नुमाइंदा ख़ुसूसी .इस्लाम की निगाह में कुफ्ऱो शिर्क के बाद एक ही सब से बड़ा गुनाह है , जिस का मुर्तक़िब (करने वाला)हमेशा हमेशा दोज़ख़ में जलता रहेगा । इस पर अल्लाह काग़ज़ब और इस की लानत बरसती रहेगी । कितना घबरा देने और तड़पा देने वाला ये इरशाद रब्बानी है । जो जान बूझ कर किसी मुस्लमान को क़त्ल करे इस का बदला ये है कि वो हमेशा जहन्नुम में रहेगा । इस पर अल्लाह का ग़ज़ब और इस की लानत हो । और अल्लाह ने इस के लिए भयानक अज़ाब तय्यार कर रखा है । ( अलनिसा-ए-93 ) । और हुज़ूर ने फ़रमाया कि उम्मीद है कि अल्लाह ताला हर गुनाह माफ़ फ़र्मा दें गे ।
सिवाए इस के कि कोई शिर्क की हालत में मरे या किसी मुस्लमान को जान बूझ कर क़त्ल करदे । ( अबू दाउद 4270 ) नीज़ आपऐ ने फ़रमाया कि अगर तुम अहल ज़मीन-ओ-आसमान एक मुस्लमान के क़त्ल में शरीक हूँ तो अल्लाह इन सब को जहन्नुम में औंधे मुंह डाल देगा । ( तिरमिज़ी 1398 ) कितनी लर्ज़ा बरानदाम करदेने वाली ये आयत-ओ-अहादीस हैं लेकिन इस के लिए जिस के दिल में ख़ौफ़ ख़ुदावंदी का कोई गोशा मौजूद हो जिस की आंखें कभी कभी सही , अल्लाह के ख़ौफ़ से नम होना जानते होँ , मगर जिन सीनों में दिल के बजाय पत्थर की सिल रखी हो और जिन क़ुलूब में मुहब्बत की शबनम जगह पाने की बजाय नफ़रत और ज़ुलम वजूद की भट्टियां सुलगती हूँ , उन के बारे में क्यों कर सोचा जा सकता है कि ख़ालिक़ कायनात और इस के महबूब के ये पाक इर्शादात भी इन को तड़पा सकेंगे ।
आह ! किस क़लम से लिखा जाय और किस ज़बान से बोला जाय कि हमारे शहर में अभी चंद दिनों कब्ल एक मुस्लिम नौजवान का बेदर्दाना क़त्ल हुआ है । किस के हाथों ? क्या किसी गैर मुस्लिम के हाथ ? किसी दुश्मन इस्लाम के ज़रीया ? नहीं , हैरत है कानों से सुनिये कि एक कलिमागो ने दूसरे कलिमागो को नाहक़ क़त्ल किया है । एक मुस्लमान की तिश्ना तलवार ने एक मुस्लमान ही के लहू से अपनी प्यास बुझाई , बुला सबब ख़ुदा का ग़ज़ब खरीदा , अपने गले को लानत ख़ुदावंदी के तविक से आरास्ता किया और अबदी दोज़ख़ हासिल की । इस बे हिसीपर आँखें जिस क़दर आँसू बहाती , दिल जितना भी तड़पे और रोय कम है ।
इस लर्ज़ाख़ेज़ और अलम अंगेज़ हादिसा की तफ़सीलात इस तरह हैं कि गैर समाजी अनासिर का एक टोला हसन नगर के एक मकान में जुवा और शराब नोशी में मुबतला था । 15 साला एक बच्चा मोटर साइकिल पर हॉर्न बजाता हुआ वहां से गुज़र रहा था कि इस टोला का अहम सरग़ना अमजद ने इस बच्चा को पकड़ कर ज़द-ओ-कोब क्या दूर से ये मंज़र 22 साला नौजवान जहांगीर अता उल्लाह जो एक ख़ानगी कंपनी का मुलाज़िम था देख रहा था । करीब आकर जहांगीर ने अमजद से बचा को मारने की वजह दरयाफ़त की । ये पूछना ही था कि अमजद जो पहले से ही लड़ाई झगड़ों के कई मुआमलात में मुलव्विस है ने ये कहते हुए कि मुझ से वजह पूछने की तिरी हिम्मत कैसे हुई । अपना चाक़ू निकाल कर नौजवान जहांगीर के सीने में सीधा उतार दिया ।
चाक़ू के इस मोहलिक ज़ख़म को तस्वीर में देखा जा सकता है । ये हादिसा 15 मार्च बह वक़्त 11-30 बजे रात का है । बाद अज़ां उसे फ़ोरा उस्मानिया दवाख़ाना मुंतक़िल किया गया जहां वो सात रोज़ तक ज़िंदगी और मौत से पंजा आज़माई करता रहा और बिल आख़िर ज़िंदगी से हार गया और 22 तारीख की सुबह 8 बजे अपनी 20 साला अहलिया दो मासूम बच्चों , बूढ़े वालदैन और बहन भाईयों को रोता बिलकता छोड़कर अल्लाह को प्यारा होगया । अल्लाह उसे अपनी वसीअ जन्नत में जगह देआमीन । बाद अस्र जामि मस्जिद अच्छे मियां में नमाज़ जनाज़ा अदा की गई लोगों की एक भारी जमीत ने सोगवार क़ुलूब और ग़मनाक आँखों के साथ जहांगीर अता उल्लाह को सपुर्द-ए-ख़ाक क्या ।
