दिल्ली की एक अदालत ने DDA के एक ओहदेदार को गै़रक़ानूनी तामीर (निर्माण) की इजाज़त देने के लिए 1000 रुपये बतौर रिश्वत कुबूल ( स्वीकार) करने पर तीन साल की सज़ाए क़ैद और 50,000रुपये जुर्माना आइद ( लगाना) किया है । ये फ़ैसला सुनाते हुए अदालत ने कहा कि कोई भी मुल्ज़िम ( अपराधी) अदालत से सिर्फ इसलिए रियायत तलब नहीं कर सकता कि इसने जो रक़म बतौर रिश्वत ली है वो बहुत मामूली है ।
ख़ुसूसी सी बी आई जज दिनेश कुमार शर्मा ने फ़ैसला सुनाते हुए कहा कि मुल्ज़िम ( अपराधी) ये किस तरह सोच सकता है कि इसने अगर मामूली रक़म बतौर रिश्वत तलब की है तो उसकी सज़ा भी मामूली होगी । रिश्वत लेने वाला शायद ये भूल जाता है कि जिस वक़्त उसे रंगे हाथों पकड़ा गया वो इन मौक़े में से एक मौक़ा था जब इस ने क़ब्लअज़ीं भी मुतअद्दिद ( कई बार) बार रिश्वत वसूल की होगी और सिर्फ वो दिन इसके लिए मनहूस साबित हुआ जब उसे रंगे हाथों पकड़ा गया वर्ना अब तक तो वो रिश्वत की रक़ूमात से मुस्तफ़ीद (नफा /लाभ कमाने वाला) होता रहा।
बदउनवानी (नियम के विरुद्व/खिलाफ काम करना) एक ऐसा ज़हर है जो ख़ून में सराएत ( दाखिल)कर जाता है और उसके बाद रिश्वतखोरी की आदत पड़ जाती है।