जनविरोधी बजट का खामियाजा बीजेपी को भुगतना पड़ेगा : दिनेश गुण्डूराव

बेंगलूरू। कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस समिति के कार्यकारी अध्यक्ष दिनेश गुण्डूराव ने कहा है कि केंद्र सरकार ने पूर्व में देश की जनता से जो वादे किये थे, उनको पूरा नहीं किया है जिसका खामियाज़ा उसको मुख्य तौर पर उत्तर प्रदेश और पंजाब में होने वाले विधानसभा चुनावों में भुगतना पड़ेगा। यहां संवाददाताओं से बात करते हुए उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने जो वादे देश की जनता से किये थे, उन्हें पूरा नहीं किया है जबकि लोगों को सरकार से बड़ी उम्मीद थी।

यह बजट पूरी तरह से लोगों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाषण के विशेषज्ञ बने हुए हैं और जब भी सामाजिक योजनाओं के वितरण की बात आती है, वह विफल रहते हैं। उन्होंने कहा कि आम आदमी पर कई तरह के कर लाद दिए गए हैं जिससे कहा जा सकता है कि वित्त मंत्री अरुण जेटली का यह बजट निराशाजनक है। इसमें गरीबों, किसानों, महिलाओं और बेरोजगार युवाओं के लिए कुछ भी नहीं है। भाजपा सरकार युवाओं के लिए नए रोजगार पैदा करने में नाकाम रही है।

दिनेश गुण्डूराव ने सरकार को आगाह किया कि बजट में सामाजिक क्षेत्र की उपेक्षा की गई है जिसका आने वाले चुनावों में खासा असर पड़ेगा। गुण्डूराव ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो वादे लोगों से किये थे, वे पूर्ण नहीं हुए हैं जिससे लोगों में निराशा है। साथ ही कहा कि उच्च कर व्यवस्था से लोग परेशान हैं। किसानों की अनदेखी करने से कृषि सेक्टर भी प्रभावित है।

कांग्रेस समिति के कार्यकारी अध्यक्ष दिनेश गुण्डूराव ने कहा कि केंद्र सरकार की सबसे बड़ी कमी रोज़गार सृजन की रही है। वर्ष 2009 -10, 11 के दौरान जब यूपीए सरकार केंद्र में थी तो इस दौरान 9 लाख नए रोज़गार का सृजन किया गया था। वर्तमान में केंद्र सरकार ने वर्ष 2015 -16 में 1.35 लाख रोज़गार सृजित करने की बात कही है जो निराशाजनक है।

अभी यही पृवर्ति जारी है और चुनाव से पूर्व जनता जरूर इस सम्बन्ध में जवाब मांगेगी। बजट में लोगों का बेहतर कर कटौती की आस थी लेकिन वित्त मंत्री ने पांच लाख सालाना आय वाले लोगों को छोटी चॉकलेट थम दी। उन्होंने कहा कि नोटबंदी से असंगठित क्षेत्र में आम लोगों को हानि हुई जबकि अमीर वर्ग को वित्तीय लेनदेन में समस्या शायद नहीं हुई।

उन्होंने कहा कि मोदी के सत्तासीन रहते ग्रामीण दिहाड़ी में अपेक्षित वृद्धि नहीं हुई है जो अहम् हिस्सा है। यह मात्र 3.8 प्रतिशत है जबकि संप्रग शासन के दौरान इसमें खासी वृद्धि हुई थी। इससे साफ़ है कि वर्तमान सरकार को गरीब कारीगरों और श्रमिकों के प्रति कोई दया नहीं है, लेकिन उनसे अधिक कर लेकर सरकार अमीर कारोबारियों की मदद करना चाहती है।