इस मौक़ा पर जहांगीर के वालिद शाहजहां अता उल्लाह ने जो पेशा से ताजिर हैं और जिन के पास 5 बैठे थे । सियासत के नुमाइंदा ख़ुसूसी को तफ़सीलात से वाक़िफ़ कराते हुए कहा कि अंदरून 8 माह हमारे साथ ये दूसरा हादिसा है । अभी 8 महीना कब्ल ही हमारा 18 साला लड़का तालाब में ग़र्क़ हो कर फ़ौत होगया था । हम इस उल-मनाक हादिसा से सँभलने ना पाए थे कि एक और बेटा हम से रूठ कर चला गया । ये कहते हुए शाहजहां के आँखों से आनसों की लड़ी जा रही थी । सिर्फ मासूम बच्चा को मारने की वजह पूछने पर अमजद और इस के चार साथियों ने हमारे बेटे को हम से छीन लिया । जब कि इस की किसी से दुश्मनी भी नहीं थी । इस अलम अंगेज़ वाक़िया से हमारे घर में क़यामत टूट पड़ी है ।
इस वाक़िया के बाद से ही जहांगीर की बीवी जो अब बेवा होगई और इस की बहन रोते रोते बेहाल हैं , वक़फ़ा वक़फ़ा से वो बेहोश हो जा रही हैं । मक़्तूल जहांगीर के वालिद ने हम ही से सवाल किया कि 8 माह में दो जवान बेटों की मौत से एक बाप और इस के अहल-ए-ख़ाना के दिलों पर ग़मों का कौनसा पहाड़ टूटता है आप बह ख़ूबी महसूस करते होंगे । मज़लूम जहांगीर के वालिद का कहना है कि अमजद को पुलिस ने गिरफ़्तार करलिया है लेकिन इस के दीगर साथी हनूज़ पुलिस की गिरिफ़त से आज़ाद हैं । उन्हों ने क़ातिल अमजद के बारे में बताते हुए कहा कि शराबनोशी और गांजा का आदी होने के साथ साथ रातों को आटो वालों से धमका कर पैसे वसूल करना इस का रोज़ का मामूल था ।
शाहजहां ने कहा कि आख़िर हसन नगर में क़ानून नाम की भी कोई चीज़ है ? इसी तरह हसन नगर के दो समाजी कारकुन मुहम्मद जहांगीर और मुहम्मद महमूद ने शिकायत की कि पुलिस ने क्यों हसन नगर को यतीम-ओ-यसीर छोड़ रखा है । आए दिन यहां उसे हादिसात पेश आते रहते हैं जिस से यहां के बाशिंदों में ख़ौफ़-ओ-हिरास और बे चैनी पाई जाती है । ज़राए से मालूम हुआ है कि क़ातिल अमजद का बड़ा भाई एक M.L.C का कार ड्राईवर है जो उस की सरपरस्ती कर रहा है और अपनी ताक़त का ग़लत इस्तिमाल करते हुए अपने भाई को बचाने की हर मुम्किन कोशिश कर रहा है । वाज़िह रहे कि हसन नगर में जंगी पैमाने पर इस्लाह मुआशरा का काम करने की ज़रूरत है ।
जहांगीर अता उल्लाह । जिसे मामूली सी बात पर हलाक कर दिया गया । उस की बीवी को बेवा और बच्चों को यतीम बना दिया गया । इस के वाक़िया से इस्लाह मुआशरा का काम करने वालों को इबरत हासिल करनी चाहीए नीज़ अहल सरवत हज़रात अपने इलाक़ा के पुर सुकून माहौल से मुतमइन ना हूँ । ज़मीनी हक़ायक़ से आगही हासिल कर के इस हवाले से फ़िक्रमंद होने की अशद ज़रूरत है ।
जिस तरह ईसाई मिशनरीज़ गली गली जाकर ईसाईयत की तब्लीग़ कर रही हैं इन से सबक़ हासिल कर के हमें भी घर घर जाकर इस्लाह का काम करना चाहीए क्यों कि ये तबक़ा ना अख़बारात पढ़ता है और ना आप के बड़े बड़े मैदानों और शादी ख़ानों में मुनाक़िद होने वाले अज़ीम उल-शान जलसों में शरीक होता है । लिहाज़ा सल्लम और गरीब इलाक़ा में जा जा कर काम करने की ज़रूरत है ।
इस मंज़र से मुआशरा के फ़साद का बह ख़ूबी अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि जब जहांगीर अता उल्लाह की नमाज़ जनाज़ा पढ़ी जा रही थी तो जनाज़ा में जितने अफ़राद शरीक थे इतने ही बल्कि उन से भी ज़्यादा बाहर खड़े थे । मालूम करने पर पता चला कि वो तहारत से नहीं थे नीज़ महिकमा पुलिस की ज़िम्मेदारी है कि हसन नगर में जारी गैर कानूनी गुड़मबा के कारो बार से इलाक़ा को पाक-ओ-साफ़ करे और गैर समाजी अनासिर पर क़ाबू पाते हुए यहां अमन-ओ-अमान का माहौल पैदा करे ।।
* मुझ से वजह पूछने की तेरी हिम्मत कैसे हुई ये कहते हुए अमजद ने जहांगीर के सीने में चाक़ू उतार दिया ।
* 8 माह कब्ल जहांगीर का छोटा भाई तालाब में ग़र्क़ होकर फ़ौत होगया था ।
* मैं ने 8 महीने के अंदर दो जवान बेटों के जनाज़े को कंधा दिया ।
* जहांगीर की बीवी 20 साल की उम्र में बेवा , दो मासूम बच्चे बाप की शफ़क़त से महरूम, इस का ज़िम्मेदार कौन ?
* तक़रीबन 50 कलिमा गो मुस्लमानों ने नमाज़ जनाज़ा में तहारत ना होने की वजह से शिरकत नहीं की । क्या इस्लाह मुआशरा की तनज़ीमों और अफ़राद को ये वाक़िया दावत फ़िक्र नहीं देता ।