2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों पहली बार भारतीय मीडिया एक इंटरव्यू दिया लेकिन इसे देश के प्रधानमंत्री की मजबूरी कहें या समझदारी जो इंटरव्यू के लिए उन्होंने खुद के ही खरीदे हुए एक न्यूज़ चैनल का सहारा लिया।
वो साहब तो हर वक़्त प्राइम टाइम पर लोगों को काटते दौड़ते हैं मानो कोई जानवर हो मोदी के सामने एक भीगी बिल्ली की तरह बैठे सवाल जवाब कर रहे थे। ठीक वैसे ही जैसे एक पालतू अपने मालिक के सामने पेश आता है।
सवाल तो किए गए और उनके जवाब भी दिए गए लेकिन सवाल- जवाबों के इस सिलसिले में जिन सवालों के जवाब देश जानना चाहता था। जिसे मोदी के पालतू “नेशन वांट्स तो कनो” कहते हैं वो न तो पूछे गए और न ही मोदी के जवाबों में से उन सवालों को कुरेदा गया। अब ऐसे में तो हर कोई यही कहेगा कि मीडिया का यह तबका ‘प्रेस्स्टिटूट्स‘ का है।
एक तरफ जहाँ अंधभक्तों ने मोदी की तारीफ़ की, वहीँ लॉजिकल सोच रखने वालों ने (जिन्हे भक्त आज की तारीख में देशद्रोही, पाकिस्तानी, बदचलन औरत वगैरह के नामों से पुकारते हैं) ‘मुश्किल सवाल’ नहीं पूछने के लिए अर्नब गोस्वामी की आलोचना भी की है।
लोगों का कहना है कि जैसे सवाल एक ‘निष्पक्ष’ पत्रकार को पूछने चाहिए थे वैसे सवाल इंटरव्यू के दौरान नहीं पूछे गए। अब सोचने वाली बात है कि जिस शक्श की दाल-रोटी ही एक पार्टी के दिए गए टुकड़ों पर चलती हो वो क्या निष्पक्ष सवाल पूछेगा? और इन सब बातों के ऊपर उठकर अगर सोचें तो आपको समझ आएगी कि असल में इस इंटरव्यू का मक़सद ये था कि मोदी सरकारी मशीनरी से बाहर जाकर एक प्राइवेट न्यूज़ चैनल के माध्यम से लोगों तक ये संदेश और इंप्रेशन देना चाहते थे कि उन्होंने पत्रकारों के सवालों का सामना किया है और सरकार की जो कामयाबियां हैं वो बताई हैं। दुसरे शब्दों में कहें तो मोदी एक ज़िम्मेवार नेता का सर्टिफिकेट हासिल करने के लिए टाइम्स नाउ के दफ्तर इंटरव्यू देने पहुंचे थे।
इंटरव्यू में पूछे गए सवाल और उनके जवाब पहले से तय थे इस लिए हम उन सवालों-जवाबों में से ही सवाल निकाल कर अपने पाठकों के सामने रखना चाहते हैं जोकि एक पेड मीडिया मोदी से कभी नहीं पूछेगा।
1. जब रिज़र्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन के बारे में मोदी सवाल पूछा गया तो..
