काबा शरीफ-ओर-रोज़ा-ए-मुबारक के मॉडल्स रास्तों पे रखना एहतिराम के ख़िलाफ़

हैदराबाद 3 फरवरी । अतहर मोईन- माह रबीउल अव्वल दुनिया भर के करोड़ों मुस्लमानों के लिए एक ख़ुसूसी महीना है जो उन की जान-ओ-माल से ज़्यादा अज़ीज़ पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफा सल्लाहो अलैहि वसल्लम की विलादत से मौसूम है। अहले इस्लाम के लिए ये अपने नबी सल्लाहो अलैहि वसल्लम से इज़हार मुहब्बत-ओ-वारफ़्तगी और आप सल्लाहो अलैहि वसल्लम के पयाम इंसानियत के तुएं अपने अह्द की तजदीद का मौक़ा है। नबी आख़िरी उल्ज़मां सल्लाहो अलैहि वसल्लम से मुस्लमानों के ताल्लुक़ में मुहब्बत एक कलीदी लफ़्ज़ है। नबी रहमत सल्लाहो अलैहि वसल्लम का नाम गिरामी ही आँखों के अशकबार होजाने और दलों के जज़बात से मग़्लूब होजाने के लिए काफ़ी है।

एक मुस्लमान जब कभी हादी इंसानियत सल्लाहो अलैहि वसल्लम का इस्म मुबारक अपनी ज़बान से अदा करता है यह किसी से सुनता है तो अपनी गहिरी मुहब्बत-ओ-वराफ़तगी के इज़हार के तौर पर दरूद-ओ-सलाम का नज़राना पेश करता है। मीलाद उन्नबी सल्लाहो अलैहि वसल्लम पर हर वो दिल मसरूर होता है जिस दिल में हुब्ब रसूल अल्लाह सल्लाहो अलैहि वसल्लम हो। आक़ाए दो जहां सल्लाहो अलैहि वसल्लम का मुक़ाम-ओ-मर्तबा इतना बुलंद-ओ-बाला है कि ज़र्रा बराबर लग़्ज़िश-ओ-कोताही से हमारा आमाल इक्का रुत होजाते हैं। अल्लाह रबुल इज़त ने अपने हबीब सल्लाहो अलैहि वसल्लम के अदब-ओ-एहतिराम मुक़ाम-ओ-मर्तबा समझाने के लिए ये तंबीया करता है कि ख़बरदार अपनी आवाज़ को नबी करीम सल्लाहो अलैहि वसल्लम से ऊंची ना करें वर्ना तुम्हारे आमाल ज़ाए कर दीए जाएंगे मगर ये देखा गया है कि हम मीलाद-उन्नबी सल्लाहो अलैहि वसल्लम के मौक़ा पर अपनी ख़ुशीयों-ओ-मुसर्रत के इज़हार में एक दूसरे पर बाज़ी ले जाने की कोशिशों में दानिस्ता और नादानिस्ता तौर पर इसी इसी कोताहियों और ख़िलाफ़ इस्लाम हरकतों का इर्तिकाब कर बैठते हैं जो शान रिसालत मआब सल्लाहो अलैहि वसल्लम में गुस्ताख़ी और नाक़द्री पर महमूल होती हैं।

बारह रबी उल अव्वल को मीलाद उन्नबी सल्लाहो अलैहि वसल्लम के मौक़ा पर शहर हैदराबाद में जिस अंदाज़ में जश्न मनाया जाने लगा है। उलमाए उज़्ज़ाम-ओ-सालेहिने कराम की सरपरस्ती-ओ-निगरानी ना होने की वजह से यक़ीनन हम से गुलो होने लगा है और ख़ुशीयों के इज़हार करते हुए हम हदूद शरीयत को फलांगने लगे हैं। रहमतुल लिआलमिन सल्लाहो अलैहि वसल्लम से सच्ची और हक़ीक़ी मुहब्बत रखने वाले मुस्लमानों का दिल उन हरकतों को देख कर बे चैन हो उठा है। ये देखा गया कि मीलाद-उन्नबी सल्लाहो अलैहि वसल्लम के मौक़ा पर अग़ियार की देखा देखी मुस्लमान रक़्स-ओ-सुरूर में मगन होने लगे हैं और अफ़्शां ( अराश) लगाकर रात के औक़ात सड़कों पर शोर शराबा करते हुए घूमने लगे हैं जो दूसरों को तकलीफ का भी मूजिब है और डिस्क जॉकी (DJ) पर बुलंद आवाज़ पर नाअत पाक नशर करने लगे हैं और फ़िल्मी गानों की धुनों पर नाअतिया कलाम पेश करने लगे हैं।

