घर पर बार बार आकर फ़ाइनेन्सर (सूदख़ोर) का गाली गलौज करना मुझ से बर्दाश्त नहीं हुआ और मेरे हाथों इस का क़त्ल हो गया। अगर्चे वक़्ती तौर पर मैं ने ग़ैरत के मारे ब्रहमी की हालत में अपना काम कर गुज़रा लेकिन बाद में मुझे एहसास हुआ कि में ने जो कुछ किया वो ग़लत था। अगर थोड़ा सा सब्र कर लेता तो ज़िंदगी के 8 साल जेल की कोठरी में गुज़ारने नहीं पड़ते थे। अब पता नहीं कितने और साल सज़ा भुगतनी है।
इन ख़्यालात का इज़हार करीमनगर के रहने वाले 30 साला शेख चांद ने राक़िमुल हुरूफ़ से बात-चीत के दौरान किया। वो एक फ़ाइनेन्सर के क़त्ल के इल्ज़ाम में चंचलगुड़ा जेल में सज़ाए उम्र कैद काट रहे हैं।
शेख चांद को चंचलगुड़ा सेंट्रल जेल के तहत चलाए जा रहे सुधार पैट्रोल पंप पर तैनात किया गया है वो इन 31 कैदियों में शामिल हैं जिन की ख़िदमात इस पैट्रोल पंप के लिए ली गई हैं। शेख चांद ने जो काफ़ी अक़लमंद लग रहे थे बताया कि उन्हों ने जेल में ही अपना तालीमी साल जारी रखते हुए ग्रैजूएशन की तकमील की है। उन्हों ने ये भी बताया कि इस पैट्रोल पंप पर काम करने वाले 31 कैदी सज़ाए उम्र कैद काट रहे हैं लेकिन उन के चाल और चलन को देखते हुए उन लोगों से पैट्रोल पंप में ख़िदमात ली जा रही हैं। जिस के लिए उन्हें यौमिया 70 रुपये अदा किए जाते हैं।
इस रक़म में से 35 रुपये कैदियों के बैंक अकाउंट्स में जमा करवाए जाते हैं और माबाक़ी निस्फ़ रक़म कैदियों को जेल में ख़र्च के लिए दी जाती है। ये कैदी तीन शिफ्टों में काम करते हैं और खुली फ़िज़ा में सांस लेकर वो बहुत सुकून महसूस करते हैं। शेख चांद के मुताबिक़ उन्हें अपने गुनाह पर बहुत अफ़सोस और पछतावा है वो चाहते हैं कि रिहाई के बाद बाइज़्ज़त ज़िंदगी गुज़ारें कोई अच्छा कारोबार करें।
उन की यही ख़ाहिश है कि रिहाई पाने वाले कैदियों की बाज़ आबादकारी के इक़दामात किए जाएं और उन्हें कर्ज़ों की फ़राहमी अमल में आए ताकि वो छोटा मोटा कारोबार शुरू कर सकें। उन्हों ने ये भी बताया कि कैदी उन्हें हासिल होने वाली रक़म अपने घर वालों के लिए भी भेज सकते हैं इसी तरह का एक पैट्रोल पंप चिर्लापल्ली जेल में भी खोला गया है और दोनों पैट्रोल पंप्स 24 घंटे काम करते हैं।
यहां इस बात का तज़किरा ज़रूरी होगा कि सुधार फ़ीलिंग इस्टेशन के नाम से जेल की जानिब से क़ायम कर्दा पैट्रोल बैंक का इफ़्तिताह जारीया साल जून में टी कृष्णा राजू आई पी एस ने किया था। बताया जाता है कि रियासत की मुख़्तलिफ़ जेलों में 16000 से ज़ाइद कैदी हैं और उन से मुख़्तलिफ़ काम लिए जा रहे हैं और जिस से सालाना दो करोड़ की आमदनी होती है।
अगर कैदियों को दीगर कामों से वाबस्ता किया जाए तो इमकान है कि सालाना 30 करोड़ की आमदनी होगी।