लखनऊ 07 अप्रैल: इलाहाबाद हाइकोर्ट ने योगी आदित्यनाथ सरकार को निर्देश दिया है कि वे ऐसी योजना करे जिसके तहत गै़रक़ानूनी मसलखों के खिलाफ कार्रवाई को यक़ीनी बनाया जा सके। लेकिन जनता के ग़िज़ाई अधिकार और रोजगार पर नाजायज़ पाबंदी नहीं की जा सकती।
लखनऊ बेंच के जस्टिस अमरेश्वर प्रताप शाही और जस्टिस संजय हरकोली ने कहा कि ग़िज़ा और ग़िज़ा से संबंधी आदतें निर्विवाद हैं और जीवन के अधिकार से जुड़े हैं। जिसकी तमानीयत दस्तूर हिंद की दफ़ा 21 के तहत दी गई है। अदालत ने मांस के एक बिक्री करने वाले की दरख़ास्त पर सरकार को अनुस्मारक कि के वह अवैध मसलखों के खिलाफ कार्रवाई तो कर सकती है लेकिन कानूनी तौर पर मांस सरबराह करने वालों पर रोक नहीं लगा सकती क्योंकि यह कई लोगों को रोजगार फ़राहम करते हैं।
दस्तूर में दर्ज जनता के बुनियादी अधिकारों पर ध्यान करते हुए अमल और पेशे की आज़ादी से मुताल्लिक़ दफ़ा 19 और ज़िंदगी और आज़ादी के तहफ़्फ़ुज़ से मुताल्लिक़ दफ़ा 21 का हवाला देते हुए अदालत ने कहा कि कोई भी सेहत बख़श ग़िज़ा खाना बुनियादी हक़ है और किसी को भी ग़िज़ा के इंतिख़ाब पर पाबंदी करने का हक़ नहीं है।