अरुणाचल प्रदेश पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से एक बार फिर न्यायपालिका और मोदी सरकार के बीच टकराव सामने आया है। यह पहला मौका नहीं है जब दोनों के बीच मतभेद खुलकर सामने आए हैं। पिछले साल अक्टूबर 2015 में पहली बार दोनों के बीच तनाव उभरा था। सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग(एनजेएसी) एक्ट को खारिज कर दिया था। साथ ही हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति में राजनेताओं व सिविल सोसायटी के फैसले को अंतिम मानने के 99वें संवैधानिक संशोधन को भी नकार दिया था।
हालांकि नए कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि न्यायपालिका के साथ मित्रतापूर्वक रिश्ते रहेंगे। लेकिन पर्दे के पीछे की कहानी कुछ और ही है। इंडियन एक्सप्रेस के पास मौजूद दस्तावेजों से पता चलता है कि दोनों के बीच ताकत को लेकर टकराव है। इसके तहत वरिष्ठता का महत्व, जजों को प्रमोट न करने का कारण बताने के मुद्दे शामिल हैं। सरकार का प्रस्ताव है कि जब हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस या जज को सुप्रीम कोर्ट के लिए प्रमोट किया जाए तो वरिष्ठता, मेरिट और सत्यनिष्ठा का पालन किया जाए। लेकिन न्यायपालिका का मानना है कि हाईकोर्ट जज की वरिष्ठता मेरिट और सत्यनिष्ठा के आधार पर तय किया जाए।