कई बार रेप की शिकार हुई पहली ट्रांसजेंडर मानबी ने कहा….

कोलकाता: हिंदुस्तान में पहली बार किसी ट्रांसजेंडर को प्रिंसिपल बनाया जा रहा है. 9 जून को मगरिबी बंगाल के नदिया जिले में एक वुमेन्स कॉलेज में प्रिंसिपिल का चार्ज संभालने जा रहीं मानबी बनर्जी ने इसे लंबी लड़ाई के बाद मिली जीत करार दिया है. उन्‍होंने कुछ दिनो पहले एक इंटरव्‍यू में बताया था कि कम उम्र में ही कई बार उन्‍हें बलात्‍कार का शिकार होना पड़ा था.

मानबी फिलहाल विवेकानंद सतोवार्षिकी महाविद्यालय में बांग्ला की एसोसिएट प्रोफेसर हैं. शायद हिंदुस्तान ही नहीं दुनिया में यह पहला मौका होगा जब किसी ट्रांसजेंडर कॉलेज के प्रिंसिपल की जिम्मेदारी दी जा रही है.

मानबी का कहना है, ”यह लंबी लड़ाई के बाद मिली जीत जैसी है. एक वक्त था जब मुझे ट्रांसजेंडर होने की वजह से परेशानी सहनी पड़ी. मैंने अपना बचपन नदिया में गुजारा और अब मैं एजाज के साथ अपने घर लौट रही हूं. मैंने अपनी ज़िंदगी में बहुत तकलीफ सही. जब मैं स्कूल में थी तो मुझे न सिर्फ मारा पीटा गया बल्कि कई बार मेरा रेप किया गया. कुछ लोगों ने मेरे अपार्टमेंट में आग लगा कर मुझे मार डालने की कोशिश तक की थी.”

सोमनाथ से मानबी बनने की पूरी कहानी
मानबी बनर्जी का पहले नाम सोमनाथ था. उनकी दो बहनें थीं और घर में सिर्फ वह ही लड़के थे. एक इंटरव्यू में मानबी ने कहा था, ” बचपन में ही मुझे खुद में लड़की होने का एहसास हुआ. लेकिन मेरे वालिद यह पसंद नहीं करते थे. मैं पढ़ने के साथ ही डांसिंग क्लास जाना पसंद करती थी. मेरे वालिद हमेशा मुझे ताना मारा करते थे. हालांकि, मेरी बहनें हमेशा मेरे साथ रहती थीं.

जैसे-जैसे मैं बड़ी होती गई मुझे लगा कि मुझे लड़कियों के मुकाबले लड़के अच्छे लगते हैं. जब कोई लड़का मुझे छूता था तो मुझे कुछ अलग फीलिंग होती थी, लेकिन मैं अपनी खाहिश किसी से कह नहीं पाती. जब मैं स्कूल में थी तो मैं खुद से साइकियाट्रिस्ट के पास गई, लेकिन मेरे अंदर कोई बदलाव नहीं आया. डॉक्टर मुझे कहते थे कि मैं भूल जाऊं कि मैं लड़की हूं. कुछ डॉक्टरों ने तो यहां तक कह दिया था कि अगर मैंने लड़की होने का एहसास नहीं छोड़ा तो मुझे खुदकुशी तक करनी पड़ेगी. वे मुझे नींद की दवाइंया देते थे, लेकिन मैं उन्हें फेंक देती थी. मेरी ज़िंदगी इसी तरह चलती रही. घर में मैं लड़कियों की तरह रहती थी लेकिन जब घर से बाहर निकलती थी खानदान वालों की डर के चलते मुझे ट्राउजर और शर्ट पहनना पड़ता था.

मर्दों के जैसे रवैय्ये इख्तेयार करना पड़ता था. यह मेरे लिए बहुत दर्द भरा वक्त था, लेकिन मेरे पास कोई रास्ता नहीं था. इन सबके बावजूद मैंने कभी पढ़ाई नहीं छोड़ी. होमो होने के कारण मुझे स्कूल और कॉलेज में ताने मारे जाते थे लेकिन मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता था.

