काफ़िर की ख़ुशी पर रश्क ना करो

हज़रत अबूहुरैरा रज़ी० से रिवायत है कि रसूल करीम स०अ०व० ने फ़रमाया किसी फ़ाजिर (यानी काफ़िर या फ़ासिक़) को दुनियावी नेअमतों (यानी जाह-ओ-हशमत और दौलत) से मालामाल देख कर इस पर रश्क न करो, क्योंकि तुम नहीं जानते कि मरने के बाद (क़ब्र में या हश्र में) उस को क्या क्या पेश आने वाला है (यानी वो यहां तो बेशक दुनियावी नेअमतों से मालामाल है, लेकिन इसके बरअक्स आख़िरत में तरह तरह के अज़ाब और सख़्तियों से दो चार होगा) और (याद रखो!) फ़ाजिर के लिए ख़ुदा के यहां एक ऐसा क़ातिल है, जिस को मौत और फ़ना नहीं है। इस क़ातिल से हुज़ूर अकरम स०अ०व०अल्लाह अलैहि वसल्लम की मुराद आग है। (शरह अल सना)

यानी अल्लाह तआला ने कुफ़्फ़ार-ओ-फुस्साक़ के लिए एक ऐसी चीज़ तैयार कर रखी है, जो उनको सख़्त अज़ाब देगी। हलाक करेगी और तरह तरह की अज़ीयत में मुबतला करेगी और उस चीज़ की शान ये है कि ख़ुद उस को मौत और फ़ना नहीं है, बल्कि हमेशा मौजूद रहेगी।

अलनार के अलफ़ाज़ रावी के हैं, जिन्होंने इस हदीसे शरीफ़ को हज़रत अबू हुरैरा रज़ी० से रिवायत की है, जिन का नाम हज़रत अब्दुलाह बिन अबी मरयम है। गोया उन्होंने इन अलफ़ाज़ के ज़रीया ये वज़ाहत की है कि हुज़ूर स०अ०व० ने लफ़्ज़ क़ातिल के ज़रीया जिस चीज़ की तरफ़ इशारा फ़रमाया है, वो दोज़ख़ की आग है।

हदीसे शरीफ़ का हासिल ये है कि ऐसे काफ़िर-ओ-फ़ासिक़ को देख कर कि जो ज़्यादा औलाद रखता है या ज़्यादा जाह-ओ-हशमत का मालिक है या माल-ओ-दौलत की फ़रावानी रखता है या दीगर दुनियावी नेअमतों से मालामाल है, तो इस पर रश्क ना किया जाये और इस तमन्ना को अपने दिल में जगह ना दी जाये कि काश इसी तरह की नेअमतें हमें भी हासिल हो!।