छतरी नाका में दरगाह हज़रत फीरोज़ शाह बाबा (र) की अराज़ी पर नाजायज़ क़बज़े

नुमाइंदा ख़ुसूसी-छतरी नाका पुलिस इस्टेशन के करीब एक क़दीम दरगाह है जिसे दरगाह हज़रत फीरोज़ शाह बाबा कहा जाता है । ये सैंकड़ों साल क़दीम दरगाह है जिस का गुंबद काफ़ी बड़ा है । इस में एक ख़ुदा तरस बुज़ुर्ग का मज़ार मौजूद है जिन को हज़रत फीरोज़ शाह बाबा (र) के नाम से अवाम याद करती है । दरगाह के अतराफ़ की वसीअ-ओ-अरीज़ ओक़ाफ़ी अराज़ी पर तो कई साल कब्ल क़बज़े होचुके हैं । इस ओक़ाफ़ी जायदाद के अतराफ़ में क़ाबेज़ीन ने ज़मीन का कुछ भी हिस्सा बाक़ी नहीं छोड़ा , सिर्फ दो फिट का एक रास्ता उन के हाथ से बच गया था । अब उसे भी हड़प लेने की साज़िश शुरू होचुकी है ।

कृष्णा नामी एक गैर मुस्लिम शख़्स ने दरगाह के मज़कूरा रास्ता पर दरवाज़ा नसब कर के उसे अपने क़बज़ा में ले लिया है । इस दरगाह तक रसाई के लिये अब हर चहार जानिब से रास्ते बंद हो चुके हैं ।वाज़ेह रहे कि हज़रत फीरोज़ शाह बाबा (र) की ये तारीख़ी दरगाह छतरी नाका पुलिस इस्टेशन से सिर्फ 100 क़दम के फ़ासले पर वाक़ै है जहां नाजायज़ क़ब्ज़ों की कार्यवाहीयां पिछले कई सालों से चली आरही हैं । मज़कूरा बाला वाक़िया की जैसे ही इत्तिला मौसूल हुई । मुआइना के लिये हम दरगाह पहुंचे ।मुशाहिदा के बाद वाक़िया की तसदीक़ हुई , बाद अज़ां छतरी नाका पुलिस इस्टेशन इन्सपैक्टर से मुलाक़ात कर के हम ने इस नाज़ुक मुआमला की जानिब उन की तवज्जा मबज़ूल कराई ।

उन्हों ने दियानतदारी-ओ-फ़र्ज़शनासी का सबूत देते हुए बर वक़्त इक़दाम किया और जाय वाक़िया पर पहुंच कर काम रुकवा दिया । मगर कृष्णा ने रात के अंधेरे से फ़ायदा उठाते हुए फिर दरवाज़ा खड़ा कर दिया । 400 साला क़दीम गुंबद जो ज़मीन से 40 फिट की बुलंदी पर वाक़ै है आम आदमी के लिये इस के रास्ते मस्दूद करने की साज़िश मुकम्मल होचुकी है । दरगाहों और मीनारों के शहर उल्मा और औलिया-अल्लाह की इस बस्ती में अगर एक मज़ार का भी तहफ़्फ़ुज़ हम नहीं कर सकते तो इस से ज़्यादा हमारी बेहिसी और ला परवाही की क्या दलील होसकती है । हमारी बदनसीबी है कि हमारी आँखों के सामने दरगाहों के वजूद को मिटाया जा रहा है और हम बेबसी के आलम में हाथ पर हाथ रखे ख़ामोश तमाशा देख रहे हैं ।

आख़िर कब हमारी आंखें खुलींगी जब हम सब कुछ खो बैठेंगे ? क़दीम और तारीख़ी दरगाह के रास्ता पर क़बज़ा करने वाले कृष्णा से जब हम ने गुफ़्तगु की तो इस ने हैरत अंगेज़ बात बताई कि मैं ने इस मंसूबा को इबतदा -से तकमील तक पहुंचाने के लिये मुक़ामी तीन मुस्लमानों ( जिन के नाम भी उस ने बताए ) को ख़तीर और मोटी रक़म दी है । तब ही मेरे लिये ये काम आसान होसका है और उन लोगों ने ये रास्ता मेरे क़बज़ा में दिया है । जब कि कृष्णा का ज़ाती मकान भी दरगाह की वक़्फ़ अराज़ी पर तामीर है । क़ारईन ! तस्वीर से अंदाज़ालगा सकते हैं कि किस तरह चारों जानिब से दरगाह की ज़मीन तंग की जा रही है और मकानात के दरमियान उसे छुपा कर इस के नाम-ओ-निशान को मिटाने की नापाक कोशिश की जा रही है ।

वक़्फ़ बोर्ड के ओहदेदार दफ़्तर में कुर्सियों पर अपनी पीठ टेक कर ओक़ाफ़ी जायदाद के तहफ़्फ़ुज़ के वास्ते मीटिंग्स ज़रूर मुनाक़िद करते हैं लेकिन ज़मीनी हक़ायक़ कुछ और हैं । हज़रत फीरोज़ शाह बाबा की दरगाह की तरह सैंकड़ों ओक़ाफ़ी जायदादों पर क़बज़े हो चुके । उन की अराज़ी पर तामीरात खड़ी करदी गई उन के वजूद को मिटा दिया गया लेकिन उन के ख़िलाफ़ ना कभी वक़्फ़ बोर्ड ने नोटिस जारी किया ।

और ना ही वक़्फ़अराज़ी वापिस लेने की कोई पहल की । ये दरगाह जो मुकम्मल दर्ज वक़्फ़ है । वक़्फ़ बोर्ड की फाइलों में इस का रेकॉर्ड मौजूद-ओ-महफ़ूज़ है । इस की लंबी चौड़ी ज़मीन पर नाजायज़ और गैरकानूनी तामीर शूदा मकानात को कभी वक़्फ़ बोर्ड ने नोटिस तक जारी नहीं की । अगर क़ाबेज़िन और लैंड गिराबरस के माफ़या को इस तरह छूट दे दी गई और ग़फ़लत-ओ-सर्द मोहरी का मुज़ाहरा किया गया तो ओक़ाफ़ी इमलाक का ख़ुदा ही मुहाफ़िज़ है ।।