक़दामात करे । इस के लिये फ़ंड मुख़तस करे ।

यहां के स्टाफ़ के मसाइल कोसंजीदगी से हल करने की कोशिश करे और इस इदारे के कामों को वसीअ तर पैमाना पर आम करे । माली तआवुन के ज़रीया इदारे को इस्तिहकाम बख़्शे । ताकि ये अपने इलमी मिशन को और बेहतर अंदाज़ में लेकर आगे बढ़े । नीज़ मैनारेटीज वेलफ़ेर सैक्रेटरी जनाब रिफ़अत उल्लाह साहब से भी अपील की जाती है कि इस जानिब तवज्जा दें । उन की ज़रा सी कोशिश से इदारा एक बार फिर माज़ी की याद ताज़ा करसकता है । इस के साथ तमाम मुख़य्यर हज़रात से उम्मीद की जाती है कि अपने अज़ीम मिली इदारे के तआवुन में भरपूर हिस्सा लें और इस चमन को फिर से शादाब करें ।।