फिर जब बहरा करने वाला शोर उठेगा, उस दिन आदमी भागेगा अपने भाई से और अपनी माँ से और अपने बाप से और अपनी बीवी से और अपने बच्चों से। हर शख़्स को इनमें से उस दिन ऐसी फ़िक्र लाहक़ होगी जो उसे (सबसे) बेपरवाह कर देगी। कितने ही चेहरे उस दिन (नूर ए ईमान से) चमक रहे होंगे, हंसते हुए ख़ुश-ओ-ख़ुर्रम और कई मुँह उस दिन गुबार आलूद होंगे, उन पर कालिख लगी होगी। यही वो काफ़िर व फ़ाजिर लोग होंगे। (सूरा अबस।३३ता४२)
ज़िक्र मआश के बाद फिर ज़िक्र मुआद हो रहा है, ताकि लोग इसके लिए तैयार हो जाएं और इस तवील सफ़र के लिए आमाल सालेहा की ज़ाद फ़राहम कर लें। अल साख्ता गरजदार आवाज़ को कहते हैं, जिसके शोर से कान बहरे हो जाते हैं। इससे मुराद नफ़ख़ा-ए-सानिया है, जब कि सब लोग अपनी क़ब से उठ खड़े होंगे।
उस दिन अजीब अफरा तफरी और नफसा नफ़सी का आलम होगा, किसी को दूसरे की होश ना होगी, हर एक अपनी मुसीबत में फंसा होगा। उस होलनाक दिन भी बाअज़ चेहरे ऐसे होंगे जो चमक रहे होंगे, ख़ुशी से हंस रहे होंगे और उनके चेहरों पर मुसर्रत-ओ-फ़रहत के आसार नुमायां होंगे। उन्हें कोई अंदेशा और फ़िक्र ना होगा।
अला इन औलिया-ए-अल्लाह लाखौफ़ अलैहिम वलाहुम यहज़नून का मंज़र सारी दुनिया देख रही होगी। लेकिन वो बदनसीब जिन्होंने सरकशी और सरताबी करते हुए अपनी उम्रें बर्बाद कर दी थीं, उनके चेहरों पर ख़ाक उड़ रही होगी और उनके चेहरों पर स्याही छाई होगी।
ये वो लोग होंगे जो सारी उम्र कुफ्र करते रहे और फ़िस्क़-ओ-फ़ुजूर में मुब्तला रहे।