नई दिल्ली: एक क़ानून जो दर्जा फ़हरिस्त ज़ात और दर्जा फ़हरिस्त क़बाइल की बिरादरीयों पर मज़ालिम के इर्तिकाब की सूरत में सख़्त कार्यवाई की गुंजाइश फ़राहम करता है और जो लोग अपने वक़ार के बरख़िलाफ़ ऐसी कार्यवाईयों में शामिल पाए जाएं जिसमें समाजी या मआशी मुक़ातआ भी शामिल होगा, कल से इस क़ानून के दायराकार में शामिल होंगे।
इंसिदाद मज़ालिम दर्जा फ़हरिस्त ज़ातों-ओ-दर्जा फ़हरिस्त क़बाइल तरमीमी क़ानून 2015 के तहत सरमोनडदीना , मूंछे मोनडदीना या किसी किस्म की दूसरी कार्यवाहीयां जो दर्जा फ़हरिस्त ज़ातों दर्जा फ़हरिस्त क़बाइल के अरकान की तहक़ीर के लिए की जाएं मज़ालिम के जराइम क़रार दी जाएँगी।
इन जराइम में आबपाशी की सहूलतों या जंगलाती हुक़ूक़ तक रसाई से महरूम करना भी शामिल होगा। चप्पलों का हार पहनाना, इन्सानी या हैवानी ढाँचों को ज़ाए करने पर या ख़बरें खोदने पर मजबूर करना, इन्सानी तौर पर भंगी का काम करने की इजाज़त देना किसी एससी या एसटी ख़ातून को देवदासी क़रार देना और ज़ात पात के नाम पर इस का इस्तिहसाल भी इन मज़ालिम में शामिल होगा।
राय दही से मुताल्लिक़ बाज़ मख़सूस कार्यवाईयों के लिए उकसाना या फिर किसी ख़ास उम्मीदवार को वोट ना देने पर मजबूर करना भी जुर्म तसव्वुर किया जाएगा। बाज़ फ़ौजदारी जराइम जैसे ज़ख़मी कर देना, शदीद ज़ख़मी कर देना, धमकीयां देना, अग़वा करना वग़ैरा के लिए 10 साल की सज़ाए क़ैद और दर्जा फ़हरिस्त ज़ातों या दर्जा फ़हरिस्त क़बाइल के ख़िलाफ़ ऐसी कार्यवाई को इस क़ानून के तहत लाइक़-ए-ताज़ीर जुर्म क़रार दिया जाएगा।
फ़िलहाल ये जराइम सिर्फ क़ानून-ए-ताज़ीराते हिंद के तहत दर्ज हैं जिन पर 10 साल या इस से ज़्यादा सज़ा-ए-दी जा सकती है। लेकिन अगर यही जराइम दर्जा फ़हरिस्त ज़ातों या दर्जा फ़हरिस्त क़बाइल के ख़िलाफ़ किए जाएं तो ये नए क़ानून के तहत रहेंगे। विज़ारत समाजी इन्साफ़-ओ-बाअख़तयारी ने आज एक बयान जारी करते हुए अपने मौक़िफ़ की वज़ाहत की है। इस क़ानून के तहत ख़ुसूसी अदालतें क़ायम की जाएँगी। ख़ुसूसी वुकलाए इस्तिग़ासा का तक़र्रुर किया जाएगा।