नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) से सवाल किया कि यदि विश्वविद्यालय के प्रशासनिक भवन को छात्रों ने नौ फरवरी से बंद कर रखा है तो इस मामले को लेकर जेएनयू अब तक अदालत क्यों नहीं आया। न्यायमूर्ति वी के राव ने जेएनयू के वकील से यह सवाल किया।
अदालत विश्वविद्यालय के पांच विद्यार्थियों की इस याचिका पर सुनवाई कर रही थी कि उन्हें अंकपत्र एवं प्रमाणपत्र दिए जाएं। छात्र विभिन्न पाठ्यक्रमों एवं नौकरियों के लिए आवेदन करना चाहते हैं। जब अदालत ने विश्वविद्यालय से उक्त दस्तावेज प्रदान करने को कहा तब जेएनयू की ओर से पेश केंद्र सरकार की वकील मोनिका अरोड़ा ने कहा कि प्रशासनिक भवन में प्रवेश के लिए पुलिस बल की मदद की जरूरत पड़ेगी। साथ ही कहा कि कुलपति भी अपने कार्यालय में नहीं जा पा रहे हैं।
न्यायाधीश वीके राव ने कहा कि मुझे इसका दुःख है लेकिन यह क्या है? क्या यह विश्वविद्यालय की शिकायत नहीं है? यदि विश्वविद्यालय चुप्पी साधे बैठा रहा तो मैं कहूंगा कि उन्हें दस्तावेज दीजिए। अदालत ने जेएनयू की वकील से इस बात का निर्देश प्राप्त करने को कहा कि विश्वविद्यालय अब तक अदालत क्यों नहीं गया। इस मामले की अगली सुनवाई 20 फरवरी को होगी।
पांच याचिकाकर्ता छात्रों नवीनकुमार सिंह, नवीनकुमार, चंद्रवीर सिंह भाटी, शिवेंद्र कुमार पांडेय और आशीष कुमार सिंह ने अपने दस्तावेज मांगने के अलावा प्रदर्शनकारी छात्रों को वहां से हटाने वहां सामान्य कामकाज की बहाली की भी मांग की है। इन छात्रों ने दावा किया कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की मई, 2016 की अधिसूचना के विरोध में नौ फरवरी, 2017 से डेढ़ से दो सौ छात्रों ने प्रशासनिक भवन को घेर रखा है। इस अधिसूचना के मुताबिक एमफिल और पीएचडी पाठ्यक्रमों के लिए हर प्रोफेसर के लिए आठ छात्रों की सीमा तय कर दी गई है।