हैदराबाद 30 मार्च: हैदराबाद के दामन में वैसे तो कई तारीख़ी इमारतें हैं लेकिन चारमीनार और मक्का मस्जिद की बात ही कुछ और है । चार सौ से ज़ाइद बर्सों से अपनी पूरी शान और शौकत के साथ लोगों को दावते नज़ारा दे रहे चारमीनार ने चार सदियों के दौरेन शहर में रुनुमा मुख़्तलिफ़ तब्दीलियों का ना सिर्फ़ मुशाहिदा किया है बल्कि वो एक नाक़ाबिले तरदीद सबूत और ऐनी गवाह भी है ।
जहां तक चारमीनार का सवाल है वो 1950 और 1960 के बाद से मुख़्तलिफ़ हुकूमतों , सरकारी ओहदेदारों महकमा आसार क़दीमा और सियासतदां के मुतासिबाना रवैया को बर्दाश्त कर रहा है।
खासतौर पर महकमा आसार क़दीमा ने चारमीनार के तएं जो मुतासिबाना और जानिबदाराना रवैया इख़्तियार किया है इस तारीख़ी इमारत को देखने से एसा लगता है कि वो महकमा की मुजरिमाना ग़फ़लत का शिकवा कर रहा हो । वाज़ेह रहे कि 1590-91 में तामीर इस इमारत की तामीर पर उस वक़्त के नौ लाख रुपये ( दो लाख हिन ) ख़र्च हुए थे । जबकि दक्कन के हर हुक्मरान को इस तारीख़ी और फ़न तामीर की शाहकार इमारत से ख़ास उन्सियत रही । 1349 में सरकारी आसिफ़िया की जानिब से चारमीनार पर एक ख़ुसूसी स्टाम्प जारी किया गया था ।
क़ुतुब शाही हुक्मरानों से आसिफ़जाही हुक्मरानों ने चारमीनार की देख भाल और मरम्मत पर ख़ुसूसी तवज्जा मर्कूज़ की लेकिन हैदराबाद दक्कन के इंडियन यूनीयन में इंज़िमाम के बाद शहर की दीगर तारीख़ी इमारतों की तरह चारमीनार को भी नज़रअंदाज कर दिया गया । चारमीनार पर तवज्जा क्यों नहीं दी गई और इस के पीछे क्या मक़ासिद कारफ़रमा थे ।
तारीख़ी इमारत से दो सौ मीटर के फ़ासिला तक कोई नई इमारत तामीर ना करने की वाज़ेह दफ़आत के बावजूद चारमीनार से बिलकुल करीब तामीरी काम जारी है और फिर्कापरस्त चारमीनार को दीगर गैर कानूनी इमारतों से जोड़ने की मुसलसल कोशिश कर रहे हैं जबकि चारमीनार की दूसरी मंज़िल पर मौजूद इंतिहाई ख़ूबसूरत और फ़न तामीर की शाहकार मस्जिद इंतिहाई ख़स्ता हो गई है।
आसार क़दीमा के ओहदेदार उस की मरम्मत से ग़ाफ़िल हैं । हैरत और अफ़सोस तो इस बात पर होता है कि इस मस्जिद में मुसलमानों को नमाज़ों की अदाएगी से रोका जाता है । हालाँकि क़ानून के मुताबिक़ तारीख़ी मुक़ामात पर मौजूद मसाजिद में नमाज़ें अदा की जा सकती हैं ।
कुतुबमीनार , लाल क़िला और ताज महल की मसाजिद में जुमा और ईदैन की नमाज़ें होती हैं लेकिन चारमीनार के मुआमला में ए एस आई का रवैया बिलकुल मुख़्तलिफ़ है इस सिलसिला में महकमा को वज़ाहत करनी चाहीए । मुस्लिम अक्सरीयती इस शहर के लोगों की बदक़िस्मती है कि उन्हें मस्जिद के मुशाहिदा का तक हक़ नहीं।