‘ख्वाब’ ही रह गए नीतीश के दिखाए ये 3 ख्वाब

इक्तिदार में आने के बाद वजीरे आला नीतीश कुमार की हुकूमत ने तीन बड़ी ऐलान की थी-ज़मीन सुधार, एक बराबर स्कूल सिस्टम और ज़िराअत रोड मैप। तकरीबन आठ साल के बाद भी ये तीनो लागू नहीं किए जा सके। आखिर क्यों? नीतीश कुमार साल 2005 में बिहार के वजीरे आला बने थे।

पहला बड़ा वादा

डी बंदोपाध्याय की कियादत में ज़मीन को बेहतरी कमीशन ने 2008 में अपनी रिपोर्ट हुकूमत को सौंप दी थी। कमीशन की तशकील साल 2006 में किया गया था। इसके तहत 12 लाख एकड़ जमीन को हुकूमत या भूदान कमेटी के कंट्रोल से आज़ाद कराकर बेज़मीनों मे बांटने की सिफ़ारिश और पर्चा समेत अलग बटाईदारी कानून वगैरह बनाने की सिफ़ारिश की गई थी। साल 2015- ये आज भी लागू नहीं हुआ।

दूसरा बड़ा वादा

अब दूसरा बड़ा वादा- प्रोफ़ेसर मुचकुंद दूबे ने एक बराबर स्कूल सिस्टम कमीशन की सिफ़ारिश 2007 में रियासती हुकूमत को पेश तो की, लेकिन यह ज़मीन पर दूर-दूर तक नहीं उतरा। इसकी वजह से कानूनी तजवीज होने के बावजूद छह से 14 साल की उम्र के बच्चों को फ्री और लाज़्मी तालीम मुहैया नहीं हो पाई। हुकूमत ने वादा किया था कि रियासत में तमाम बच्चों के उनके घर के पास ही तालीम मिलेगी और बराबर सतह की पढ़ाई के लिए निज़ाम की जाएगी। साल 2015- ये आज भी लागू नहीं हुआ।

तीसरा बड़ा वादा

रियासत में खेती को नया शक्ल देने के लिए वीएस व्यास कमेटी की रिपोर्ट की बुनियाद पर ज़िराअत रोड मैप भी तैयार हुआ। ज़िराअत कैबिनेट तशकील करने के बावजूद सियासी खींचतान में सारी सिफ़ारिशें फ़ाइलों में ही दबी रह गईं। जिन सिफ़ारिशों से बिहार की तस्वीर कुछ बदल सकती थी, उसे ही ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। झारखंड से अलग होने के बाद बिहार के पास कुदरती वसायल के नाम पर बचे जल, ज़मीन और आम लोगों के लिए कुछ नहीं हो सका।

क्यों नहीं लागू हुआ फैसला

एएन सिन्हा सामाजिक मुताला अदारा के डाइरेक्टर प्रो. डीएम दिवाकर के मानते है कि रियसती हुकूमत की एरादी थी, इसलिए कमिटी बनी। मगर जो अलग-अलग कमिटी की मुकम्मल बातें थीं उन्हें लागू नहीं किया जा सका। वो कहते हैं, “जब आप जागीरदारी ताकतों के साथ इत्तिहाद में हुकूमत चला रहे हों तो मजदूर के हक़ में इंकिलबी फैसले नहीं ले सकते। जब पूरा दुनिया नए इक़्तेसादी सवाल के साथ चल रहा है। इस सूरत में गरीबों के हक़ में खड़ा होना मुमकिन नहीं है.” वहीं, जनता दल (यूनाइटेड) के तर्जुमान डॉ. अजय आलोक कहते हैं, “ज़मीन सुधार से जुड़ा रिजल्ट जिस तेजी से निकलना चाहिए था वैसा नहीं मिला है। नतीजा दिखने में वक़्त लगता है। ”

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