नुमाइंदा ख़ुसूसी- बलदिया हैदराबाद ने ग्रेटर का लक़ब तो हासिल करलिया ताहम उस की कारकर्दगी में इज़ाफ़ा की बजाय कमी हि देखने में आरही है। पहले की बनिसबत अब जाबजा कचरे के ढेर, उबलते हुए डरेंज और सड़कों पर गंदगी कुछ ज़्यादा है देखने को मिलने लगी है।
अगर बलदी ओहदेदार अमला-ओ-दीगर स्टाफ़ लफ़्ज़ ग्रेटर का मतलब जान लेंगे तो फिर वो या तो इस लफ़्ज़ ग्रेटर को बलदिया के नाम से हज़फ़ करदेंगे या फिर उस लफ़्ज़ के शायान-ए-शान बनने की कोशिश ज़रूर करेंगी। कोई उन्हें इस बात का मतलब समझाई। कम से कम इस ग्रेटर की लाज ही रख ली जाती तो क्या बात थे। इस अज़ीम-ओ-तारीख़ी शहर को बसाने वाले क़ुली क़ुतुब शाह-ओ-दीगर सलातीन की रूहें यक़ीनन तड़प उठती होंगी जब वो अपने रिहायशी हलक़ा की हालत-ए-ज़ार को देखते होंगे। इस शहर की एक एक गली को देखते होंगे।
क़ुली क़ुतुब शाह को अपने लिखे हुए शेअर मेरा शहर लोगों से मामूर कर पर पछतावा होरहा होगा। इस में शक नहीं कि शहर को आबादी के लिहाज़ से इस की तामीर ज़रूर मिल गई ताहम उस की देख भाल करने वालों को देख कर इस के बानीयों को पछतावा होगा कि हम उसे किस तरह देखना चाहते थे और ये किस तरह का होगया। ज़ीरनज़र तस्वीर मोती दरवाज़ा क़िला गोलकुंडा की है जिसे देखने के बाद बलदिया की कारकर्दगी का बख़ूबी अंदाज़ा लगाया जा सकता है।
आलमी शौहरत याफ़ता तारीख़ी क़िला को देखने के लिए आने वाले मुल्की और ग़ैर मुल्की सय्याहों का क्या तास्सुर होगा। कचरे का अंबार सड़क पर बिखरा पड़ा है। सोने पे सुहागा कि इस पर वाज़िह अलफ़ाज़ में GHMC यहां से गुज़रने वालों को मुतवज्जा कररहा है कि ये ग्रेटर हैदराबाद म्यूनसिंपल कारपोरेशन है।