नई दिल्ली। हैदराबाद से तीन बार के लोकसभा सांसद ओवैसी ने तीन तलाक बिल में तीन साल की जेल की सजा पर भी सवाल उठाया। उन्होंने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि केवल तीन तलाक कहने मात्र से शादी खत्म नहीं होगी तो इसके लिए तीन साल की जेल की क्या आवश्यकता है?
हमारे पास महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करने के लिए बहुत से कानून हैं, जिसमें भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 498 ए, घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 और मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम 1986 के तहत धारा 20 और 22 शामिल है।
ओवैसी ने तीन तलाक बिल में सजा के तौर पर तीन साल की जेल देने का विरोध करते हुए सवाल किया कि तीन तलाक कहने पर जेल भेजे जाने वाले व्यक्ति की पत्नी को भत्ता या मुआवजा कैसे मिलेगा?’
ओवैसी ने कहा कि उन्होंने तीन तलाक बिल में उन्मूलन और त्याग करने के प्रावधानों में संशोधन के लिए सुझाव दिया था, जिसे सिरे से खारिज कर दिया गया।
उन्होंने कहा, ‘भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने अपने स्वार्थों के लिए मेरे संशोधन के सुझाव को नकार दिया, जबकि कांग्रेस यह साबित करना चाहती है कि वो भाजपा की तुलना में अधिक हिंदू समर्थक है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद, मुस्लिम व्यक्ति तीन बार तलाक कहकर अपनी पत्नियों को छोड़ रहे हैं। जब उनसे पूछा गया कि आखिर क्यों वो तीन तलाक के मामलों को खत्म करने वाले बिल के विरोध में हैं?
तो उन्होंने कहा, ‘आईपीसी की धारा 498 ए और घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत कोर्ट में दर्ज मामलों में 80 फीसदी गैर-मुस्लिम महिलाएं शामिल हैं। हालांकि, उन्होंने इस बात पर सहमति जताई कि मुस्लिम महिलाओं को शिक्षा और नौकरी मिलनी चाहिए।
साथ ही उन्होंने शिक्षित महिलाओं के लिए सात प्रतिशत आरक्षण की भी मांग की। उन्होंने कहा कि अगर सरकार को को लगता है कि मुस्लिम महिलाओं को शिक्षित किया जाना चाहिए, तो उन्हें आरक्षण दे देना चाहिए।
उन्होंने तीन तलाक बिल पर सवाल उठाते हुए कहा कि इसकी क्या गारंटी है कि इस विधेयक के कानून बनने के बाद मुस्लिम महिलाओं को न्याय मिलेगा। इसका खात्मा कानून के द्वारा नहीं किया जा सकता।