हत्ता कि इसी झंडियां जा बजा लगाने लगे हैं जिन पर कलिमा तैबा तहरीर होता है जो अक्सर-ओ-बेशतर सड़कों पर गिरजाती हैं जिस से कलिमा तैबा की बेहुर्मती होती है। इलावा अज़ीं एक और रुजहान बढ़ता जा रहा है कि लोग काबत उल्लाह और गनबद ख़ज़रा के मॉडल बनाकर इस के अतराफ़ धुनों पर रक़्स करने लगे हैं और बाअज़ जाहिल लोग इन मॉडल्स का तवाफ़ भी करने लगे हैं। इन ही ख़ुराफ़ात को देखते हुए मेला उन्नबी सल्लाहो अलैहि वसल्लम के मौक़ा पर जलूस का इंसिराम करने वाले सुन्नी दावते इस्लामी के अर्बाब ने जुनूबी हिंद की नामवर देनी जामिआ, जामिआ निज़ामीया से जिस के फतावा आलम इस्लाम में मोतबरीयत के हामिल होते हैं रुजू होते हुए इन तमाम उमूर के बारे शरई नुक़्ता-ए-नज़र से मिल्लत इस्लामीया को आगाह करने की इस्तिदा की जिस पर जामिआ निज़ामीया के दारालाफ़ता-ए-ने इंतिहाई जामे फ़तवा सादर किया जिस पर मुफ़्ती जामिआ निज़ामीया मौलाना मुफ़्ती मुहम्मद अज़ीम अलुद्दीन नायब शेख इलजा मआ मौलाना हाफ़िज़-ओ-क़ारी अबदुल्लाह कुरैशी इलाज़ हरी ख़तीब मक्का मस्जिद शेख अलादब मौलाना डाक्टर मुहम्मद सैफ उल्लाह कादरी शेखउल तजवीद मौलाना डाक्टर शेख मुहम्मद अबदुलग़फ़ूर कादरी शेख अलतफ़सेरमोलाना मीर लताफ़त अली नायब शेख अलहदीस मौलाना सय्यद सग़ीर अहमद नक़्शबंदी और नायब मुफ़्ती मौलाना मुहम्मद क़ासिम सिद्दीकी तसख़ीर ने अपनी अपनी दस्तख़तें सबुत की हैं।

इस फ़तवा में कहा गया नबी अकरम सल्लाहो अलैहि वसल्लम की विलादत बा सआदत का दिन तमाम अहल इस्लाम के लिए फ़र्हत-ओ-सरूर बहजत-ओ-इंबिसात का दिन है। मीलादउन्नबी सल्लाहो अलैहि वसल्लम के मुबारक मौक़ा पर ख़ुशी का इज़हार करना बतौर शुक्राना रोज़ा रखना नबी अकरम सल्लाहो अलैहि वसल्लम के अमल मुबारक से साबित है।बिना बरीं (इस बुनयाद पर) इस मुबारक मौक़ा पर नबी अकरम सल्लाहो अलैहि वसल्लम के ज़िक्र मुबारक की महफिलें मुनाक़िद करना दरूद सलाम इबआम ताम-ओ-दीगर कारए ख़ैर का एहतिमाम करना शरअन महमूद व मुसतहसन हैं। ताहम इज़हारे ख़ुशी हदूद शरीयत में होना चाहीए इज़हार ख़ुशी में गैर शरई आमाल-ओ-हरकात जैसे गाना बजाना रक़्स करना गानों की धुन में नाअत लगाना वगैरह की क़तअन इजाज़त नहीं होसकती।