सवाल के जवाब में मोदी ने कहा कि रघुराम राजन किसी से भी कम राष्ट्रभक्त नहीं हैं और उन्होंने बहुत अच्छा काम किया है।
बेशक गवर्नर रघुराम राजन किसी राष्ट्रभगत से काम नहीं हैं और न ही उनके पास जाली डिग्री है। वो जो काम करते हैं ईमानदारी से करते हैं और सरकार की गलत नीतिओं पर खुल कर बयान देते हैं। उनके कार्यकाल में लिए गए फैसलों से देश की अर्थव्यवस्था को काफी फायदा हुआ है। अब सवाल यह उठता है कि इतने काबिल शख्श को मोदी सरकार ने दूसरा कार्यकाल क्यों नहीं दिया गया? क्या इसलिए क्यूंकि सरकार की घटिया नीतिओं के खिलाफ बोल रहे थे राजन ?? सवाल जरूरी था लेकिन ये सवाल नहीं पूछा गया।
2. जब सांप्रदायिक बयानबाज़ी को लेकर पुछा गया सवाल
सांप्रदायिक बयानबाज़ी पर पूछे गए सवाल को लेकर मोदी ने कहा कि जो सांप्रदायिक बयानबाज़ी करते हैं उन पर कोई ध्यान नहीं देना चाहिए। लेकिन कोई इस साहब से पूछे कि ऐसी घटिया, छिछोरी बयानबाज़ी करने वाले लोग आपके ही तो हैं। उन पर ध्यान कैसे नहीं जाएगा, जब वो आपकी ही कैबिनेट में से हैं। जब एक प्रधानमंत्री अपने अधीन काम कर रहे मंत्रियों को ही काबू नहीं कर सकता तो वो देश में बढ़ रही महंगाई, साम्प्रदायिकता, गरीबी जैसी चीज़ों को काबू कर विकास क्या ख़ाक ला पाएगा? ऐसा प्रधानमंत्री जो देश के लोगों से वोट लेकर काम आरएसएस के तरीके से कर रहा हो फिर भी लोगों से कह रहा हो कि जो सांप्रदायिक बयानबाज़ी करते हैं उन पर कोई ध्यान नहीं देना चाहिए तो किस बात पर ध्यान देना चाहिए? इस बारे में कोई सवाल नहीं…
3. पाकिस्तान को लेकर पूछे गए सवालों पर भी नरम पड़े मोदी के तेवर
पाकिस्तान को लेकर अपने रवैये पर मोदी ने जो यू-टर्न लिया है इसके बारे में न तो पत्रकार ने कोई सवाल किया है और न ही मोदी ने रटे-रटाए जवाबों के दायरे से बाहर जाने की कोशिश की। गौर करने वाली बात यह है कि मोदी जब विपक्ष में थे तब और अब जब वो सत्ता में हैं, उनके रवैये में पाकिस्तान को लेकर यह जो बदलाव आया है इसके बारे में कोई सवाल…
इसके इलावा सुब्रमण्यम स्वामी जिसे मोदी ने खुद राज्यसभा सांसद बनाया है को लेकर मोदी ने इंटरव्यू में कहा कि उन्हें बयानबाज़ी नहीं करनी चाहिए वगैरह लेकिन स्वामी जैसे नेताओं से ही तो बीजेपी भरी पड़ी है। ऐसे में मोदी के बहुरूपी चेहरे और नियत दोनों की झलक देखने को मिलती है।
4. एनएसजी मेम्बरशिप पर हो-हल्ला करने वाले मोदी पर इंटरव्यू में क्यों नहीं पुछा गया सवाल?
पत्रकार ने इतना पूछना भी ज़रूरी नहीं समझा कि मोदी को एनएसजी मेम्बरशिप के लिए चीन के सामने गिड़गिड़ाना क्यों पड़ा? और इतने विदेशी दौरों के बावजूद भी बहुत से देशों ने भारत का साथ क्यों नहीं दिया। चीन को घुटनों पर लेकर आने की बात करने वाले मोदी खुद चीन के आगे घुटनों के बल क्यों बैठ गए ? इंटरव्यू में इस पर भी कोई सवाल नहीं था।
5. प्रेस कॉन्फ्रेंस रखने की बजाय टीवी इंटरव्यू को क्यों दी गई तरजीह??
जहाँ तक इस इंटरव्यू के मक़सद की बात है तो मोदी ने अपने प्रधानमंत्री कार्यकाल में अभी तक कोई प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं की है। लेकिन अब अपने ही पालतू पत्रकार के सामने इंटरव्यू देकर उन्हें एक ज़िम्मेवार नेता का सर्टिफिकेट हासिल हो गया है जिसके अब वो ये तो कह ही सकते हैं कि वो तो मीडिया के सामने आते हैं और इंटरव्यू के दौरान पत्रकार उनसे कोई भी सवाल पूछ सकता था।
लेकिन सच तो यह है कि इस तरह के इंटरव्यू प्रोपेगेंडा मशीनरी का हिस्सा लगते हैं। इसकी बजाये अगर मोदी प्रेस कॉन्फ्रेंस करते तो शायद सवालों के बीच में ही उठकर पसीना पोंछते हुए निकल जाते।
मोदी के इस इंटरव्यू की तुलना अर्नब के राहुल गांधी के साथ की गई इंटरव्यू से भी की जा सकती है जिससे दुम हिलाने और गुर्राने का फर्क साफ़ नज़र आ जाएगा। आखिर में कह सकते हैं कि मोदी जो कहना चाह रहे थे और कह रहे थे वही पत्रकार सुनना और समझना चाहता था। पत्रकार उनसे वैसा कोई सवाल नहीं पूछना चाहता था जिसके उसके बच्चों की स्कूल फीस और उसके रोटी पानी के बंदोबस्त में कोई रुकावट आये।