कुरआने मजीद पढ़ना-पढ़ाना और तिलावत में मशगूल रहना

हजरत उस्मान (रजि०) से रिवायत है कि नबी करीम (स०अ०व०) ने इरशाद फरमाया कि तुम में सबसे बेहतर वह है जो कुरआन सीखे और सिखाए। हजरत अब्दुल्लाह बिन अब्बास (रजि0) से रिवायत है कि नबी करीम (स०अ०व०) ने इरशाद फरमाया कि मेरी उम्मत में शरीफ लोग वह है जो कुरआन के हामिलीन है और रात को बेदार रहने वाले हैं।

इन दोनों हदीसों में कुरआने मजीद के पढ़ने-पढ़ाने और इसकी तालीम व तरवीज में लगने की फजीलत बयान की गई है। दुनिया में करोड़ों आदमी बसते हैं छोटा-बड़ा और अच्छा बुरा, शरीफ व गैर शरीफ होने के बहुत से मेयार हैं। इस बारे में लोगों की मुख्तलिफ राय हैं। कोई शख्स दौलतमंद को बड़ा समझता है, कोई सदर और वजीर-ए-आजम को शरीफ जानता है, कोई अच्छे बंगले में रहने वाले को अच्छा मानता है, कोई बड़ी फर्म और मोटर कार वगैरह का मालिक होने को बड़ाई का मेयार यकीन करता है।

अल्लाह तआला के सच्चे रसूल (स०अ०व०) ने इन मजकूरा ख्यालात को गलत करार दिया और शराफत का मेयार कुरआने मजीद में मशगूल होना बताया और जो इसकी तालीम में लगे उसके बारे में फरमाया कि वह सबसे बेहतर आदमी है। हजरत अबू सईद (रजि0) से रिवायत है कि नबी करीम (स०अ०व०) ने इरशाद फरमाया कि अल्लाह पाक फरमाते हैं कि जिस शख्स को कुरआन मेरे जिक्र से और मुझ से सवाल करने से मशगूल कर दे कि उसको कुरआन पढ़ने की वजह से दूसरे किसी जिक्र और दुआ की फुरसत न मिले मैं उनको सवाल करने वालों से अफजल नेमते दूंगा और कलामुल्लाह की फजीलत दूसरे सारे कलामों पर ऐसी है जैसे अल्लाह की फजीलत मखलूक पर है।

हजरत अब्दुल्लाह बिन मसूद (रजि0) से रिवायत है कि नबी करीम (स०अ०व०) ने इरशाद फरमाया कि जो शख्स अल्लाह की किताब से एक हरफ पढ़े तो उसके लिए उस हरफ के बदले एक नेकी मिलेगी और हर नेकी दस नेकियों के बराबर लिखी जाती हैं। फिर फरमाया कि मैं नहीं कहता कि अलिफ लाम मीम एक हरफ हैं बल्कि मैं कहता हूं कि अलिफ एक हरफ है और लाम एक हरफ है और मीम एक हरफ है।

इसलिए अगर किसी ने लफ्ज अलहम्दो कहा तो उसके कहने पर पचास नेकियां मिल जाएंगी। क्योंकि इसमें पांच हरफ हैं। कुरआने मजीद अल्लाह पाक की किताब है। इसमें एहकाम है, मआरिफ व हकायक है, अखलाक व आदाब हैं। उसने दुनिया व आखिरत की कामयाबी के आमाल बताए हैं।

यह इंकलाबे आलम के असबाब और कौमों के जेर जबर होने के रमूज की तरफ रहबरी करता है। उसकी बरकतें बेइंतिहा हैं। अल्लाह पाक की रहमतों का सरचश्मा है, नेमत व दौलत का खजाना है, उसकी तालीमात पर अमल करना दुनिया व आखिरत की सरबुलंदी और सरफराजी का जरिया है।

इसके अलफाज बहुत बाबरकत हैं। उसने अपने बंदो और बंदियों के लिए भेजा है, इसके अल्फाज बहुत बाबरकत हैं, इसकी तिलावत करने वाला आखिरत के बेइंतिहा समरात का मुस्तहक तो होता ही है दुनियावी जिंदगी में भी रहमत व बरकत और इज्जत व नुसरत से हमकिनार होता है, यह शख्स दिली सुकून और खुशहाली की जिंदगी गुजारता है। कलामुल्लाह की अजीब शान है बरसों पढ़ते रहो कभी पुराना मालूम नहीं होता। ‍‍‍(हजरत मुफ्ती मोहम्मद आशिक इलाही)
बशुक्रिया: जदीद मरकज़