क्या 2017 के चुनावों को देख कर दिया गया है मोदी का “गौ-रक्षकों” के ख़िलाफ़ बयान?

आख़िरकार हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बयान दे ही दिया है. जी, मैं उस बयान की बात कर रहा हूँ जो उन्होंने आज टाउनहॉल के दौरान दिया. उन्होंने गौ-रक्षकों के बारे में जो बात कही उसको समझने की ज़रुरत है. ये लोग जो गौ-रक्षक बने बैठे हैं असल में गुन्डे हैं और यही करते हैं. ये अतिरिक्त गुन्डा गर्दी जो ये करते हैं वो इसलिए करते हैं कि गाय की रक्षा के नाम पर इनके बाक़ी बुरे काम छुप जाएँ. मोदी की बात का सम्मान होना चाहिए और खुले आम घूम रहे इन “गौ-रक्षकों” के आतंक का खात्मा होना चाहिए.

असल में हमारे समाज में हो रही बातों को लेकर मैं पिछले कई दिनों से परेशान था और इसमें एक परेशानी ये भी थी कि मोदी जी चुप हैं.. आख़िर इतने गंभीर मुद्दों पर नरेंद्र मोदी चुप क्यूँ हैं. जो आदमी हर वक़्त ट्विटर से जुड़ा हुआ है और हर छोटी से छोटी बात को साझा करने की कोशिश करता है वो इन बातों पर कैसे कुछ नहीं कहता. अच्छी बात है कि आज कुछ कहा गया लेकिन क्या ये दिल से कहा गया है या इसके पीछे कुछ ऐसे कारण हैं जिसने सत्तापक्ष को डरा दिया है. अगर हम थोडा पीछे जाएँ तो बहुत सी ऐसी घटनाएं हुई हैं जिनके बारे में प्रधानमंत्री ने छुपी साधे रखी.दादरी में अखलाक़ की “गौ-आतंकियों” ने हत्या कर दी, हर बड़े दल के बड़े छोटे हर नेता ने इस पर बयान दिया लेकिन मोदी चुप रहे. रोहित वेमुला की आत्महत्या हुई, संसद में तीख़ी बहस हुई लेकिन मोदी चुप रहे. JNU के मुद्दे ने पूरे देश को हिला के रख दिया लेकिन प्रधानमंत्री ने इस पर बोलना ज़रूरी नहीं समझा. प्रोफेसर कलबुर्गी की हत्या कर दी गयी, मोदी चुप रहे. शाह रुख़ और आमिर को चुप करा दिया गया लेकिन मोदी चुप रहे. चुप रहने से मेरी मुराद चुप रहने से नहीं बल्कि इन मुद्दों पर चुप रहने से है क्यूंकि मोदी देश-विदेश के हर नेता को जन्म-दिन की बधाई देना नहीं भूलते हैं, कभी कभी तो जन्म-दिन से पहले ही दे बैठते हैं. बहरहाल, बात ये है कि जब इतनी ख़ामोशी आपने इख्तियार कर रखी थी तो आज क्या हुआ? ऐसा क्या हो गया आज कि आपको बोलना पड़ रहा है. क्या पानी सर से ऊपर चला गया लेकिन वो तो पहले भी सर तक आ ही चुका था और फिर इन्तिज़ार किया ही क्यूँ गया!
आज के बयान के जो और कारण नज़र आते हैं वो राजनितिक लगते हैं. 2017 में उत्तर प्रदेश, पंजाब, गुजरात जैसे राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं और अगर अन्दर की ख़बरों की माने तो BJP की फ़िज़ा ख़राब है और उसका कारण यही है कि भाजपा समर्थकों ने पूरे देश में गुन्डा-गर्दी का ऐसा अभियान चला रखा है कि आम इंसान का बात करना दूभर हो गया है खैर वो तो आमिर खान का भी हो गया है लेकिन इस सब में सबसे बड़ी जो बात है वो है गुजरात में दलितों का आन्दोलन. दलितों के आन्दोलन से BJP इस क़दर डर गयी है कि उसे भय है कि जो राज्य वो अपनी झोली में समझा करती थी वो अब फिसल चुका है. एक अखबार की ख़बर के मुताबिक़ तो RSS का खुद का सर्वे इन्हें 60 के आसपास सीटें दे रहा है जो पार्टी के लिए ख़ास चिंता का विषय है और यही वो कारण था कि आनंदी बेन पटेल को मुख्य मंत्री पद छोड़ना पडा. गुजरात के उना ज़िले में दलितों के साथ की गयी ज़लील हरकत के बाद से पूरे राज्य और देश के दलितों ने गौ-रक्षकों के ख़िलाफ़ अभियान चला दिया है. उधर उत्तर प्रदेश के चुनावों की बात करें तो बीजेपी के पूर्व उपाध्यक्ष दयाशंकर ने मायावती पर अभद्र टिपण्णी कर दी जिसने आग को और भड़का दिया. कुल मिला कर प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी दोनों ये समझ गए हैं कि दलित जाग रहे हैं और अब दलितों को ठेस पहुंचना बीजेपी को चुनाव में ठेस पहुँचने के बराबर होगा.
बहरहाल मोदी ने भले ही राजनितिक फ़ायदे-नुक़सान को समझ के बयान दिया हो लेकिन इस बयान का सम्मान होना चाहिए और “गौ-रक्षकों” के ऊपर ज़रूरी कार्यवाही राज्य सरकारों को करना चाहिए. हम उम्मीद करेंगे कि अगली बार जब मोदी जनता से मुखातिब होंगे तो उन मुद्दों की भी चर्चा करेंगे जो छूट गए हैं.

(अरग़वान रब्बही)

(लेखक के विचार निजी हैं)

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