वाराणसी, 03 जनवरी: (तबस्सुम) घनी मुस्लिम आबादी के बीच छित्तनपुरा वाकेय् मदरसा बहरुल उलूम में बच्चों को कुरआन के साथ-साथ गीता, रामायण जैसे मुकद्दस और मज़हबी किताबो और वेदों की भी तालीम दी जा रही है। खास बात यह कि इस कौमी एकता की तहजीब को आगे बढ़ा रही हैं लड़कियां।
बुनकर इलाके के बीच बसे इस मदरसे में लड़कियों को दीनी तालीम के साथ साथ दुनियावी तालीम भी दी जा रही है। लेकिन, सर्वधर्म समभाव के ज़जबातो के लिए मदरसा इंतेज़ामिया ने एक और पहल शुरू की है। मदरसे की लाइब्रेरी में गीता, महाभारत, रामायण, वेद के साथ बाइबिल को भी शामिल किया गया है। शुरुआत इस कोशिश के साथ हुई कि कौमी एकता की नींव तालीम के जरिये ज्यादा मजबूत हो सकती है।
खुद की पहल पर लड़कियों ने इन मज़हबी किताबो को पढ़ना शुरू किया। इस वक़्त दस से ज़्यादा लड़कियां अलग-अलग मज़हबी किताबे पढ़ रही हैं। इसमें उनकी मदद करती हैं मदरसे की गैर मुस्लिम टीचर। चूंकि विषय में संस्कृत भी शामिल है इसलिए लड़कियों को इन मज़हबी किताबों को पढ़ने में खास दिक्कत नहीं होती। शाम को मुहल्ले वाले भी इन मज़हबी किताबों को पढ़ने के लिए आते हैं।
12 वीं की तालिबा नेहा अंसारी का कहना है अब तक जितना पढ़ा उससे यही समझ में आया कि सभी मज़हबी किताबो का खुलासा (सार) एक ही है।
खालिदा कौसर को मानस की चौपाइयां उन्हे अपनी ओर रागिब करती है उसका कहना है कि जैसे कुरआन के कलमें हैं, वैसे ही ये चौपाइयां भी हैं। क्लास दस की हिना परवीन और नूरजहां का कहना है इन मज़हबी किताबों को पढ़ने की ललक खुद ही पैदा हुई है। यह जानना है कि हमारे मजहब और दूसरे मजहब में फर्क क्या है। क्यों लोग दूसरे से खुद को अलग समझते हैं।
लोगों का मानना है कि यह पहल कहीं न कहीं मजहब के नाम पर नफरत की दीवारों को भी जर्रा-जर्रा ही सही, ढहाने की तरफ एक कदम है। मदरसे में कुरआन के कलमों, आयतों के साथ ही गीता के श्लोक और मानस की चौपाई पढ़ रहीं ये तालेबात इशारा कर ही रही हैं कि मजहब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना…।
‘हमारे कलमा और हिंदुओं के ब्रह्मसूत्र का सार एक ही है। जिस तरह से मजहब के नाम पर लड़ाई लड़ी जा रही है, उसे तालीम के जरिये ही खत्म किया जा सकता है। वक्त की मांग यही है कि बच्चों को ऐसी तालीम जिससे मजहब की दूरियां मिट जाएं।
– हाजी मुख्तार अंसारी, इंतेज़ामिया, मदरसा बहरुल उलूम
‘मदरसे और मुस्लिम लड़कियों की यह कोशिश काबिले तारीफ है। यह बयार बह चली है तो मुआशरे पर इसका बहुत अच्छा असर होगा। ऐसे ही कोशिशों से मजहब की कट्टरता खत्म होगी। काशी विद्यापीठ से संस्कृत में वेदों पर पीएचडी और डीलिट कर मैंने यह जाना है कि हर मज़हबी किताबों का सार एक है, इंसानियत।
इस पहल से यह बात आज कुछ लड़कियों ने जाना है, कल उनका खानदान जानेगा। ऐसे ही दायरा बढ़ेगा और यही फिर्कापरस्ती को खत्म करने में मददगार होगा।
– डॉ. नाहिद आब्दी, संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय कार्य परिषद की पूर्व सदस्य
बशुक्रिया: अमर उजाला