गुजराल साहब उर्दू तहज़ीब की नुमाइंदा शख़्सियत

साबिक़ वज़ीर-ए-आज़म इंदर कुमार गुजराल का इंतिक़ाल सारे मुलक बिलख़सूस अहले उर्दू के लिए एक नाक़ाबिल तलाफ़ी नुक़्सान है।

उन्हों ने उर्दू ज़बान की तरक़्क़ी के हवाले से क़ौमी उफ़ुक़ पर अनमिट नुक़ूश छोड़े हैं। आज़ाद हिंदुस्तान में उर्दू की पहली क़ौमी जामिआ मौलाना आज़ाद नैशनल उर्दू यूनीवर्सिटी के अव्वलीन चांसलर की हैसियत से वो नुमायां ख़िदमात अंजाम दे चुके हैं।

प्रोफ़ैसर मुहम्मद मियां वाइस चांसलर उर्दू यूनीवर्सिटी ने अपने एक ताज़ियती पयाम में गुजराल को उर्दू का सच्चा बही ख़ाह और प्रुस्तार क़रार दिया।

वो उर्दू तहज़ीब की नुमाइंदा शख़्सियत थे। 1970 की दहाई में फ़रोग़ उर्दू के लिए क़ायम करदा गुजराल कमेटी के सरबराह की हैसियत से गुजराल ने जो सिफ़ारिशात पेश की थीं वो उर्दू की तरक़्क़ी और तालीमी सक़ाफ़्ती और इंतिज़ामी उमूर में अहल उर्दू को मुनासिब सहूलतों की फ़राहमी में दूर रस असरात की हामिल साबित हुईं।

इन ही सिफ़ारिशात के माबाद नताइज के तौर पर मौलाना आज़ाद नैशनल उर्दू यूनीवर्सिटी के क़ियाम का मंसूबा बना गया गया था। प्रोफ़ैसर मुहम्मद मियां ने याद दिल‌या कि गुजराल 24 मई 1999 को उर्दू यूनीवर्सिटी के अव्वलीन चांसलर मुक़र्रर हुए।

तक़र्रुरी के चंद माह बाद 24 अक्तूबर 1999 को उन्हों ने यूनीवर्सिटी का दौरा किया था। 9 जनवरी 2001 को यूनीवर्सिटी की तक़रीब यौम तासीस में जो जुन में मुनाक़िद हुई थी वो कुलदीप नय्यर और जस्टिस ए एम अहमदी के साथ शरीक हुए। इसी साल 25 नवंबर को दिल्ली में यूनीवर्सिटी की तरफ से यौम आज़ाद तक़रीब का अज़ीमुश्शान पैमाने पर इनइक़ाद अमल में आया था। उस वक़्त के सदर जमहूरीया हिंद के आर नारायण मेहमान-ए-ख़ुसूसी थे।

गुजराल साहब ने इस यादगार तक़रीब की सदारत की थी। गुजराल साहब ने 28 दिसंबर 2002 को यूनीवर्सिटी कैंपस वाके गच्ची बाओली हैदराबाद में तामीर करदा पहली पर शिकवा इमारत एडमिनिस्ट्रेटव बिल्डिंग का इफ़्तिताह अंजाम दिया था।

वो हमेशा उर्दू यूनीवर्सिटी की तरक़्क़ी केलिए फ़िक्रमंद रहते। नौख़ेज़ जामिया के क़ियाम के इबतिदाई अय्याम में उन की मुशफ़िक़ाना सरपरस्ती के समर और नताइज को यूनीवर्सिटी अर्बाब और तलबा की आने वाली नसलें अर्से तक याद रखेंगी।

यूनीवर्सिटी के अव्वलीन वाइस चांसलर प्रोफ़ैसर मुहम्मद शमीम जीराजपूरी से गुजराल साहब का ताल्लुक़-ए-ख़ातिर रहा है। प्रोफ़ैसर जेराजपूरी ने भी गुजराल साहब के सानिहा इर्तिहाल पर दिल्ली ताज़ियत का इज़हार करते हुए कहा कि उर्दू यूनीवर्सिटी और उर्दू ज़बान एक हक़ीक़ी सरपरस्त से महरूम होगए हैं।