फ़हद सईद
दुनिया के किसी भी हिस्से में संघर्ष की वजह से पैदा हुए हालात का स्याह पहलू ये है सबसे बड़ा खामिजाया बच्चों के मासूमियत को खो के उठाना पड़ता है। यूनिसेफ की एक नई रिपोर्ट बताती है कि दुनिया में करीब पांच करोड़ बच्चे अपने देश में जारी संघर्ष, हिंसा और उत्पीड़न की वजह से विस्थापित होकर रिफ्यूजी कैंपों में रहने के लिए मजबूर हैं। जहां विश्व की कुल आबादी में बच्चों की हिस्सेदारी एक-तिहाई है वहीं ऐसे शरणार्थीयों में आधी संख्या बच्चों की है.
हाल के कुछ वर्षों में अफगानिस्तान से लेकर सीरिया तक तमाम देशों में चल रहे गृहयुद्ध ने करोड़ों लोगों दरबदर कर दिया है। इनमें वे मासूम भी शामिल हैं जिनका ऐसी जंग से कोई वास्ता लोकतंत्र न ही देशों की सीमाओं की समझ। बीते साल तुर्की के समुद्र तट पर पाई गई नन्हे अयलान कुर्दी की लाश की तस्वीर ने दुनिया को शरणार्थी समस्या पर सोचने पर विवश कर दिया था। गृहयुद्ध की विभीषिका से जूझ रहे सीरिया से तुर्की आ रही वह नाव समुद्र में उलट गई थी जिसमें चार साल के अयलान कुर्दी का परिवार भी सवार था।न
बच्चे खेल-खेल में अपना घरौंदा बनाते हैं, लेकिन दुनिया के कई देशों में जारी संघर्ष ने पांच करोड़ बच्चों से उनका असली घरौंदा ही छीन लिया है। अब शरणार्थी कैंप ही उनका घर और पता है। दरबदर बच्चों में से ज्यादातर अफ्रीका और एशिया के देशों के हैं। 2015 में यूएन के शरणार्थी कैंपों में शरण लेने वाले कुल बच्चों में से करीब 45 फीसदी बच्चे सीरिया और अफगानिस्तान से हैं। सुधरने के बजाय हालात बदतर दिशा में जा रहे हैं इसका एक संकेत इस बात से भी मिलता है कि ऐसे बच्चों की तादाद लगातार बढ़ रही है। यूनिसेफ की इसी रिपोर्ट के मुताबिक साल 2015 में करीब एक लाख बच्चे विश्व के 78 देशों में शरण लेने को मजबूर हुए थे। यह संख्या एक साल पहले की तुलना में करीब तीन गुना है।
एक शरणार्थी बच्चे को सामान्य बच्चों की तुलना में पांच बार अधिक स्कूल छोड़ने पर मजबूर होना पड़ता है। इसके अलावा शरणार्थी बच्चों में जीनोफोबिया (अनजान जगह से डर) से भी जूझना पड़ता है। और कई तरह मानसिक रोग के लक्षण इनमें देखे जाते हैं। वैसे तो बच्चों को दुनिया का भविष्य कहा जाता है। इस तरह से देखें तो हम बचपना छीन कर उनका नहीं बल्कि दुनिया से मासूमियत खत्म कर रहे हैं। लेकिन जंग में अंधी हुई दुनिया को इन मासूमों की फिक्र भला क्यों हो।
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