इतनी बुलंद आवाज़ से रेकॉर्ड लगाना जिस से दूसरों को तकलीफ होती हो मना है। हत्ता कि दूसरों को ख़लल का अंदेशा हो तो बिलजहर(जोर से) क़ुरआन मजीद पढ़ने का हुक्म नहीं। इसी झंडियां लगाना जिस में कलिमा तैबा तहरीर हो गो के जायज़ है मगर उस की बेअदबी के एहतिमालात को मल्हूज़ रखते हुए उस की हिफ़ाज़त का एहतिमाम ज़रूरी है काअबा शरीफ और गुमबद खसरा-ए-का मॉडल बनाना और रास्तों में रखना एहतिराम के ख़िलाफ़ है और अराश लगाना गैर इस्लामी तरीका है। इस्लाम -पाकीज़ा मज़हब है इस में लग़वयात ख़ुराफ़ात और सक़ाहत-ओ-वक़ार से आरी हरकात की कोई गुंजाइश नहीं। मुबाह-ओ-आमाल ख़ैर में इस बात को मल्हूज़ रखना ज़रूरी है कि इस से दूसरों को अज़ियत-ओ-तकलीफ और ख़लल ना हो।

फ़क़त वस्सलाम। हैदराबाद के इन जै़यद उलमाए किराम की आरा की रोशनी में हर उस मुस्लमान को ये देखना होगा कि मीलाद-उन्नबी सल्लाहो अलैहि वसल्लम की ख़ुशीयां वो जिस अंदाज़ में मना रहा है आया वो लग़वयात-ओ-ख़ुराफ़ात के दायरा में तो नहीं आती हैं। हमें हमेशा याद रखना होगा कि हमारे नबी को रब कायनात ने रहमतुल लिल आलमीन बनाकर भेजा है और हमें ख़ैर उम्मत के लक़ब से सरफ़राज़ किया है इस लिए हमारा कोई अमल एसा नहीं होना चाहीए जिस से किसी इंसान तो कुजा किसी जानदार को तकलीफ पहुंचे। हुब्ब रसूल अमल का मुतक़ाज़ी है। हादी इंसानियत सल्लाहो अलैहि वसल्लम से जिन पर हम अपनी जान-ओ-माल को क़ुर्बान करते हुए फ़र्हत महसूस करते हैं हक़ीक़ी मुहब्बत सिर्फ़ जश्न की तक़ारीब मनाने और अलफ़ाज़ में वारिफ़्तगी के इज़हार से हासिल नहीं होती।

ज़रूरत इस बात की है कि इस मुबारक मौक़ा को हम यौम तजदीद अह्द वफ़ाए रिसालत मआब सल्लाहो अलैहि वसल्लम के तौर पर मनाएं और आप सल्लाहो अलैहि वसल्लम की एक एक सीरत को अपनी ज़िंदगीयों में जागज़ीं करते हुए हक़ीक़ी मुहब्बत-ओ-फ़दाईत का अमली सबूत दें। अपने और अपने बच्चों और अरकान ख़ानदान को उस्वा हसना को अपनाने की तरग़ीब दें और गैर मुस्लिमों के साथ हुस्न-ए-सुलूक करते हुए इन तक पैग़ाम हक़ पहुंचाएं। हम इस मौक़ा पर गुनाहों से तौबा-ओ-इस्तिग़फ़ार करते हुए आइन्दा उन से परहेज़ करने की हत्ता अलमक़दोर कोशिश करें और उसे नेक काम करने में ख़ुद को वक़्फ़ करने का अह्द करें जिन से आक़ाए दो जहां सल्लाहो अलैहि वसल्लम को अपनी उम्मत पर फ़ख़र हो मिल्लत इस्लामीया की सरबुलन्दी हो और सारी इंसानियत के लिए फ़लाह-ओ-बहबूदगी का पयाम बने।