मानबी कहती हैं कि 2003-2004 में मैंने हिम्मत जुटाई और सेक्स चेंज ऑपरेशन का फैसला लिया. इस दौरान मुझे कई ऑपरेशन कराने पड़े. पांच लाख रुपए में मैंने यह ऑपरेशन कराया. सर्जरी के बाद मैं पूरी तरह से आज़ाद हो गई. अब मैं जो चाहती हूं पहनती हूं. आराम से साड़ी पहनती हूं. ऑपरेशन के फौरन बाद मैंने अपना नाम सोमनाथ से मानबी रख लिया जिसका बांग्ला में मतलब औरत होता है.

आपको बता दें कि गुजश्ता साल अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडर को तीसरे जेंडर के तौर पर मंज़ूरी दी थी. एक आंकड़े के मुताबिक भारत में 20 लाख से ज्यादा ट्रांसजेंडर हैं.

1995 में मानबी ने ट्रांसजेंडरों के लिए पहली मैग्जीन ‘ओब-मानब’ (Sub-human) निकाली. मैग्जीन भले ही नहीं बिकती हो लेकिन पबलिश आज भी होता है. मानबी ने अपनी ज़िंदगी के तजुर्बो पर नावेल्स भी लिखा है. इंडलेस बॉन्डेज (Endless Bondage). यह बेस्टसेलर रहा. उन्होंने कहा कि आज भी उनके नावेल्स की मांग काफी है.

मानबी ने कहा कि भले ही कॉलेज में मेरे साथी पढ़े-लिखे होते हैं लेकिन कई बार मेरे साथ इम्तियाज़ी सुलूक किया गया. मुझे परेशान किया जाता था. 2005 में अपनी पीएचडी पूरी करने वाली मानबी ने कहा झाड़ग्राम में पहली पोस्टिंग के दौरान मुझे मेल रजिस्टर पर साइन करने के लिए मजबूर किया जाता था. स्टूडेंट्स यूनियन ने मुझे धमकाया था और मोहल्ले में किसी को हमें किराएदार रखने से मना कर दिया था. कॉलेज ऑथिरटी ने कई बार परेशानी खड़ी करने की कोशिश की. वे लोग शुरू में मुझे मानबी बनर्जी के तौर पर काम नहीं करने देते थे, क्योंकि मुझे नौकरी सोमनाथ बनर्जी नाम से मिली थी. हालांकि कानून वे मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सके.

मानबी मंगल के रोज़ कॉलेज भी पहुंची तो उनके साथ उनका गोद लिया हुआ बेटा देवाशीष और एक ट्रांसजेंडर दोस्त ज्योति सामंता थी. मानबी नई जिम्मेदारी को लेकर बेहद खुश हैं. मानबी के साथी और स्टूडेंट्स भी बेहद खुश हैं. कॉलेज में ही भूगोल की प्रसेफर जयश्री मंडल कहती हैं, ” मानबी ने ज़िंदगी में बहुत चुनौतियां झेली हैं. मानबी कई लोगों के लिए एक आइडियल हैं. उनकी रहनुमाई में कॉलेज और स्टूडेंट्स खूब तरक्की करेंगे.”

किसी ट्रांसजेंडर को कॉलेज का प्रिंसिपल बनाने पर रियासत की हुकूमत ने इस फैसले की तारीफ की है. रियासत के एजूकेशन मिनिस्टर पार्थो चटर्जी का कहना है, ”यह फैसला कॉलेज सर्विस कमिशन का है. हमने फैसले में कोई दखल नहीं दिया, वे हमारे खुले ख्यालों को जानते हैं. मैं इस फैसले से खुश हूं.” कॉलेज की गवर्निंग बॉडी के चेयरमैन और Technical Education Minister उज्जवल विश्वास का कहना है कि हमें एक शख्सियत की जरूरत थी जो कॉलेज को सही तरीके से चला सके.